इसके पहले कि कबीले (tribe) के लोग एक साथ रह सकते, सामाजिकता का तकाजा था कि व्यक्तिगत मनोविकारों, कुप्रवृत्तियों और दुर्वासनाओं पर अंकुश लगे। भय, क्रोध आदि सभी पशुभाव मानव में हैं। स्तनपायी जीवों के समय से, जब से जीव का सामूहिक जीवन प्रारंभ हुआ, अंत:प्रवृत्ति के निर्माण का अविच्छिन्न क्रम मानव तक चलता आया है। यह मानव की पूर्व रचित मनोभूमिका है। उसके चाल-चलन की रचना आगे विधि-निषेधों द्वारा हुई। पर कुछ उसे वंशानुक्रम में पूर्व योनियों से भी प्राप्त हुआ। अनेक जातियों में सहजात निषेध ( taboo) पाए जाते हैं।
पुरातत्वज्ञों का अनुमान है कि पूर्व पाषाण युग के कबीले मातृप्रधान थे। उनके अनुसार इसका कारण स्त्रियों द्वारा खेती का अन्वेषण था। पर बाद के अन्वेषण पुरूषों द्वारा होने के कारण उनका महत्व बढ़ गया। इसलिए ये पुरातत्वज्ञ कहते हैं, ‘समाज पितृप्रधान हो गए।‘ यह दिमागी सैर मात्र है। आज से दो-तीन शताब्दी पहले जो अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया या अफ्रीका में प्रस्तरयुगीन मानव के बचे-खुचे कबीले पाए जाते थे, वे साधारणतया पितृप्रधान थे। कुछ पुरातत्वज्ञ कहते हैं कि मातृप्रधान समाज अधिक ‘सभ्य’ अवस्था है। केरल में कुछ मातृप्रधान समाज हैं। वहॉं विवाहोपरांत पति को पत्नी के मायके में जाकर रहना पड़ता था। वहीं उन्हें उत्तराधिकार मिलता था। पर नए हिंदू कानून से उत्तराधिकार बदल गया। प्रस्तर युग में संभवतया समाज-व्यवस्था में स्त्री-पुरूष दोनों की समान साझेदारी थी।
दो शताब्दी पूर्व तक कुछ कबीले संसार में पाए जाते थे। यह आदि समाज की विकृति भी हो सकती है। फिर भी इनके जनमानस में मानसिक तथा सामाजिक विकास की प्रक्रिया दिख सकती है। ऐसे ऑस्ट्रेलिया के आदि निवासियों का धार्मिक, सामाजिक जीवन टोटेमवाद ( totemism) पर आधारित था। हर कबीले का एक गण-चिन्ह (totem) था, जो साधारणतया कोई जानवर या विरल वनस्पति या प्राकृतिक शक्ति होती थी। कबीला उस गण-चिन्ह को अपना पूर्वज मानता और उसके नाम पर जाना जाता। कबीले का विश्वास था कि वह उनकी रक्षा करता है और देववाणी द्वारा मार्गदर्शन करता है। गण-चिन्ह के साथ अनेक निषेध जुड़े थे। वे उस जानवर को मारते न थे, वरन् संरक्षण करते थे। एक गण –चिन्ह के लोगों में परस्पर विवाह-संबंध का निषेध था। रामायण काल की वानर तथा ऋक्ष (रीछ) जातियॉं ऐसी ही थीं, जिनके गण-चिन्ह वानर एवं ऋक्ष थे।
कालचक्र: सभ्यता की कहानी
०१- समय का पैमाना०२- समय का पैमाने पर मानव जीवन का उदय
०३- सभ्यता का दोहरा कार्य
०४- पाषाण युग
०५- उत्तर- पाषाण युग
०६- जल प्लावन
०७- धातु युग
०८- राजा उदयन की राजधानी - कौशांबी
०९- पुराने कबीले मातृप्रधान थे
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