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बुधवार, फ़रवरी 27, 2008

रूपक कथाऍं वेद एवं उपनिषद् के अर्थ समझाने के लिए लिखी गईं

सारे संसार में जनश्रुतियॉं मिलती हैं। भारत को छोड़ अन्‍य सभ्‍यताओं में ये पहले प्रकट हुईं और बाद में लिखे गए शास्‍त्र, दर्शन और विज्ञान। लेकिन भारत में पहले उस समय का संपूर्ण ज्ञान वेद ग्रंथों में संकलित हुआ, बाद में पुराण लिखे गए। पाश्‍चात्‍य पुरातत्‍वज्ञों को यह बात समझ में न आती थी, इसलिये उन्‍होंने उलटा ही सोचा। कहना चाहा कि पुराणों की रचना पहले हुई, या फिर ‘वेद ग्रंथ गड़रियों के गीत हैं’ या फिर ये यवन दर्शन अथवा पारसी धार्मिक साहित्‍य ‘जेंदावेस्‍ता’ (Zenda-vesta) (‘छंद व्‍यवस्‍था’ का अपभ्रंश?) की नकल मात्र है। पर यवन सभ्‍यता के पाइथागोरीय संप्रदाय –ज्‍यामिति में ‘पाइथागोरस का प्रमेय’ है (जिसको भारत में पहले से बौधायन सूत्र कहते थे) का दर्शन, उनका कर्मवाद, पुनर्जन्‍म का विश्‍वास और शवदाह की पद्धति देखकर स्‍पष्‍ट है कि यवन दर्शन की प्रेरणा भारत से मिली। ‘पाइथागोरस’ शब्‍द ‘पीठ-गुरू:’ का अपभ्रंश है। इसी प्रकार इतिहास बताता है कि मूल ‘अवेस्‍ता’ लुप्‍त हो गया और जरथ्रुष्‍ट (Zorathrusthra) ने अपने उपदेशों को मिलाकर उसका पुनर्निर्माण किया। वह भी जल गया और आज नई मिलावट लिये छोटा सा अंश विद्यमान है। अब माना जाता है कि ‘अवेस्‍ता’ (व्‍यवस्‍था) का प्राचीन ‘यष्‍ट’ भाग ऋग्‍वैदिक मंत्रों की छाया है।

पहले ज्ञान लिपिबद्ध न होने के कारण कुछ रूपक कथाऍं वेद एवं उपनिषद् के अर्थ समझाने के लिए लिखी गईं। ऐसी कथा शक्ति की देवी दुर्गा की है। देवासुर संग्राम में एक बार देव हार गए। उनका ऐश्‍वर्य, श्री और स्‍वर्ग सब छिन गया। दीन-हीन दशा में वे भगवान् के पास पहुँचे। भगवान् के सुझावपर सबने अपनी सभी शक्तियॉं ( शस्‍त्र) एक स्‍थान पर रखीं। शक्ति के सामूहिक एकीकरण से दुर्गा उत्‍पन्‍न हुई। पुराणों में उसका वर्णन है—उसके अनेक सिर हैं, अनेक हाथ हैं। प्रत्‍येक हाथ में वह अस्‍त्र-शस्‍त्र धारण किए हैं। सिंह, जो साहस का प्रतीक है, उसका वाहन है। देवी दुर्गा संघटन का रूपक है। उसके घटकों के सिर संघटक के सहस्‍त्रों सिर हैं, सबके हाथ संघटन के असंख्‍य हाथ हैं। ऐसी शक्ति की देवी ने महिषासुर को मार डाला। राम ने लंका पर आक्रमण के समय दुर्गा की आराधना की थी। शक्ति की देवी के विभिन्‍न रूपों की दशहरे के पहले नवरात्रों में पूजा होती है। शास्‍त्र ने कहा है – ‘संघे शक्ति: कलौ युगे’।

सभी सभ्‍यताओं में प्रतीकात्‍मक कथाऍं कही गई हैं। कुछ बातें कहने की मनाही के कारण या अप्रिय होने के कारण या मानसिक निषेध के कारण प्रतीकों में फूट निकलती हैं। जॉन बनियन (John Bunyan) को इंग्‍लैंड में प्रोटेस्‍टेंट मत के विरूद्ध उपदेश देने के कारण कैद कर लिया गया। वह कम पढ़ा-लिखा, सीधा-सादा व्‍यक्ति था। उसने अपने कैदी जीवन में एक धार्मिक प्रतीकात्‍मक कहानी ‘तीर्थयात्री की प्रगति’(Pilgrim’s Progress) लिखी। यह बाइबिल के बाद अंग्रेजी की सबसे अधिक पढ़ी गई पुस्‍तक है। इससे प्रतीकात्‍मक शैली की लोकप्रियता का अनुमान लगा सकते हैं।


कालचक्र: सभ्यता की कहानी

०१- रूपक कथाऍं वेद एवं उपनिषद् के अर्थ समझाने के लिए लिखी गईं

1 टिप्पणी:

  1. Perfect interpretation!
    Further, for whatever reason, ancient Indian style of expression is metaphoric and indirect. Brihdaranyak Upanishad indicates in brahmn 2 of chapter 4 : "---parokshapriyaah iva hi devaah pratyakshadvishah".

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