पुराणों में अवतारों की कथाऍं, जनश्रुतियॉं संकलित हैं। सारी चराचर सृष्टि ईश्वर का स्वरूप है। उसके छोटे-छोटे अंशों से विविध योनियों (species) की सृष्टि हुई, ऐसा पुराणों का कथन है। पर जब ईश्वर का अधिक अंश लेकर कोई इस पृथ्वी पर पैदा हुआ तो उसे ईश्वर का अवतार कहा। कुल चौबीस अवतार कहे गए हैं, पर प्रमुखतया दस अवतारों की कथा कही जाती है। इन अवतारों में प्रथम चार-अर्थात वाराह, मत्स्य, कच्छप और नृसिंह-मानव नहीं हैं। पॉंचवें अवतार वामन अर्थात् बौने हैं। छठे अवतार परशुराम हैं। बाकी अवतार राम, कृष्ण और बुद्ध ऐतिहासिक व्यक्ति हैं, और कलियुग के अंत में जन्म लेंगे ‘कल्कि’।
इन अवतारों की कहानी में एक विशेष बात दिखाई पड़ती है। इनमें से प्रत्येक के द्वारा मानव समाज का कोई-न-कोई महत् कार्य संपन्न हुआ। इसी से ये ‘अवतार’ कहलाए। संसार में तो जिन्होंने नया ‘पंथ’ चलाया और शिष्य परंपरा निर्मित की, उन्हें उस पंथ के अनुयायियों ने अवतार कहा। मुहम्मदको मुसलमानों ने ईश्वर का दूत कहा, ईसा को ईसाइयों ने ईश्वर का पुत्र। ऐसा ही भारत के कुछ पंथों ने भी किया। पर पुराणों में वर्णित इन अवतारी महापुरूषों ने संपूर्ण मानव समाज के लिए कोई-न-कोई महान कार्य किया। गौतम बुद्ध को छोड़कर उनमें से किसी ने शिष्य परंपरा नहीं चलाई, न किसी मत के प्रवर्तक बने। यहॉं तक कि जिन लोगों ने राम और कृष्ण को अवतारी पुरूष बनाया ऐसे उनके गुरू-विश्वामित्र और सांदीपनि ऋषि-को अवतार नहीं कहा। चौबीसों अवतारों में प्रत्येक के द्वारा मानव मात्र के लिए कोई-न-कोई वंदनीय कार्य हुआ।
कालचक्र: सभ्यता की कहानी
०१- रूपक कथाऍं वेद एवं उपनिषद् के अर्थ समझाने के लिए लिखी गईं
०२- सृष्टि की दार्शनिक भूमिका
What is the necessity to create universe and human being by god
जवाब देंहटाएं