द्रविड़ देश के राजर्षि सत्यव्रत ने एक दिन तर्पण के लिए कृतमाला नदी से जल निकाला तो अंजलि में एक छोटी मछली आ गई। उसे जल में डालने पर मछली के बड़ी करूणा से कहा, ‘आप जानते हैं, जलजंतु अपनी जातिवालों को खा जाते हैं। आप मेरी रक्षा करें।‘ तब सत्यव्रत ने उसे अपने कमंडलु में छोड़ दिया। वह रात भर में इतनी बड़ी हो गई कि उसे पानी भरे मटके में डालना पड़ा। वहॉं वह दो घड़ी में तीन हाथ बढ़ गई। तब उसे सरोवर में डाला गया। कुछ देर में लंबा-चौड़ा सरोवर घिर गया तो उसे सागर में ले गए। वहॉं मत्स्य ने कहा, ‘आज के सातवें दिन भूमि प्रलय के समुद्र में डूब जाएगी। तब तक एक नौका बनवा लो। समस्त प्राणियों के सूक्ष्म शरीर तथा सब प्रकार के बीज लेकर सप्तर्षियों के साथ उस नौका पर चढ़ जाना। उस समय चारों ओर महासागर लहराता होगा। तब अँधेरा छा जाएगा। सप्तर्षियों की ज्योति के सहारे चारों ओर विचरण करना होगा। प्रचंड ऑंधी के कारण जब नाव डगमगाने लगेगी तब मैं मत्स्य रूप में आऊँगा। तुम लोग नाव को मेरे सींग से बॉंध देना। तब प्रलय-पर्यंत मैं तुम्हारी नाव खींचता रहूँगा। उस समय मैं उपदेश दूँगा।‘ वैसा ही हुआ। जो उपदेश दिया वह मत्स्य पुराण है। उस समय मत्स्य ने नौका को हिमालय की चोटी ‘नौकाबंध’ से बॉंध दिया। प्रलय समाप्त होने पर वेद का ज्ञान वापस दिया। राजा सत्यव्रत ज्ञान-विज्ञान से युक्त हो वैवस्वत मनु बने।
‘मनु’ से संबंधित एक समानांतर कहानी है ‘मनुस्मृति’ के रचयिता की। उससे इस कहानी का अन्य अध्याय में वर्णित एक दूसरा रूपक भी निखरता है, सभ्यता के एक यंत्र, विधि (law) के परिप्रेक्ष्य में। पर जिस प्रकार ये दोनों कहानियॉं गुँथकर एकाकार हो गईं (कुछ पुरातत्वज्ञों का मत है कि ये दो मनु की भिन्न कहानियॉं हैं), इन्हें सुलझाने या अलग करने का कोई उपाय नहीं है।
हमने देखा कि संभवतया किस प्रकार जल-प्लावन से भूमध्य सागर बना। उस समय हिमाच्छादन के बाद खगोलीय कारणों से पिघलते हिम ने और किसी आकाशीय पिंड के पृथ्वी के निकट आने के कारण भयंकर ज्वार ने जल-प्रलय का दृश्य उपस्थित किया। सचमुच आदि मानव ने उसको दुनिया का अंत समझा। ऐसे जल-प्रलय के समय जिसने मार्ग-निर्देशन किया, स्वाभाविक ही उसका नाम ‘मत्स्य’ (मछली) पड़ा। प्रलय के अंधकार में सप्तर्षियों का प्रकाश, जिसके कारण दिशाऍं जानी गईं, एक मात्र पथ-प्रदर्शक था। इस संहारकारी भयानक विपत्ति के बाद पुन: सभ्यता का बीज उगा।
हो सकता है कि कुछ वर्गों में ‘मत्स्य न्याय’ प्रचलित रहा हो, अर्थात बड़ी छोटी को खा जाती है। ऐसे कबीले को मनु ने संरक्षण दिया। यह कबीला अपने गण-चिन्ह (totem) ‘मछली’ के द्वारा जाना जाता था। सागर या जल के किनारे रहने तथा जल से आजीविका चलने के कारण उन्हें सागर की गतिविधियॉं और नौका का विशेष ज्ञान था। उस मत्स्य जाति ने मनु को नौका दी। ऐसी मत्स्य जाति या उसके किसी व्यक्ति ने महाप्रलय के समय सृष्टि-संरक्षण के कार्य की अगुआई की और मानव को जल-प्लावन की विपत्ति से उबारा।
कालचक्र: सभ्यता की कहानी
०१- रूपक कथाऍं वेद एवं उपनिषद् के अर्थ समझाने के लिए लिखी गईं
०२- सृष्टि की दार्शनिक भूमिका
०३ वाराह अवतार
०४ जल-प्लावन की गाथा
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