कालचक्र: सभ्यता की कहानी
१ संक्षेप में२ प्रस्तावना
३ भौतिक जगत और मानव-१
४ भौतिक जगत और मानव-२
५ भौतिक जगत और मानव-३
कितने वर्ष पृथ्वी को निष्फल, अनुर्वर भटकना पड़ा, जब जीवन का प्रथम प्रस्फुटन हुआ? संभवतया एक प्रकार का अध: जीवन (sub-life) तीन अरब (३x१०^९) वर्ष पहले, सद्य: निर्मित ज्वालामुखी के लावा और तूफानों द्वारा ढोए कणों पर ज्वार-भाटा द्वारा निर्मित कीचड़ के किनारे, पोखरों तथा समुद्र-तटो के उष्ण छिछले जल में उत्पन्न हुआ, जहॉं सूर्य की रश्मियॉं कार्बनिक द्विओषिद (carbon-di-oxide) और भाप से बोझिल वातावरण से छनकर अठखेलियॉं करती थीं। इस पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति चमत्कारिक घटना थी क्या? जीवन के प्रति जिज्ञासा ने मानव को अनादि काल से चकित किया है।
यूनान के दार्शनिक काल में अरस्तु (Aristotle) ने स्वत: जीवन उत्पत्ति का सिद्धांत रखा। उसका कहना था कि जैसे गोबर में अपने आप कीड़े पैदा होते हैं वैसे ही अकस्मात जड़ता में जीवन संश्लेषित हो जाता है। यह विचार इतना व्याप्त हुआ कि यूरोप के २,५०० वर्षों के इतिहास में इसी का बोलबाला रहा। यूरोप में लोगों ने चूहे बनाने का फॉर्मूला तक लिखकर रखा। रक्त, बलि आदि तांत्रिक कर्मकांड के विभिन्न नुस्खे बने। पर सूक्ष्मदर्शी ( microscope) का आविष्कार होने पर देखा गया कि एक बूँद पानी में हजारों सूक्ष्म जंतु हैं। लुई पाश्चर ने पदार्थ को कीटाणुविहीन करने की प्रक्रिया (sterilization) निकाली। उस समय फ्रांसीसी विज्ञान परिषद (L’ Academie Francaise) ने यह सिद्ध करने के लिए कि जड़ वस्तु से स्वत: ही जीवन उत्पन्न हो सकता है या नहीं, एक इनाम की घोषणा की। लुई पाश्चर ने यह सिद्ध करके कि जीव की उत्पत्ति जीव से ही हो सकती है, यह पुरुस्कार जीता। आखिर जो कीड़े गोबर के अन्दर पैदा होते हैं वे उस गोबर के अंदर पड़े अंडों से ही उत्पन्न होते हैं।
पर इससे पहले-पहल जीवन कैसे उत्पन्न हुआ, यह प्रश्न हल नहीं होता। ऐसे वैज्ञानिक अभी भी हैं जो यह विश्वास करते हैं कि पृथ्वी पर जीवन उल्का पिंड (meteors) द्वारा आया।
बाइबिल (Bible) में लिखा है—
‘ईश्वर की इच्छा से पृथ्वी ने घास तथा पौधे और फसल देनेवाले वृक्ष, जो अपनी किस्म के बीज अपने अंदर सँजोए थे, उपजाए; फिर उसने मछलियॉं बनाई और हर जीव, जो गतिमान है, और पंखदार चिडियॉं तथा रेंगनेवाले जानवर और पशु। और फिर अपनी ही भॉंति मानव का निर्माण किया और जोड़े बनाए। फिर सातवें दिन उसने विश्राम किया।‘यही सातवॉं दिन ईसाइयों का विश्राम दिवस (Sabbath) बना। इसी प्रकार की कथा कुरान में भी है। पर साम्यवाद (communism) के रूप में निरीश्वरवादी पंथ आया। इन्होंने ( ओपेरिन, हाल्डेन आदि ने) यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि जीवन रासायनिक आक्षविक प्रक्रिया (chemical atomic process)से उत्पन होकर धीरे धीरे विकसित हुआ। इसे सिध्द करने के लिए कि ईश्वर नहीं है, उन्होने प्रयोगशाला में जीव बनाने का प्रयत्न किया। कहना चाहा,
‘कहाँ है तुम्हारी काल्पनिक आत्मा और कहाँ गया तुम्हारा सृष्टिकर्ता परमात्मा ?’साम्यवादियों का यह अभिमान कि ईश्वर पर विश्वास के टुकड़े प्रयोगों द्वारा कर सकेंगे, उनकी खोज को कहॉं पहुँचा देगा, उनको पता न था। उन्होंने ईश्वर संबंधी विश्वासों का मजाक उड़ाया और यही उनके शोधकार्य की प्रेरणा बनी।
जीवों के शरीर बहुत छोटी-छोटी काशिकाओं से बने हैं। सरलतम एक-कोशिकाई (unicellular) जीव को लें। कोशिका की रासायनिक संरचना हम जानते हैं। कोशिकाऍं प्रोटीन (protein) से बनी हैं और उनके अंदर नाभिक में नाभिकीय अम्ल (nuclear acid) है। ये प्रोटीन केवल २० प्रकार के एमिनो अम्ल (amino acids) की श्रृंखला-क्रमबद्धता से बनते हैं और इस प्रकार २० एमिनो अम्ल से तरह-तरह के प्रोटीन संयोजित होते हैं। अमेरिकी और रूसी वैज्ञानिकां ने प्रयोग से सिद्ध किया कि मीथेन (methane), अमोनिया (ammonia) और ऑक्सीजन (oxygen) को कॉंच के खोखले लट्टू के अंदर बंद कर विद्युत चिनगारी द्वारा एमिनो अम्ल का निर्माण किया जा सकता है। उन्होंने कहना प्रारंभ किया कि अत्यंत प्राचीन काल में जीवविहीन पृथ्वी पर मीथेन, अमोनिया तथा ऑक्सीजन से भरे वातावरण में बादलों के बीच बिजली की गड़गड़ाहट से एमिनो अम्ल बने, जिनसे प्रोटीन योजित हुए।
अपने प्राचीन ग्रंथों में सूर्य को जीवन का दाता कहा गया है। इसीसे प्रेरित होकर भारत में ( जो जीवोत्पत्ति के शोधकार्य में सबसे आगे था) प्रयोग हुए कि जब पानी पर सूर्य का प्रकाश फॉरमैल्डिहाइड (formaldehyde) की उपस्थिति में पड़ता है तो एमिनो अम्ल बनते हैं। इसमें फॉरमैल्डिहाइड उत्प्रेरक (catalyst) का कार्य करती है। इसके लिए किसी विशेष प्रकार के वायुमंडल में विद्युतीय प्रक्षेपण की आवश्यकता नहीं।
बहुत अच्छा लेख पर विस्तृत रूप से बतायें कि किस तरह पहले एक कोषीय जीवों की उत्पति हुई?
जवाब देंहटाएंऔर हाँ टिप्पणी करने की सुविधा उन लोगों को भी देवें जिनके पास गूगल का खाता नहीं है और उन लोगों को भी जो वर्ड प्रेस पर अपने चिठ्ठे लिखते हैं।
सागर चन्द नाहर
॥दस्तक॥
गलती से सब लोगो को टिप्पणी करने की अनुमति देने से रह गया था। यह ठीक कर दिया है। अब सब लोग टिप्पणी कर सकते हैं।
जवाब देंहटाएंबताने के लिये धन्यवाद