‘अंग्रेजी में हमारी ठेठ भाषा के ठेठ देहाती शब्द हैं। उन बेचारों को उच्चारण नहीं आता, इससे दूसरी भाषा बन गई।’मैं तब नौवीं कक्षा में पढ़ता था। मेरे चेहरे पर संदेह देखकर उन्होंने कहा,
‘पूछो तुम शब्द।’तब मैं अंग्रेजी शब्द कहता और वह उसीसे मिलते-जुलते हिंदी के पर्याय शब्द बताते चलते। हम एक कस्बे में रहते थे। तंग आकर मैंने पूंछा,
‘टाउन ( town)?’उन्होंने हँसकर कहा,
‘अब तुम ठेठ देहाती शब्द पर उतर आए हो। बुंदेलखंडी में पूछते हैं, "तुहार ठॉंव कवन आय ?" यह ‘ठॉंव’ ही ‘टाउन’ है।’जब मुझे विश्वास नहीं हुआ तो मुझसे आंग्ल विश्वकोश (Encyclopedia Brittanica) दिखवाया। उसमें ‘टाउन’ शब्द के विवेचन के बाद लिखा था, ‘तुलना करें, संस्कृत ‘स्थान’। संस्कृत ‘स्थान’ से ही ‘ठॉंव’ और ‘टाउन’ दोनों बने। उन्होंने हजारों अंग्रेजी शब्दों के उसी से मिलते-जुलते हिंदी पर्याय लिखे थे।
भाषा के आश्चर्यजनक साम्य से यह निष्कर्ष भी निकलता है कि आर्य किसी एक स्थान, जैसे भारत से पश्चिमी एशिया और यूरोप में फैले। संस्कृत संसार की प्राचीनतम और समृद्धतम भाषा है। हर प्रकार के साहित्य का, जिनमें वेद-पुराण प्रमुख हैं, बहुत बड़ा भंडार उसके पास है और है शब्द बनाने तथा भाव व्यक्त करने का सरल एवं अनुपम ढंग तथा विश्व भाषा बनने की क्षमता। ऐसी दशा में संस्कृत यदि आर्य सभ्यता की मूल भाषा (या उसके निकट-पूर्व की प्रचलित भाषा) रही हो तो क्या आश्चर्य।
आर्य भाषाओं साम्य का एक और कारण अनुमान कर सकते हैं। कल्पना करें कि यह विस्मरण हो जाए कि भारत में कभी अंग्रेजी राज्य था। अंग्रेजी के बहुत से शब्द हिंदी में और हिंदी के अनेक शब्द अंग्रेजी में प्रतिदिन के व्यवहार में आते हैं। इसे देखकर यदि कोई कहे कि अंग्रेज और भारतीय कहीं बीच के निवासी थे, कुछ इंग्लैंड चले गए और कुछ भारत आए तो कितनी हास्यास्पद बात होगी! कभी भारतीय सभ्यता का प्रभाव सारे संसार में फैला; उसने अखिल मानव जीवन को दिशा दी। इसी से आदि भारती के शब्दो को लोगों ने सिर-माथे लगाया। पर इतनी बड़ी मात्रा में आर्य भाषाओं में अद्भुत साम्य है कि आर्य प्रजाति का भारत से जाना भी युक्तिसंगत है।
आखिर पुरातत्व से भाषाशास्त्र में वे क्यों घुसे ? इसकी कहानी बाबाजी (चौ. धनराज सिंह) ने बताई थी। एक रात गांव में लेटे हुए बाहर सियारों का ‘हुआना’ ( हुआ-हुआ) सुनते रहे। उनको लगा कि संसार में एक जाति के जानवर एक प्रकार से बोलते हैं, फिर मानव की अनेक भाषाऍं क्यो हैं ? इसके बारे में बाबुल (Babul) की एक दंतकथा है। कहते हैं कि पहले मानव की एक ही भाषा थी। तब पृथ्वी के लोगों ने स्वर्ग तक ऊँची मीनार उठाने का विचार किया, जिससे सशरीर स्वर्ग पहुँच सकें। जब मीनार बननी प्रारंभ हुई तो देवताओं को भय लगा। उन्होंने शाप दिया कि आगे से एक-दूसरे की भाषा मनुष्य समझ न पाऍंगे। इस पर मीनार का निर्माण कार्य ठप्प हो गया। आज भी फारस की खाड़ी में, जहॉं की यह दंतकथा है, बाबुलमंदप नामक स्थान देखा जा सकता है। पर मानव की कभी एक भाषा रही होगी,ऐसा विश्वास भाषाशास्त्रियों का नहीं है।
अनुमान है कि प्रस्तरयुगीन मानव के पास बहुत कम शब्द होंगे—भय, क्रोध, प्रेम आदि की चिल्लाहट या वस्तुओं की नकल से प्राप्त ध्वनि। आपस में बात करने के लिए संकेतों का भी प्रयोग होता होगा, जैसा अमेरिका के भिन्न भाषा वाले आदि निवासी करते थे। लाखों वर्षो के जीवन के बाद कहीं विचारों के लिए शब्दों का निर्माण हो पाया। भारत की प्राचीन भाषा, जिसके अवशिष्ट अंश चहुँओर सभी आर्य सभ्यताओं में बिखरे, कैसी महान उपलब्धि थी।
प्रजाति के विभाग या वर्गीकरण से मेल खाते हैं संसार की भाषाओं के वर्ग। एक वर्ग के अंदर धातुऍं एवं शब्द गढ़ने का तरीका, वाक्य-विन्यास, अभिव्यक्ति की पद्धति तथा व्याकरण एक-सा मिलता है। सबसे बड़ा विभाग आर्य भाषाओं का है जिनमें मूल संस्कृत एवं पाली है और हैं भारत की सभी भाषाऍं, फारसी, अरमीनी तथा यूरोपीय। दूसरा बड़ा वर्ग सामी (Semitic) भाषाओं का है जिसमें अरबी, इब्रानी (Hebrew), एबीसीनी (Abyssinian) और उस क्षेत्र की प्राचीन भाषाऍं हैं। इसी प्रकार एक अन्य बड़ा वर्ग पूर्वी एशिया की भाषाओं का है जहॉं कुछ प्रारंभिक ध्वनियों से बोली बनती है। उनका स्वर तथा उतार-चढ़ाव उनको भिन्न अर्थ देता है। यह चीनी भाषाओं का वर्ग है। आर्य भाषा रूपकों में स्पष्ट चित्र खड़ा करती है; वहॉं चीनी भाषा सार मात्र देती है, जिसके भिन्न संदर्भ में भिन्न-भिन्न अर्थ होते हैं। इनकी व्याकरण की कल्पना भिन्न है-या जैसा कुछ भाषाशास्त्री कहते हैं, व्याकरण है ही नहीं। इसलिए चीनी भाषा से आर्य भाषा में शब्दानुवाद संभव नहीं।
कालचक्र: सभ्यता की कहानी
१ मानव का आदि देश२ मानव का आदि देश
३ मानव का आदि देश
४ मानव का आदि देश
५ मानव का आदि देश
६ मानव का आदि देश
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