गुरुवार, अगस्त 16, 2007

मानव का आदि देश-१

कालचक्र: सभ्यता की कहानी
१ मानव का आदि देश

पुरानी दुनिया का केंद्र – भारत। भूमंडल के गोलक (globe) में पुरानी दुनिया को लें। एक रेखा यूरोप में स्‍कंद देश (स्‍कैंडीनेविया) के उत्‍तरी छोर से आस्‍ट्रेलिया के दक्षणि में तस्‍मानिया (Tasmania) द्वीप तक खींचें और दूसरी साइबेरिया तथा अलास्‍का के बीच बेहरिंग जलसंधि से अफ्रीका के दक्षिण में आशा अंतरीप ( Cape of Good Hope) तक। ये दोनों देखाऍं एक-दूसरे को भारत में पार करती हैं।

चतुर्थ हिमाच्‍छादन का लगभग एक लाख वर्ष का समय जीव के लिए महान विपत्ति का काल था। उसकी पराकाष्‍ठा के समय उष्‍ण कटिबन्‍ध की ओर बढ़ते हिमनद एवं हित के ढक्‍कन ने पश्चिमी तथा उत्‍तरी यूरेशिया को लपेट लिया था। यह एक ओर आल्‍पस पर्वत (Alps) के पार पहुँचा, दूसरी ओर यूरोप और एशिया के मध्‍यवर्ती सागर को छूने लगा,जो काला सागर से कश्‍यप सागर तथा अरल सागर को अपने अंदर समाए हुए उत्‍तर तक फैला था। अधोशून्‍य ( शून्‍य से नीचे) तापमान के भयंकर बर्फानी तूफानों और तुषार ने मध्‍य यूरेशिया का जीवन संकटग्रस्‍त कर दिया। इसमें नियंडरथल मानव काल की भेंट चढ़े। ऐसे समय में केवल उष्‍ण कटिबंध केआसपास पर्वतों की रक्षा-पॉंति की ओट में ही जीवन पल सका। वहॉं इस भीषण संकट से मुक्‍त कोने में विशुद्ध मानव का संवर्धन हो सका। जिस समय नियंडरथल मानव तथा अवमानव मध्‍य यूरेशिया में कठोर शीतलहरी से जूझ रहे थे, उस समय वि शुद्ध मानव ने किसी आश्रय-स्‍थान में शरीरिक गठन तथा अंगों के उपयोग में निपुणता प्राप्‍त की, अनुक पीढियों के अनुभवों से अपने जीवन को समृद्ध किया और मस्तिष्‍क की प्रतिभा का विकास किया।

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