गुरुवार, अगस्त 23, 2007

मानव का आदि देश-२

कालचक्र: सभ्यता की कहानी
मानव का आदि देश
२ मानव का आदि देश

जिस मॉं की ममता से पक्षी एवं स्‍तनपायी जीवों के कुटुंब प्रारंभ हुए, उसी स्‍नेह के स्‍पर्श से सामाजिकता का उदय हुआ। स्‍वाभाविक रूप में मानव ने दल या गिरोह में रहना आरंभ किया। इस प्रकार का जीवन तो ऐसे ही भूभाग में पनप सका जहॉं भोजन प्रचुर मात्रा में था। आज जो भी जीव हैं उनका भोजन वनस्‍पति या जीवजनित पदार्थ ही हैं। ‘जीवो जीवस्‍य जीवनम ‘ इस अर्थ में भी सही है कि जीवन ( अर्थात वनस्‍पति एवं जीव) से प्राप्‍त पदार्थ छोड़ मोटे तौर पर कोई भी अन्‍य वस्‍तु पचाकर मानव शरीर संवर्धन नहीं कर सकता। ऐसी दशा में जीवन ( वनस्‍पति और प्राणी) से समृद्ध प्रदेश ही मानव के कुछ लाख वर्षों की शैशव-लीलास्‍थली बना।

ऐसे रक्षित प्रदेश की सम जलवायु में विशुद्ध मानव ने सामाजिकता के प्रथम पाठ सीखे। यहीं पर साथ रहने की भावना से प्रेरित हो वरदान रूपी वाणी विकसित की। यह कितनी बड़ी देन मानव जीवन को है। वाणी के माध्‍यम से परस्‍पर बात करना, समझना सीखा। वाणी से रूप-भाव उत्‍पन्‍न होते हैं, जिससे क्रमबद्ध विचार संभव हुआ। मन और चरित्र का विकास हुआ और व्‍यक्तित्‍व का बोध हुआ। उसी के साथ आया समाज का जीवन।

नृवंशशास्त्रियों ( ethnologists) का विश्‍वास है कि यूरेशिया और अफ्रीका के उत्‍तरी तट के विशुद्ध मानव एक ही मूल धारा के थे। वे गेहुँए या श्‍यामल रंग के थे। उनकी एक शाखा जो भूमध्‍य सागर के देशों में पाई जाती थी ‘बरबर’ कहलाई और जो उत्‍तरी यूरोप में गई वह ‘नार्डिक’ । सहस्‍त्राब्दियों में धीरे-धीरे बदलाव आया और वे गोरे हो गए। जो पूर्वी एशिया और वहॉं से अलास्‍का होते हुए नई दुनिया, अमेरिका पहुँचे वे कालांतर में कुछ पिंगल हो गए। आर्य और पिंगल प्रजाति अधिक समान हैं, इसी से कुछ नृवंशशास्‍त्री इन्‍हें एक मानते हैं। जो अफ्रीका के घने विषुवतीय (equatorial) जंगलों में रहते थे उनसे सॉंवली नीग्रो प्रजाति बनी। इसी प्रकार के ऑस्‍ट्रेलिया, न्‍यू गिनी आदि के ऑस्‍ट्रेलियाई हैं। इन सबका, या कम-से –कम आर्य एवं पिंगल प्रजातियों का कुछ-न-कुछ अंश लिये यह संगम-स्‍थल भारत है।

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