कालचक्र: सभ्यता की कहानी
१ संक्षेप में२ प्रस्तावना
३ भौतिक जगत और मानव-१
४ भौतिक जगत और मानव-२
५ भौतिक जगत और मानव-३
६ भौतिक जगत और मानव-४
७ भौतिक जगत और मानव-५
८ भौतिक जगत और मानव-६
९ भौतिक जगत और मानव-७
१० भौतिक जगत और मानव-८
११ भौतिक जगत और मानव-९
स्तनपायी और पक्षी, जो उस महानाश से बच सके, उन सरीसृपों से, जो उसकी बलि चढ़े, कुछ बातों में भिन्न थे। प्रथम, ये तापमान के हेर-फेर सहने में अधिक समर्थ थे। स्तनपायी के शरीर पर रोएँ थे और पक्षी के पर। स्तनपायी को रोएँदार सरीसृप कह सकते हैं। इन बालों ने उसकी रक्षा की। दूसरे स्तनपायी गर्भ को शरीर के अंदर धारण कर और पक्षी अपने अंडे को सेकर उनका ठंडक से त्राण करते हैं और जन्म के बाद अपने बच्चों की, कुछ काल तक ही क्यों न हो, देखभाल करते हैं।
इस अंतिम विशेषता ने स्तनपायी और पक्षियों को एक पारिवारिक प्राणी बना दिया। माँ अपने बच्चे की चिंता करती है, इसलिए अपने कुछ अनुभव एवं शिक्षा अपनी संतति को दे जाती है। किशोरावस्था के पहले माता-पिता पर संतान की निर्भरता और उनका अनुकरण, इससे नई पीढ़ी को सीख देने का राजमार्ग खुला। इसके द्वारा इन प्रजातियों में पीढ़ी – दर – पीढ़ी व्यवहार एवं मनोवृत्ति का सातत्य स्थापित हो सका। एक छिपकली की जिन्दगी उसके स्वयं के अनुभवों की एक बंद दुनिया है। पर एक कुत्ते या बिल्ली को अपने व्यक्तित्व के विकास में वंशानुगत माता के द्वारा देखरेख, उदाहरण एवं दिशा सभी प्राप्त हुई हैं। माँ की ममता ने जीव की मूल अंत:प्रवृत्ति (instinct)में, जो पहले कुछ सीमा तक अपरिवर्तनीय थी, सामाजिक संसर्ग की एक कड़ी जोड़ दी वह शिक्षा तथा ज्ञान देने में सक्षम थी। इसके कारण तीव्र गति से मस्तिष्क का विकास संभव हुआ । आज सभी स्तनपायी जीवों के मस्तिष्क नूतनजीवी कल्प के प्रारंभ के अपने पूर्वजों से लगभग आठ-दस गुना बढ़ गए हैं।
यह नूतनजीवी कल्प का उष:काल था। उसके बाद धरती की कायापलट करनेवाला मध्य नूतन युग (miocene)आया, जो भूकंप काल था और जिसमें बड़ी पर्वत-श्रेणियों का निर्माण हुआ। हिमालय, आल्पस और एंडीज तभी बने। उस समय तापमान गिर रहा था। इसके बाद अतिनूतन युग (pliocene) में आज की तरह का जलवायु और पर्याप्त नवीन जीवन था। पीछे आया अत्यंत नूतन अथवा सद्य: नूतन युग (Pleistocene),जिसे हिमानी युग (glacial age) भी कहते हैं। इस युग में अनेक बार हिमनद ध्रुवों से विषुवत् रेखा की ओर बढ़े और आधी पृथ्वी बर्फ से ढक ली। ऐसे समय में सागरों का कुछ जल पृथ्वी के हिम के ढक्कनों ने समाविष्ट कर लिया और समुद्र से भूमि उघड़ आई। आज वह पुन: सागर तल है। ये हिमाच्छादन जीवन के लिए महान् संकट थे। अब पृथ्वी पुन: उतार – चढ़ाव के बीच धीरे-धीरे ग्रीष्मता की ओर सरक रही है, ऐसा वैज्ञानिक विश्वास है।
नूतनजीवी कल्प के हिमानी युग के घटते-बढ़ते हिम आवरण से मुक्त प्रदेश में अवमानव (sub-man) की झलक दिखाई पड़ती है। यह नूतनजीवी कल्प लाया हिमानी और तज्जनित भयानक विपत्तियाँ और मानव।
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