मिस्र, नील नदी का वरदान है। नदी का प्राचीन संस्कृत नाम आज तक चला आता है। वहाँ के जीवन में दो देवताओं की मानो होड़ थी। एक 'नील (Nile) नदी', जिसकी देन मिस्र का जीवन है। दूसरे सूर्यदेव 'रे' (रवि) । नील नदी में वर्ष में सदा उसी तारीख को बाढ़ आती है। इससे ३६५ दिन का (तीस दिन के बारह मास और ५ अतिरिक्त दिवस) उनका वर्ष बना। नील की क्षीण धारा तब प्रबल हो उठती है। बाढ़ के साथ अन्नदायिनी नई मिट्टी सारी घाटी में फैलने लगती है और अक्तूबर के अंत तक सारी घाटी डूब जाती है। फिर एकाएक पानी उतरना प्रारम्भ होता है और तब निकल आते हैं उर्वर खेत। यह चिलचिलाती धूप व शुष्क गर्मी के कारण नील नदी और उसके साथ वनस्पति तथा हरियाली की मृत्यु और पुनर्जीवन की कहानी वर्षानुवर्ष दुहरायी जाती है। सूर्य का प्रतिदिन उदय एवं अस्त भी मानो उसके पुनर्जीवन की कथा है। यह प्रकृति की, उनके दोनों देवताओं की नियमितता, उनकी प्राचीन सभ्यता के आशावादी दर्शन का आधार तथा प्रतीक बनी।
आज प्राचीन मिस्री सभ्यता के अध्ययन के लिए उनके द्वारा निर्मित विशाल पिरामिड (pyramid), उनके मंदिर, भित्तिचित्र एवं मूर्तियां, उनकी चित्राक्षर लिपि में लिखे गए लेख और उनके अभिलेखागार हैं।
प्राचीन मिस्री सभ्यता का तिथि क्रम पाँच भागों में बाँटा जा सकता है। प्रथम प्राग्वंशीय युग, जो लगभग विक्रम संवत् पूर्व ३४०० के पहले था। उस समय मिस्र में दो भिन्न सभ्यताएँ पनप रही थीं। प्रथम मिस्र में अवस्थित नील की घाटी में, जो लगभग १५ से ३० किलोमीटर चौड़ी उत्तर से दक्षिण एक पट्टी है और दूसरी उसके मुहानों की भूमि पर। भिन्न होने के बाद भी दोनों ने नील नदी की बाढ़ प्रारम्भ होने की प्रति वर्ष का ३६५ दिन बाद आने वाला क्रम स्व-अनुभव से जाना था। जब यह गणना प्रारम्भ की गयी अर्थात वर्ष के प्रथम वर्ष के प्रथम दिन 'लुब्धक तारे', (Sirius : Alpha Canis Majoris) का उदय सूर्योदय के साथ हुआ था। पर नक्षत्र वर्ष लगभग १/४ दिन अधिक का होने के कारण यह घटना १४६० वर्ष के पश्चात पुन: वर्ष के प्रथम दिन आएगी। इसे 'सोथिक चक्र' (Sothic cycle) कहते हैं। इसलिए किस मास के दिन यह घटना हुयी, जानने पर सोथिक चक्र से वह कौन सा वर्ष था, जान सकते हैं। मिस्त्री जीवन में ऎसी तिथियों के विशेष उल्लेख से काल या संवत् पूर्व का अनुमान कर सकते हैं।
किंवदंती के अनुसार मिस्र के अति प्राचीन जीवन में नील की घाटी में बसने वाली जाति दक्षिण से और उनके देवता दक्षिण और पूर्व स्थित 'देवभूमि' से आए। संभवतः ये अफ्रीका के उत्तरी-पूर्वी तट के निवासी होंगे, जिन्हें ये सजातीय समझते थे। नील के मुहाने में दो जातियाँ- पश्चिम में लीबिया वासी और पूर्व में अरब से आई सामी जाति के लोग बसते थे। दक्षिणी मिस्र के प्राचीन लोगों ने मुहाने में बसे लोगों को शत्रु जाति और सामी बताया है। पर इनके अतिरिक्त एक तीसरी जाति भी थी जो इंजीयन सागर (भूमध्य सागर के पूर्वी भाग) के असंख्य द्वीपों में भी फैली थी। धीरे-धीरे संघीय युग में वह मिस्र के दक्षिणी भाग में फैल गयी। प्राग्वंशीय युग की सभ्यता के बारे में बहुत कुछ अज्ञात है। लगभग ३४०० विक्रम संवत् पूर्व के आसपास एक संयुक्त राज्य की स्थापना हुयी और इसके साथ राजवंशीय युग में पदार्पण हुआ।
राजवंशीय युम में ३० वंशों के राजाओं का साम्राज्य और शासन था। तीसरे से छठे वंश के काल को पिरामिड युग भी कहते हैं, जब पिरामिड बने और आई मेंफिस की नरसिंह की मूर्ति (Sphinx)। इसके अंत के करीब सत्ताईसवें से तीसवें वंश के शासन में आया ईरान का आधिपत्य तथा विद्रोह की घटनाएँ। विक्रम संवत् पूर्व २७४-२७० में सिकंदर (अलक्षेंद्र : Alexander) का आक्रमण और उसके बाद यूनान का राज्य। और अंत में विक्रम संवत् की प्रथम शताब्दी के प्रारम्भ में ही मिस्र रोम का एक प्रांत बनकर रह गया। यवनों ने उसका इतिहास लिखवाने का, लिपि पढ़ने का और उनकी सभ्यता को समझने का यत्न किया। पर रोम का प्रांत बनने पर रोमन साम्राज्य के ईसाईकरण के अत्याचारों से उसकी पाँच सहस्र वर्ष पुरानी सभ्यता का अंत हो गया। जो कुछ बचा उसे अरब में इस्लाम की शक्ति बढ़ने पर इस्लामी वाहिनियों के अत्याचारों की आंधी ने ध्वस्त कर नील की घाटी और मुहाने के रहे-सहे पुराने अवशेषों को भी जला कर नष्ट कर दिया। आज मिस्र स्वतंत्र है। उसके ये विशाल पिरामिड तथा मूर्तियां आज तक खड़ी हैं। पर उसका प्राचीन से नाता टूट गया और उस पुरानी सभ्यता की पहचान सदा के लिए मिट गयी। अत्याचारों की जोर-जबरदस्ती से लादे गए जीवन से उबरने की आशा भी न रही। आज इस्लामी रूढ़िवाद और कट्टरपन के आतंक से मुक्ति कहाँ?
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प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
०९ - बैबिलोनिया१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ - आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
बेहद ज्ञानवर्धक. आभार
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक और रुचिकर। लगा जैसे शब्दों की 'डिस्कवरी' देख रहे हों। मैं इस ब्लॉग को अपने 'ब्लॉग चयन' में लगा रहा हूँ।
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