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रविवार, नवंबर 01, 2009

पुलस्तिन् के यहूदी


भूमध्य सागर के पूर्वी भाग का जिन प्राचीन सभ्यताओं से संबंध का वर्णन आता है; उनमें बाइबिल के 'पूर्व विधान' में वर्णित यहूदी जाति और सभ्यता है। उनका देश था पुलस्तिन् (फिलिस्तीन), बाइबिल ने जिसे दूध एवं मधु का देश कहा। आज प्राचीन इतिहास के 'उर्वर अर्धचंद्र' का यह दक्षिणी-पश्चिमी छोर बदलती जलवायु के कारण मरूभूमि  में परिणत हो गया है। उस समय की उनकी सभ्यता, ज्ञान, दर्शन और जीवन उक्त 'पूर्व विधान' की प्रथम पाँच पुस्तकों में वर्णित है, जो 'पंचक' (Pentateuch)  के नाम से प्रसिद्घ हैं। इसराइल (Israil) शब्द का प्रयोग 'पूर्व विधान' की प्रथम पुस्तक 'उत्पत्ति' में यहूदियों के बारह कबीलों के लिए हुआ है। इनके प्रथम पैगम्बर (अथवा पूर्व पुरूष) अब्राहम (Abraham) (इब्राहीम?) के पौत्र याकूब [Jacob] (जिनका दूसरा नाम 'इसराइल' था) ने इन बारह कबीलों को एक सूत्र में बाँधा था। ये बारह कबीले अपने को 'बनी इसराइल' (इसराइल के पुत्र) कहने लगे। बाद में इबरानी (Hebrew) भाषा में इसराइल का अर्थ ही 'भगवान का प्यारा राष्ट्र' हो गया। याकूब का एक पुत्र 'यहूदा' या 'जूडा' (Juda) था। उसी के नाम पर यह जाति यहूदी (Jew) कहलायी।



याकूब (जेकब) फरिश्ते से लड़ते हुऐ

यहूदी मूलत: सामी परिवार की एक शाखा थी। इनका एक दु:खपूर्ण, सामूहिक आव्रजनों (Migrations)  से लिपटा इतिहास है। (ये आव्रजन द्वितीय जागतिक महायुद्घ के बाद अब समाप्त हुए जब यहूदियों ने इच्छित देश, 'इसराइल', पा लिया।) यहूदी पंथ के संस्थापक अब्राहम ने अत्याचारों से पीड़ित सभी यहूदियों को सुमेर की उर नगरी तथा उत्तरी अरब देश से पुलस्तिन को प्रयाण कराया था। दोबारा हजरत मूसा के नेतृत्व में उन्होंने मिस्र में नील नदी के मुहाने से पुन:पुलस्तिन की ओर आव्रजन किया और पुन: इसराइल की प्रतिज्ञात भूमि (Promised land) पर आए (जिसे पैगंबर मूसा के अनुसार भगवान ने देने को कहा था)।

इस बीच हजरत मूसा ने उन्हें उपदेश दिया। वे बाइबिल के 'तौरेत' (इबरानी 'थोरा' : शाब्दिक अर्थ 'धर्म') भाग में संकलित किये गए हैं। उनके उपदेशों के दो सार हैं-उपनिषदों के निराकार ब्रम्ह, 'यहोवा' की उपासना और मनुस्मृति में धर्म के जो दस लक्षण बताए गए हैं, लगभग उन्हीं सदाचार के दस नियमों का पालन। यही बाइबिल के उस भाग में वर्णित दस आदेश ( ten commandments) हैं।

कहा जाता है कि उसके बाद सुलेमान (Soloman) के जमाने में उनकी लौकिक उन्नति हुयी। सुलेमान ने येरूसलम में विशाल मंदिर एवं भवन बनवाया। उनका व्यापार संसार के सभी ज्ञात देशों से और भारत से भी होने लगा। परंतु सुलेमान की मृत्यु के बाद इसराइल और जूडा पुन: स्वतंत्र रियासतें बनीं। उनमें झगड़े शुरू हुए। तब असीरिया (असुर देश:  Assyria) ने चढ़ाई की। वहाँ के विशाल मंदिर एवं भवनों में आग लगा दी और येरूसलम नगर भी ध्वस्त कर दिया। यहूदी पुरोहितों और सरदारों का संहार कर २७,२९० प्रमुख यहूदी परिवारों को कैद कद और गुलाम बनाकर बाबुल भेजा। वहाँ उन पर अनेक अत्याचार हुए और उन्हें नारकीय यातनाएँ सहन करनी पड़ीं।

परंतु जब ईरान ने बाबुल पर विजय पाई तो आर्य राजा 'कुरू' ने उन्हें स्वतंत्र किया। लूट का सारा धन जो बाबुल आया था, उसे यहूदी राजा के वंशज, जो वहाँ गुलाम थे, के सुपुर्द कर आदर के साथ वापस पुलस्तिन भेजा (देखें-पृष्ठ १६७)। राजा कुरू ने येरूसलम के मंदिर का अपने व्यय से पुनर्निर्माण कराया और पुराने पुरोहित के वंशजों को सौंप दिया। यहूदी जाति का पुनर्वास हुआ, उनके खुशी के दिन फिर लौटे। उनकी स्वतंत्रता व स्वायत्त शासन लौटा और उनके स्वर्णिम दिन आए। धार्मिक विचार लिपिबद्घ हुए। प्रात:-सायं का हवन और वेदी की अग्नि कभी बुझने न पाए; सुगंध एवं खाद्य पदार्थ की आहुति और विशेष अवसरों पर जीव की आहुति तथा भगवान का भजन उनका कर्मकांड बना।

सामी सभ्यताओं के जीवन में यह घटना अभूतपूर्व है। ईरानियों ने दास प्रथा के विपरीत इन गुलामों को स्वतंत्रता एवं स्वशासन दिया। जो अत्याचार उन पर दूसरों ने किया था उसका परिमार्जन किया। ऎसा था भारतीय संस्कृति का प्रभाव; जो इसके संपर्क में आया उसे उदात्त जीवन की प्रेरणा मिली। संस्कृति वास्तव में पारस पत्थर के समान है। जिसका स्पर्श करेगी वह मन-वचन-कर्म से स्वर्ण और खरा बनेगा।

पर सिकंदर के आक्रमण के बहाने पुन: विपत्ति आई। इसराइल और यहूदा पुन: परतंत्र हुए। अंत में सेल्यूकस और उसके वंश का राज्य आया। उसी वंश में अंतिओकस ने विद्रोह के दंड स्वरूप येरूसलम का मंदिर पुन: भूमिसात् कर दिया। हजारों यहूदियों को मरवा डाला। उनके ही देश में उनकी उपासना-पद्घति अपराध घोषित की गयी। उनकी धर्म पुस्तकें जला दी गयी और यहूदी मंदिरों में यूनानी प्रतिमाएँ स्थापित की गयी। लगभग पौने दो सौ वर्ष बाद यहूदी पुन: यूनानी पाश से मुक्त हो सके।

इस चिट्ठी के चित्र - विकिपीडिया के सौजन्य से

प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य

०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत
०८ - अक्कादी
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ -  आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी

2 टिप्‍पणियां:

  1. विस्‍तृत ज्ञान से भरी हुई पोस्‍ट, यह अथाह ज्ञान इसी प्रकार मिलता रहे यही कामना है।

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  2. बेनामी11/04/2009 8:36 pm

    ज्ञानवर्धक पोस्ट

    इस टिप्पणी के माध्यम से, सहर्ष यह सूचना दी जा रही है कि आपके ब्लॉग को प्रिंट मीडिया में स्थान दिया गया है।

    अधिक जानकारी के लिए आप इस लिंक पर जा सकते हैं।

    बधाई।

    बी एस पाबला

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