ईसा का मानव धर्म सबकी समझ में आसानी से आता था। पर उसके प्रचारकों ने कालांतर में कर्मकांड से युक्त, ईसा के पुनर्जीवन के बाद में दिए गए कथित उपदेशों के अनुसार एक संगठित पंथ का ढाँचा खड़ा किया। उसे 'चर्च' (Church) कहा। प्रारंभ में ईसाई प्रचारक पंथ के सिद्घांत और ईसा के बलिदान के गीत गाते रहे। ये बाइबिल में 'सुसमाचार' (gospel) कहकर वर्णित है। यहूदा (Judea) में ही इसका विरोध हुआ। यूरोप में यवन दर्शन पर आधारित व्याख्या और एशिया के देशों में, जहाँ वानप्रस्थी (साधु) जीवन को सम्मान की दृष्टि से देखते थे, ईसा के सरल, सभी के प्रति प्रेम के उपदेश और बलिदान, प्रचार के प्रमुख साधन बने। उनके द्वारा कहे गये 'ईश्वर के भविष्य में आने वाले राज्य' के प्रति उत्सुकता जाग्रत होती थी। बाइबिल का 'पूर्व विधान' यहूदी जाति की कहानी है। खूँखार कबीलों से घिरी, जो स्वयं भी कम खूँखार न थी; उसने संघर्षों के बीच अनेक उतार-चढ़ाव देखे थे। उनके भयंकर ईश्वर को हटाकर एक भारतीय विचारों के स्नेहयुक्त, दयावान, क्षमाशील ईश्वर का और हिंसा, संहार एवं रक्त के पिपासु, असभ्य, क्रूर तथा स्वार्थी जीवन के हर मद में डूबे सरदारों के बीच दीन-दु:खियों के आँसू पोंछने वाले एक सरल, निष्कपट तथा अहिंसक समुदाय का भी कुछ आकर्षण था। विरोधों को झेलते, भिक्षा पात्र लिए संतों के बलिदान ने क्रूरता एवं घृणा पर कुछ सीमा तक विजय पायी। परंतु ईसाई पंथ को राजाश्रय मिलने पर असहमत लोगों का उससे भी अधिक क्रूरता एवं हिंसा से दमन प्रारंभ हुआ।
प्रारंभ में ईसाई चर्च संगठन ने भारतीय पद्घतियों से अपने उत्सवों की रचना की और कर्मकांड खड़ा किया। उन्होंने भारतीय सूर्य के उत्तरायण होने के दिन को ईसा का जन्म-दिवस मान लिया और मकर संक्रमण का हिंदु उत्सव ख्रीस्तोत्सव (Christmas) के रूप में मनाना प्रारंभ किया। इसी प्रकार शिशु ईसा की छठी और बरहों (जब शिशु को सौरी से बाहर लाते हैं: Epiphany) के दिन हिंदु पद्घति से १ तथा ६ जनवरी तथा बपतिस्मा अर्थात स्नान कर दीक्षा की विधि या नामकरण संस्कार अपनाया और पाया अहिंसा का दर्शन।
ईश्वर के दूत संत थॉमस
ईसाई पंथ के प्रारंभ के दिनों में सीरियाई ईसाइयों ने मलाबार तट पर पहुँचकर आश्रय माँगा। उस समय राजा हिंदु एवं प्रजा हिंदु। हिमालय की गोद में जनमी और इसलिए उसकी पुत्री कहलाने वाली देवी पार्वती की तपोभूमि एवं शबरीमाला की दैवी सुषमा से अलंकृत केरल की नैसर्गिक भूमि। भारतीय संस्कृति के अनुरूप उन शरणार्थियों को स्थान ही नहीं, अपने पंथ की परंपराओं एवं मान्यताओं के अनुसार रहने की छूट मिली। उनका प्रार्थना मंडप, गिरजाघर सभी ने बनवा दिया और दी पंथ के प्रचार की अनुमति। यदि यही घटना अरब प्रायद्वीप या यूरोप की होती तो उन सबको गुलाम बना लिया जाता और सारे अधिकारों से वंचित सर्वहारा श्रेणी में वे और उनके वंशज खड़े होते। आज भी ये मलाबारी ईसाई, पंथ प्रचारक संत थामस के ईसाई कहे जाते हैं; यद्यपि संत थामस कभी भारत नहीं आए। उनके अंदर की हिंदु भक्ति-परंपरा उनके किसी पुराने पंथ की, जैसा ईसाई ग्रंथ कहते हैं, न होकर प्राचीन ईसाई परंपरा का अवशेष है, जो यहाँ हिंदु पृष्ठभूमि में चलता आया। यूरोपीय चर्च द्वारा इसको समाप्त कर अपने साँचे में ढालने के यत्न हुए। एक समय इन मलाबारी ईसाइयों को पुर्तगाली पादिरयों के अधीन कर दिया गया, ताकि ये पूर्ण रोमन कैथोलिक रंग में रँग जाएँ। दूसरी उपासना-पद्घति (Liturgy) ठूसने के प्रयत्न हुए। वे पंथाधिकरण, जिन्होंने यूरोप में स्वतंत्रता को नकार कर मानव के ऊपर पंथ के नाम पर अत्याचार किए। पर पुर्तगाली आर्कबिशप ( archbishop) के प्रति विद्रोह खड़ा हुआ और मलाबारी ईसाइयों ने पुर्तगाली धर्म सत्ता के अधीन कभी न रहने की शपथ ली। किंतु भारत में यूरोपीय शासन आने पर उनका कुछ सीमा तक रोमीकरण हो गया।
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कालचक्र: सभ्यता की कहानी
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सभ्यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं
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स्मृतिकार और समाज रचना
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प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
०९ - बैबिलोनिया१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ - आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ - योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
चर्च का इतिहास बड़े ही रहस्यमय ढंग से कुछ फिल्मों में आया है...आपसे यथार्थ व्याख्या की अपेक्षा है.
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