रविवार, दिसंबर 16, 2007

उत्‍तर- पाषाण युगः सभ्‍यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं

उत्‍तर- पाषाण (Upper Paleolithic) युग के प्रारंभ में दो बहुत बड़े परिवर्तन पृथ्‍वी पर हुए। प्रथम, उत्‍तरी अफ्रीका एवं दक्षिण-पश्चिम एशिया की जलवायु बदलने लगी। वर्षा कम हो गई और घास के मैदान मरूस्‍थल बनने लगे। सहारा का रेगिस्‍तान तभी बना और रेगिस्‍तान के बीच नील नदी की धारा मिस्‍त्र की जीवन-धारा बनी। अरब (अर्व देश, अर्वन = घोड़ा), गांधार (आधुनिक कंधार) और थार के मरूस्‍थल तभी बने। जहॉं कहीं पानी बचा, वह मरूद्यान (oasis) बन गया। इन प्रदेशों के वन्‍य-पशु और मनुष्‍य इन्‍हीं जल-स्‍त्रोंतों के समीप रहने को बाध्‍य हुए। कुत्‍ता मानव के साथ पहले से था। पांडवों के साथ कुत्‍ते के भी हिमालय जाने की कथा है। चारा खाकर रह सकने वाले पशु –गाय-बैल, भेड़, बकरी, सुअर आदि मरूद्यानों के समीप चक्‍कर काटने लगे। भैंस संभवतया बाद में मानव जीवन में आई। कहते हैं, एक बार विश्‍वामित्र ने वसिष्‍ठ के यहॉं से कामधेनु को ले जाना चाहा। पर वह छूटकर वापस भाग गई तो उन्‍होंने एक नई सृष्टि-रचना की, जिसमें गाय के स्‍थान पर भैंस थीं। मनुष्‍य ने हिंसक जंतुओं से उनकी रक्षा की और खेत का चारा उन्‍हें दिया। वे मनुष्‍य के ऊपर निर्भर हो गई। इस प्रकार या अन्‍य कारणों से पशु का साथ होने पर मानव ने पशुपालन सीखा।

भारत में थार का मरूस्‍थल बनना शुरू हो गया था। तब राजस्‍थान और सिंध की भूमि ऊपर उठने से जहॉं एक ओर सॉभर जैसी खारे पानी की झील बच गई वहॉं दूसरी ओर एक बालुकामय खंड निकल आया। किसी समय राजस्‍थान में पर्याप्‍त वर्षा होती थी; पर विश्‍व की बदलती जलवायु ने उसे शुष्‍क रेगिस्‍तान बना दिया। यहॉं की नदियाँ सूख गई। आज भी राजस्‍थान के बीच सरस्‍वती नदी ( जिसे कहीं ‘घग्‍घर’ भी कहते हैं) का शुष्‍क नदी तल सतलुज के दक्षिण, कुछ दूर उसके समानांतर,कच्‍छ के रन तक पाया जाता है।

कुछ पुरातत्‍वज्ञों का मत है कि आज जिस प्रदेश को पंजाब कहते हैं उसे कभी ‘सप्‍तसिंधव:’, सात नदियों की भूमि कहते थे। कुछ कहते हैं कि यमुना भी पहले सरस्‍वती के साथ राजस्‍थान और कच्‍छ या सिंधु सागर में गिरती थी। गंगावतरण के बाद गंगा की किसी सहायक नदी ने धीरे-धीरे यमुना को अपनी ओर खींच लिया। उनके कहने के अनुसार आधुनिक पंजाब की पॉंच नदियॉं—सतलुज ( शतद्रु), व्‍यास ( विपाशा), रावी (परूष्‍णी), चेनाब ( असक्री), झेलम ( वितस्‍ता) और सरस्‍वती तथा यमुना मिलकर सात नदियॉं सिंधु सागर में मिलती थीं। इन्‍हीं के कारण ‘सप्‍तसिंधव:’ नाम पड़ा। कुछ अन्‍य कहते हैं कि सप्‍तसिंधु में सरस्‍वती एवं सिंधु नदी और उनके बीच बहती पॉंच नदियॉं गिननी चाहिए। परंतु विष्‍णु पुराण के एक श्‍लोक में सात पवित्र नदियों के नाम इस प्रकार हैं—‘गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्‍वती। नर्मदे सिंधु कावेरी (जलेस्मिन सन्निधिं कुरू)।‘ इस प्रकार हिमालय के दक्षिण के संपूर्ण देश को ही ‘सप्‍तसिंधु’ कहते थे।

कालचक्र: सभ्यता की कहानी
भौतिक जगत और मानव
मानव का आदि देश
सभ्‍यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं
- समय का पैमाना
- समय का पैमाने पर मानव जीवन का उदय
- सभ्‍यता का दोहरा कार्य
- पाषाण युग
५- उत्‍तर- पाषाण युग

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ज्ञानवर्द्धक और संग्रहणीय जानकारी
    दीपक भारतदीप

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