मंगलवार, मई 20, 2008

राजा, क्षत्रिय, और पृथ्वी की कथा

इस कालखंड में पहुँचकर ‘क्षत्रिय’ और ‘राजा’ की उत्‍पत्ति पर विचार करना पड़ेगा। कहते हैं कि आपस में लड़ाई-झगड़ों से तंग आकर सब ब्रम्‍हा के पास गए। ब्रम्‍हा न स्‍वायंभुव मनु से प्रजापालन हेतु कहा। पहले मनु ने इनकार किया। जब प्रजा ने आश्‍वासन दिया कि हम छठा भाग राज्‍य-संचालन के लिए देंगे तथा सत्‍कर्म का भी छठा भाग देंगे और आपकी बात मानेंगे, तब मनु प्रजापति बने। उस समय की अत्‍यंत विरल जनसंख्‍या में शासन का विधिसंगत प्रारंभ बताने के लिए इस प्रकार की कथा प्रतिपादित की गई। यही रूसी (Rousseau) के सामाजिक अनुबंध (Social Contract) के सिद्धांत की पूर्व पीठिका है।

दूसरी कथा है कि पहले धर्म का शासन था। उसका ह्रास होने पर नीति शास्‍त्र की रचना की गई और विरज शासक हुआ। इस विरज के दो पीढ़ी बाद वेन, जिसे मृत्‍यु का नाती बताया गया है, अगुआ बना। यह राग-द्वेष के वशीभूत हो प्रजा को धर्म से च्‍युत करने लगा तो ऋषियों ने मंत्रपूत कुशाओं से उसे मार डाला। अराजकता बढ़ने पर शव के दाहिने हाथ को मथकर पृथु को उत्‍पन्‍न किया। इसे भगवान् का अंशावतार कहते हैं। ऋषियों ने पृथु से कहा कि वह स्‍वयं दुर्गुणों से रहित होकर धर्म की रक्षा करे और अधर्मियों को दंड दे। पृथु ने यह मान लिया। वह प्रजा का रंजन करने के कारण ‘राजा’ कहलाया और क्षतों से त्राण करने के कारण ‘क्षत्रिय’ । पृथु के नाम पर ही यह वसुंधरा ‘पृथ्‍वी’ कहलाई।

पृथु के अभिषेक के पहले वेन के अनाचार से और कोई प्रजापालक न रहने के कारण पृथ्‍वी अन्‍नहीन हो गई थी और प्रजाजनों के शरीर सूखकर कॉंटे। इस पर पृथु ने गौ रूपिणी पृथ्‍वी से कहा, ‘तू यज्ञ में देवता रूप में भाग तो लेती है, किन्‍तु बदले में हमें अन्‍न नही देती।‘ तब पृथ्‍वी ने कहा, ‘राजा लोगों ने मेरा पालन तथा आदर करना छोड़ दिया है। दुष्‍ट और चोर सर्वरूत्र फैले हैं। इसलिए धान्‍य और औषध को मैंने छिपा रखा है। अब आप मुझे समतल करें, जिससे इंद्र का बरसाया जल सदैव बना रहे। फिर मेरे योग्‍य बछड़े की व्‍यवस्‍था कर इच्छित वस्‍तु दुह लें।‘ पृथु ने पर्वतों को फोड़ भूमि समतल की। यथायोग्‍य निवास स्‍थान बनाकर प्रजा के पालन-पोषण की व्‍यवस्‍था की। गॉंव, कस्‍बे, नगर, दुर्ग, पशुओं के स्‍थान, छावनियॉं, खानें आदि बसाईं। पहले इस प्रकार के ग्राम, नगर आदि का विभाजन न था। फिर पृथु ने धान्‍य, औषध तथा खनिज आवश्‍यकतानुसार और बछड़े का ध्‍यान रखकर दुहा। इस प्रकार पृथु के समय कृषि और धातु उद्योग मानव समाज को प्राप्‍त हुए तथा ग्राम-नगर से युक्‍त सभ्‍यता आई। पर साथ-साथ उठा पर्यावरण और वनस्‍पति एवं प्राणिमात्र के संरक्षण का विचार, उसकी नितांत आवश्‍यकता तथा प्रकृति के प्रति भक्ति।



कालचक्र: सभ्यता की कहानी

०१- रूपक कथाऍं वेद एवं उपनिषद् के अर्थ समझाने के लिए लिखी गईं
०२- सृष्टि की दार्शनिक भूमिका
०३ वाराह अवतार
०४ जल-प्‍लावन की गाथा
०५ देवासुर संग्राम की भूमिका
०६ अमृत-मंथन कथा की सार्थकता
०७ कच्‍छप अवतार
०८ शिव पुराण - कथा
०९ हिरण्‍यकशिपु और प्रहलाद
१० वामन अवतार और बलि
११ राजा, क्षत्रिय, और पृथ्वी की कथा

1 टिप्पणी:

  1. Blogs of Hon'ble Dadda Ji are very thoughtful. I am aware of his personality and have heard him in the courts but I have not been fortunate enough to hear him out side court.

    I think the story of birth of 'Prithu' (which can also be found in shrimad bhagvatam - skandha 4 chapter 15 ) indicates the scientific development of that period. Rishis/scientists of that time could make human clone. But it was regulated by high moral principles. Birth of 'Janak' by same process i.e. by grinding of dead body of 'Nimi'(shrimad bhagvatam - skandha 9 chapter 13 ) is also an example of scientific development in our ancient culture.
    - Dr. V.N. Tripathi, Advocate Allahabad High Court

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