शनिवार, जून 07, 2008

परशुराम अवतार

कालांतर में कुछ क्षत्रिरूय स्‍वेच्‍छाचारी हो गए। उन्‍होंने धार्मिक कृत्‍य करना और ऋषियों के परामर्श के अनुसार चलना छोड़ दिया। ऐसे क्षत्रियों की कई जातियॉं, जिनमें मनुस्‍मृति के अनुसार चोल, द्रविड़, यवन (ग्रीक), कांबोज ( आधुनिक कंबोडिया निवासी), शक, चीन, किरात ( गिरिवासी) और खस ( असम पहाडियों के निवासी) भी हैं, संसार में ‘वृषल’ ( शूद्र) के समान हो गए। बाकी क्षत्रिय भी प्राण के स्‍थान पर अत्‍याचार करने लगे। तब परशुराम का अवतार हुआ। उन्‍होंने इक्‍कीस बार पृथ्‍वी नि:क्षत्रिय की। पर कहते हैं, हर बार कहीं-न-कहीं बीज रह गया। उनसे पुन: वैसे ही लोग उत्‍पन्‍न हुए। हर बार परशुराम ने अत्‍याचारियों को मारकर समाज की रक्षा की।

परशुराम का स्‍थान है ‘गोमांतक’ (आधुनिक गोवा)। किंव‍दंती में कहा गया कि परशुराम ने अपने फरसे द्वारा सागर से यह सुंदर वनस्‍थली प्राप्‍त की। आज प्राचीनता का स्‍मरण दिलाते कुछ प्रस्‍तरयुगीन फलक वहॉं के पुरातत्‍व संग्रहालय में रखे हैं। परशुराम के अवतारी कार्य के अवशिष्‍ट चिन्‍ह क्रूर पुर्तगाली नृशंस अत्‍याचारियों ने मिटा दिए हैं। उनका स्‍थान ले लिया है ईसाई अंधविश्‍वासों, टोटकों और अवशेषों ने, जिनके बचाने की दुहाई मानवता के नाम पर दी जाती है । केवल एक ‘मंगेश’ का मंदिर पुर्तगाली मजहबी उन्‍माद से उस प्रदेश में बच सका।
उनकी दानवता तथा नृशंस अत्‍याचारों की एक झलक हमें वीर सावरकर लिखित खंड-काव्‍य ‘गोमांतक’ में मिलती है।

शिव धनुष तोड़ने का चित्र रवी वर्मा का है और विकिपीडिया से लिया गया है।

यदि वामन समाज की शिशु अवस्‍था का प्रतीक है तो परशुराम किशोरावस्‍था का। इस अवस्‍था में मन के अंदर अत्‍याचार के विरूद्ध स्‍वाभाविक रोष रहता है। शक्ति के मद में जो दुराचारी बने, उनसे परशुराम ने समाज को उबारा। यह सभ्‍यता की एक प्रक्रिया है। पर इस प्रक्रिया से जब समाज दुर्बल हो गया और क्षात्र शक्ति की पुन: आवश्‍यकता प्रतीत हुई तब एक बालक के मुख से परशुराम को चुनौती मिली। जनकपुरी में सीता स्‍वयंवर के अवसर पर लक्ष्‍मण ने दर्प भरी वाणी में परशुराम से कहा, ‘इहॉं कुम्‍हड़बतिया कोउ नाहीं, जे तरजनी देखि मरि जाहीं।‘ राम ने परशुराम का तेज हर लिया। मानो कहा कि उनका अवतारी कार्य समाप्‍त हो गया। एक नए अवतार का उदय हुआ। इस प्रकार परशुराम, किशोरावस्‍था के समाज की, अत्‍याचारी के दमन और सभ्‍य बनाने तथा व्‍यवस्‍था लागू करने की प्रक्रिया सहस्‍त्राब्दियों तक चली।


कालचक्र: सभ्यता की कहानी

०१- रूपक कथाऍं वेद एवं उपनिषद् के अर्थ समझाने के लिए लिखी गईं
०२- सृष्टि की दार्शनिक भूमिका
०३ वाराह अवतार
०४ जल-प्‍लावन की गाथा
०५ देवासुर संग्राम की भूमिका
०६ अमृत-मंथन कथा की सार्थकता
०७ कच्‍छप अवतार
०८ शिव पुराण - कथा
०९ हिरण्‍यकशिपु और प्रहलाद
१० वामन अवतार और बलि
११ राजा, क्षत्रिय, और पृथ्वी की कथा
१२ गंगावतरण - भारतीय पौराणिक इतिहास की सबसे महत्‍वपूर्ण कथा
१३ परशुराम अवतार

1 टिप्पणी:

  1. बेनामी9/11/2012 8:35 pm

    यह सभी हिंदू जानते कि भगवान परशुराम भगवान विष्णु के चिरंजीवी अवतार हें, पर यह जैनीयों द्वार इंटरनेट पर हिंदुओं के विरुद्ध षड्यंत्र पूर्वक किया जा रहा दुस्प्रचार हे ।
    श्रीमद्भागवत महापुराण में वर्णित है
    अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनुमांश्च विभीषण:।
    कृप: परशुरामश्चेव सप्तैते चिरजीविन:।।

    :-
    परशुराम की हत्या।
    जैनी कह रहे हें कि परशुराम की हत्या जैनियों के आठवें चक्रवर्ती सुभौम ने कर दी थी ।
    अभी अभी एस लेखक ने एक जैन फोरम पर भगवान विष्णु के छटे अवतार भगवान परशुराम के विरुद्ध यह विकृत कथा पढ़ी जो जैनियों के त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र ( 63 heroes of jainism ) से उद्ध्र्त हे ।

    मूर्ख अंधविश्वासी और कल्पना जाल में फँसे हिंदू जिस परशुराम को चिरंजीवी मानते हे असल मे उसकी हत्या जैनियों के आठवें चक्रवर्ती सुभौम ने कर दी थी ।
    रेणुका, जमदग्नि ऋषि की पत्नी उम्र में जमदग्नि से बहुत छोटी थी व जमदग्नि उसे संतुष्ट नहीं रख पाता था इस कारण रेणुका का सहस्त्रार्जुन से संबंध हो गया । जमदग्नि को जब रेणुका के व्यभिचार पता चला तो उसने अपने पुत्र परशुराम से रेणुका का वध करा दिया ।
    रेणूका की हत्या का बदला लेने के लिए सहस्त्रार्जुन ने बूढ़े जमदग्नि की हत्या कर दी । इसपर परशुराम ने अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए सहस्त्रार्जुन पर हमला कर सहस्त्रार्जुन को मार डाला वा सहस्त्रार्जुन का राज्य हथिया लिया ।
    पर सहस्त्रार्जुन की गर्भवती पत्नी तारा किसी प्रकार से वहाँ से भागने में सफल हो गई । वन में जैनियों के महामुनी शाँडिल्य ने तारा को संरक्षण दिया । जब तारा ने पुत्र को जन्म दिया तो महामुनी शाँडिल्य ने उसका नाम सुभौम रखा । युवा होने पर शाँडिल्यमुनी ने सुभौम को समस्त युद्ध कौशलों मे निपुण किया जो आगे चलकर जैन धर्म का आठवाँ चक्रवर्ती बना ।
    बाद में जब शाँडिल्यमुनी ने चक्रवर्ती सुभौम को उसके पिता सहस्त्रार्जुन की हत्या की बात बताई तो अपने पिता की हत्या बदला लेने के लिए परम चक्रवर्ती सुभौम ने पापात्मा परशुराम का वध करके अपना रज्य पुनरर्जित कर लिया ।
    इसके बाद महाबली चक्रवर्ती सुभौम ने शाँडिल्यमुनी की प्रेरणा से ब्राह्मणों का नरसंहार प्रारंभ किया वा सारी पृथ्वी को २१ बार ब्राह्मण विहीन कर डाला वा जैन धर्म के प्रचार-प्रसार वा संरक्षण में लग गया ।
    इस कथा के अनेकों वर्जन जैन वेब साइटों, जैन फोरमो, एवं जैन ब्लॉग्स पर पड़े हें ।

    हिंदू धर्म के समस्त विद्वान जानते हें कि मोर्यकाल के समय राज आश्रय मिलने के बाद जैन मतावलंबियों ने हिंदू धर्म के विरुद्ध किस प्रकार का घातक विष वमन किया । समवायांग सूत्र,
    बृहत कथा कोष, महापुराण, त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र, विकेक सार, पउमचरियं, जैनियों का पद्मम-पुरण जैनियों का हरिवंश पुराण आदि अनेक जैन ग्रंथ इतने घातक रूप से हिंदू धर्म एवम हिंदू देवी देवताओं के विरुद्ध विष-वमन से भरे पड़े कि किसी भी हिंदू की धार्मिक भावना भड़क उठे वा ४० लाख से से भी कम जनसंख्या वाले जैन मतावलंबियों का १०० करोड़ से भी अधिक जनसंख्या वाले हिंदूओं के मध्य शांतिपूर्ण अस्तिव ख़तरे में पड़ जाय।
    यह तो सौभग्य की बात थी कि अल्पसंख्या होने के कारण अथवा कायरता वश जैन अपने अंदर का हिंदूओं के विरुद्ध वैमनश्य स्पष्ट नहीं करते थे। पर दुर्भग्यवश अभी अभी जैन विद्वान, लेखक वा जैनमुनी अनेकों वेब साइटों और जैन फोरमों एवं जैन ब्लॉग्स पर हज़ार वर्ष पुराने गड़े मुर्दे ज़ोर शोर से उखाड़ रहे हें ।
    हिंदू धर्म के विद्वानों को हिंदू देवी देवताओं के विरुद्ध जैनियों इस घातक विष वमन को रोकने का यथोचित प्रयास करना चाहिए ।
    जैनी भी अगर इतिहास के गड़े मुर्दे इतिहास में गड़े रहने दें तो उचित होगा ।
    देखें : http://groups.yahoo.com/group/jainhistory/message/692
    #

    :-
    आदि शंकराचार्या की हत्या ।
    जैनी कह रहे हें कि आदि शंकराचार्या की हत्या जैनियों ने की थी ।
    एक अन्य वेब साइट पर जैनी कह रहे हें : पापात्मा आदि शंकराचार्या ने चोथी सदी में दस लाख से अधिक जैनियों का नरसंहार करा डाला वा एक लाख से अधिक जैन मंदिर तुड़वा डाले जिससे भारत वर्ष में बहूसँख्यक जैन अल्पसँख्यक हो गये ।
    वो तो ३२ वर्ष की अल्पायू में शंकराचार्य को दो जैन मुनियों ने विष देकर मार डाला अन्यथा शंकराचार्य सारी धरती के जैनियों को मरवा डालता ।
    देखें : http://groups.yahoo.com/group/jainhistory/message/841
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