बौद्ध मन्दिर - चित्र विकिपीडिया से |
भारत एवं ब्रम्ह देश का गहन सांस्कृतिक नाता रहा है। यह नाता उस देश के स्थलों के पुराने नामों में, वहाँ की पुरानी परंपराओं एवं मान्यताओं में, साहित्य, रीति-रिवाजों तथा सामाजिक धारणाओं में दिखता है। यहाँ का जीवन वैष्णव एवं बौद्घ मतों का अद्भुत समन्वय है। प्राचीन काल में विष्णु और बुद्घ एक ही मंदिर में स्थापित रहते थे।
चीनी यात्रियों ने उस समय के हिंदु राज्य के वैभव का वर्णन किया है। परंपरा के अनुसार उत्तर भारत में वैशाली से और दक्षिण भारत में पल्लव राजाओं की प्रेरणा से संस्कृति का संदेश लेकर भारतीय यहाँ आए। ऎसे ही ब्रम्ह देश के 'वर्मा' या 'वर्मन' राजा दक्षिण भारत के मूल निवासी थे। यहीं 'हरिविक्रम' ने विक्रम वंश की नींव डाली, जिसमें प्रतापी राजा हुए। उन्होंने 'श्रीक्षेत्र' नगर को अपनी राजधानी बनाया और 'शक' नाम से एक संवत् भी चलाया। उनका तथा जन साधारण का वैष्णव जीवन था। रीति और शिक्षा में हिंदु परंपराएँ आईं। भारतीय शासन प्रणाली और मनुस्मृति पर आधारित विधि स्थानिक परिस्थितियों को ध्यान में रख अपनायी गयी। इसी से देश में स्वायत्तता आई और भारतीय संस्कृति की भूमिका में वहाँ की मूल प्रकृति का विकास हुआ। सामाजिक जीवन, कला, स्थापत्य- सभी में भारतीय ढंग होते हुए भी स्वतंत्र प्रतिभा विकसित हुयी।बौद्घ मंदिरों में उत्तरी भारत के समान शिखर थे और दक्षिण भारतीय गर्भगृह। बौद्घ मत में भी वैदिक पूजा-पद्घति। वैसे ही उपासना, उत्सव, अभिषेक, समारोह वैदिक पद्घति से करने की रीति बनी। सभी उत्सवों के प्रारंभ में भगवान की प्रार्थना होती। संवत् की बारहवीं शताब्दी में 'अनव्रत' नामक राजा हुआ, जिसने 'पैगन' को राजधानी बनाया। पाली वहाँ की राजभाषा बनी। उस समय अनेक 'स्मृतियों' के पाली भाषा में अनुवाद हुए। ऎसे ही 'मान' (Mon) लोगों ने, जो अपने को 'तेलंगी' कहते थे, दक्षिण में अपनी राजधानी 'हंसावती' (आधुनिक पेगू : Pegu) बसायी। उन्हीं का 'रमम्गो' नगर आज रंगून (Rangoon ) बन गया।
पर यह जीवन आगे टिकने वाला न था। दसवीं शती में चीन की उथल-पुथल के कारण विस्थापितों की लहरें ब्रम्ह देश एवं स्याम (आधुनिक थाईलैंड) में आईं। इन्होंने ब्रम्ह देश के जीवन को हिला दिया। पर विक्रम संवत् की तेरहवीं शताब्दी में चीन के मंगोल सम्राट कुबलई खाँ के आक्रमण ने पैगन एवं श्रीक्षेत्र के मंदिर तथा प्रासाद नष्ट कर दिए।
कालचक्र: सभ्यता की कहानी
भौतिक जगत और मानव
मानव का आदि देश
सभ्यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं
अवतारों की कथा
स्मृतिकार और समाज रचना
भौतिक जगत और मानव
मानव का आदि देश
सभ्यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं
अवतारों की कथा
स्मृतिकार और समाज रचना
प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ - आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ - योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ - मंगोलिया
३३ - चीन
३४ - चीन को भारत की देन
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ - आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ - योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ - मंगोलिया
३३ - चीन
३४ - चीन को भारत की देन
३५ - अगस्त्य मुनि और हिन्दु महासागर
३६ - ब्रम्ह देश
बहुत अच्छा जानकारीपरक लेख..सर्वोत्तम में पढ़ा था इरावती नदी के बारे में..इस पोस्ट ने उसमें वृद्धि की है..."
जवाब देंहटाएंबहुत ही ज्ञान वर्धक. आभार.
जवाब देंहटाएंbahut aacha lekh...bahut kuch yaad dilate hue.
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