गुरुवार, जनवरी 17, 2008

पुराने कबीले मातृप्रधान थे

आज फ्रॉयड (Freud) , यूँग (Jung) और ऍडलर (Adler) की खोजों और मनोविश्‍लेषण (psycho-analysis) से हम शिशु जीवन की मनोरचना का और सामाजिक जीवन के लिए किस प्रकार उसके अहम् भाव और वासनाओं का ढका जाना, दमन, नियंत्रण,परिष्‍कार तथा उदात्‍तीकरण होता है, इसका अनुमान लगा सकते हैं। दूसरे उस समय की लोककथाऍं, रीति-रिवाज तथा अंधविश्‍वासों से आदि मानस की झलक पा सकते हैं। इस विचारधारा के अवशेष हमारे चाल-चलन एवं रीति-रिवाजों में रूढ़ हो गए हैं। इसके अतिरिक्‍त उसके बनाए चित्र, मूर्तियॉं, प्रतीक और सबसे अधिक पूजा-वस्‍तुऍं उसकी कल्‍पना के झरोखे हैं। पुरातत्‍व के अनुसार आदिकालीन मानव शिशु की भॉंति कल्‍पना चित्रों में सोचते, उसी प्रकार जनित भावावेश में काम करते थे। व्‍यवस्थित क्रमबद्ध विचार बाद में पाश्‍चात्‍य विद्वानों के अनुसार, लगभग ३०,००० वर्ष पहले मानव जीवन में आना प्रारंभ हुआ। भारतीय विचारकों के अनुसार यह बहुत पहले से था।

इसके पहले कि कबीले (tribe) के लोग एक साथ रह सकते, सामाजिकता का तकाजा था कि व्‍यक्तिगत मनोविकारों, कुप्रवृत्तियों और दुर्वासनाओं पर अंकुश लगे। भय, क्रोध आदि सभी पशुभाव मानव में हैं। स्‍तनपायी जीवों के समय से, जब से जीव का सामूहिक जीवन प्रारंभ हुआ, अंत:प्रवृत्ति के निर्माण का अविच्छिन्‍न क्रम मानव तक चलता आया है। यह मानव की पूर्व रचित मनोभूमिका है। उसके चाल-चलन की रचना आगे विधि-निषेधों द्वारा हुई। पर कुछ उसे वंशानुक्रम में पूर्व योनियों से भी प्राप्‍त हुआ। अनेक जातियों में सहजात निषेध ( taboo) पाए जाते हैं।

पुरातत्‍वज्ञों का अनुमान है कि पूर्व पाषाण युग के कबीले मातृप्रधान थे। उनके अनुसार इसका कारण स्त्रियों द्वारा खेती का अन्‍वेषण था। पर बाद के अन्‍वेषण पुरूषों द्वारा होने के कारण उनका महत्‍व बढ़ गया। इसलिए ये पुरातत्‍वज्ञ कहते हैं, ‘समाज पितृप्रधान हो गए।‘ यह दिमागी सैर मात्र है। आज से दो-तीन शताब्‍दी पहले जो अमेरिका, ऑस्‍ट्रेलिया या अफ्रीका में प्रस्‍तरयुगीन मानव के बचे-खुचे कबीले पाए जाते थे, वे साधारणतया पितृप्रधान थे। कुछ पुरातत्‍वज्ञ कहते हैं कि मातृप्रधान समाज अधिक ‘सभ्‍य’ अवस्‍था है। केरल में कुछ मातृप्रधान समाज हैं। वहॉं विवाहोपरांत पति को पत्‍नी के मायके में जाकर रहना पड़ता था। वहीं उन्‍हें उत्‍तराधिकार मिलता था। पर नए हिंदू कानून से उत्‍तराधिकार बदल गया। प्रस्‍तर युग में संभवतया समाज-व्‍यवस्‍था में स्‍त्री-पुरूष दोनों की समान साझेदारी थी।

दो शताब्‍दी पूर्व तक कुछ कबीले संसार में पाए जाते थे। यह आदि समाज की विकृति भी हो सकती है। फिर भी इनके जनमानस में मानसिक तथा सामाजिक विकास की प्रक्रिया दिख सकती है। ऐसे ऑस्‍ट्रेलिया के आदि निवासियों का धार्मिक, सामाजिक जीवन टोटेमवाद ( totemism) पर आधारित था। हर कबीले का एक गण-चिन्‍ह (totem) था, जो साधारणतया कोई जानवर या विरल वनस्‍पति या प्राकृतिक शक्ति होती थी। कबीला उस गण-चिन्‍ह को अपना पूर्वज मानता और उसके नाम पर जाना जाता। कबीले का विश्‍वास था कि वह उनकी रक्षा करता है और देववाणी द्वारा मार्गदर्शन करता है। गण-चिन्‍ह के साथ अनेक निषेध जुड़े थे। वे उस जानवर को मारते न थे, वरन् संरक्षण करते थे। एक गण –चिन्‍ह के लोगों में परस्‍पर विवाह-संबंध का निषेध था। रामायण काल की वानर तथा ऋक्ष (रीछ) जातियॉं ऐसी ही थीं, जिनके गण-चिन्‍ह वानर एवं ऋक्ष थे।


कालचक्र: सभ्यता की कहानी
भौतिक जगत और मानव
मानव का आदि देश
सभ्‍यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं
०१- समय का पैमाना
०२- समय का पैमाने पर मानव जीवन का उदय
०३- सभ्‍यता का दोहरा कार्य
०४- पाषाण युग
०५- उत्‍तर- पाषाण युग
०६- जल प्‍लावन
०७- धातु युग
०८- राजा उदयन की राजधानी - कौशांबी
०९- पुराने कबीले मातृप्रधान थे

गुरुवार, जनवरी 10, 2008

राजा उदयन की राजधानी - कौशांबी

सन १९५० के दशक में प्रयाग विश्‍वविद्यालय के पुरातत्‍व विभाग ने कौशांबी में उत्‍खनन प्रारंभ किया। गौतम बुद्ध के समय राजा उदयन की इठलाती राजधानी, जहॉं राजप्रासाद में दो सौ मीटर लंबे और सौ मीटर चौड़े एक दरबार का विशाल कक्ष था और उसके बीच था कमल पुष्‍पों से सुशोभित कुंड। कैसा योजित नगर। उन्‍होंने मकानों में पाया मल-जल निपटारे के लिए एक-दूसरे के ऊपर धरी तलहीन नॉंदें, जो जमीन में छह-सात मीटर नीचे तक जाती थीं और ऐसे निर्मित सोख गड्ढे। सिंधु घाटी की सभ्‍यता (जिसके चिन्‍ह सरस्‍वती नदी के लुप्‍त मार्ग से सब जगह बिखरे हैं) नियोजित नगरों के लिए-सड़कें, मार्ग, नालियॉं, जल-निकास, मंदिर, भंडार और निवास के सुख-साधनों के लिए प्रसिद्ध हैं। ये संसार के प्राचीनतम नगर थे।

मेरे साथ एक साम्‍यवादी मित्र कौशांबी गए थे। दरबार के विशाल कक्ष का ऐश्‍वर्य देखकर वे चकराए। पूछा,
'कहॉं है इतने बड़े सम्राट की साम्राज्ञी का महल?’
तो प्राध्‍यापक ने एक चार मीटर लंबे, ढाई मीटर चौड़े कक्ष को, जहॉं से सीढियॉं यमुना में जाती थीं, दिखाकर कहा,
'केवल यह कक्ष सम्राज्ञी का रनिवास दिखता है।‘
आश्‍चर्यचकित होकर मेरे मित्र ने पूछा,
'बस, इतना छोटा कमरा?’
पाश्‍चात्‍य इतिहास की कल्‍पना थी किसी आलीशान महल की।
'एक मनुष्‍य के लिए कितना स्‍थान चाहिए?’
प्राध्‍यापक बोल पड़े। कभी-कभी भारत के प्राचीन जीवन के बारे में विकृत, पूर्वाग्रहजनित धारणाऍं कैसी भ्रमित कल्‍पनाओं को जन्‍म देती है।

व्‍यापार अदला-बदली या वस्‍तु-विनिमय (barter) द्वारा प्रारंभ होना कहा जाता है। पर शीघ्र ही इसके लिए मुद्रा की आवश्‍यकता हुई। वस्‍तु के लिए स्‍वर्ण में मूल्‍य देना भारत में ही प्रारंभ होकर सारी सभ्‍यताओं में फैला। व्‍यापार का प्रमुख केन्‍द्र भारत था। इसके कारण यहॉं के विचार एवं रीति-रिवाज दूसरी सभ्‍यताओं में पहुँचे। स्‍वर्ण विनिमय ने मुद्रा (currency) में स्‍वर्ण मानक (gold standard) को जन्‍म दिया, जो संसार पर बीसवीं सदी तक छाया रहा। स्‍वर्ण का भारतीय जीवन में बहुत बड़ा महत्‍व है। संसार की सबसे पुरानी ( और गहरी) सोने की खान, कोलार, भारत में है। यहॉं सदा से स्‍वर्ण आभूषण पहनने का चलन था। प्राचीन काल में यहॉं के स्‍वर्ण ने भारत को स्‍वर्ण देश (‘सोने की चिड़िया’) नाम दिलाया।

लौकिक उन्‍नति के साथ न्‍यायपूर्ण सामाजिक रचना और उसके लिए उपयुक्‍त विचारों की आवश्‍यकता पड़ती है। विचारों ने मानव जीवन को सार्थक और उदात्‍त बनाया, ‘सत्‍यं शिवं सुंदरम्’ की अनुभूति दी। दूसरी ओर कभी-कभी क्रूरतम, नीच, राक्षसी और भयंकर विकृति तथा दारूण दु:ख को जन्‍म दिया। यह चिंतन समाज के उष:काल का होने पर भी इसके पीछे मानव की पिछली सभी पीढ़ियों के संचित अनुभव हैं और है उसके मन की सानुबंध निर्मिति। इस भूमिका में ही उस काल के चिंतन का अनुमान कर सकते हैं।


कालचक्र: सभ्यता की कहानी
भौतिक जगत और मानव
मानव का आदि देश
सभ्‍यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं
०१- समय का पैमाना
०२- समय का पैमाने पर मानव जीवन का उदय
०३- सभ्‍यता का दोहरा कार्य
०४- पाषाण युग
०५- उत्‍तर- पाषाण युग
०६- जल प्‍लावन
०७- धातु युग
०८- राजा उदयन की राजधानी - कौशांबी

मंगलवार, जनवरी 01, 2008

धातु युगः सभ्‍यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं

यातायात के साधनों के आविष्‍कार के बाद धातु का युग आया, जिससे मानव जीवन में एक बड़ा परिवर्तन आना था। वेदों में धातुओं का वर्णन है। ऋग्‍वेद में अयस (लोहा) एवं हिरण्‍य (सोना) और यजुर्वेद में इनके अतिरिक्‍त तॉंबा (copper), कॉंसा (bronze), सीसा (lead) और रॉंगा (tin) का भी वर्णन है। यजुर्वेद में अयस्‍ताप यंत्र (iron smelter) का भी उल्‍लेख आया है जो खनिज को लकड़ी, कोयला आदि के साथ तपाकर धातु बनाता था। भारत को इतिहास में स्‍वर्ण देश ( जहॉं सोना पैदा होता है) कहा गया है। भारत ने संसार को स्‍वर्ण मानक (gold standard) दिया। राजस्‍थान में तॉंबे की प्राचीन अपसर्जित खदानों के चिन्‍ह हैं, जिनमें दो-तीन सहस्‍त्र वर्ष पूर्व खनिज समाप्‍त होने पर काम बंद हो गया। तॉंबे का प्रयोग हथियार, औजार और पात्र बनाने में होता था। धीरे-धीरे प्रस्‍तर का स्‍थान ताम्र उपकरणों ने ले लिया।

तॉंबे की धार जल्‍दी नष्‍ट हो जाती है, पर यदि तॉंबे और रॉंगे की मिश्र धातु (alloy) बनाई जाए तो कॉंसा होकर कठोर हो जाती है। इसका प्रयोग सिंधु घाटी की सभ्‍यता के प्रारंभ से हम देखते हैं। भारत में तॉंबा और जस्‍ता (Zinc) के खनिज साथ-साथ प्राप्‍त होते हैं। इनकी मिश्र धातु पीतल (brass) का बीसवीं सदी तक भारत में प्रयोग होता रहा है। पुरातत्‍वज्ञ इन यूरोपीय प्रागैतिहासिक कालखंडों को कॉंस्‍य काल ( bronze age) कहकर पुकारते हैं। तभी लौह काल (iron age) आया। संभवतया लौह पाइराइट (iron pyrites) को भट्ठी में कोयला (यह भारत में साथ-साथ उपलब्‍ध है) तथा लकड़ी के साथ जलाकर लोहा प्राप्‍त किया गया। वैसे ही जैसे बस्‍तर के वनवासी आज तक करते चले आए हैं। लोहे के सर्वश्रेष्‍ठ हथियारों के लिए भारत प्रसिद्ध था। लोहे के हथियारों से मानव जीवन की कायापलट हो गई। कहते हैं कि लौह युग आज तक चला आता है। पर भारत में बहुत पहले से धातु का कालखंड था और भिन्‍न धातुओं के कालखंड का विभाजन न था।

सुमेर और मिस्‍त्र, दो प्राचीन सभ्‍यताओं के प्रदेश में तॉंबा, लोहा आदि धातुओं के खनिज अप्राप्‍य थे। इसी प्रकार राल, लकड़ी तथा कोयला भी बाहर से आयात करना पड़ता था। ये सब वस्‍तुऍं भारत में आसपास प्राप्‍त होती थीं। स्‍पष्‍ट है कि खान से धातु का ओषिद (oxide) प्राप्‍त कर उसे कोयला, राल तथा लकड़ी के साथ जपाकर, अर्थात उस क्रिया द्वारा जिसे रसायन शास्‍त्र में अपचयन (reduction) कहते हैं,धातु प्राप्‍त करने की विधि पहले-पहल भारत में खोजी गयी।

सभ्‍यता के चरण धातु के अन्‍वेषण के बाद द्रुत गति से बढ़े। जहॉं कृषि एवं पशुपालन द्वारा मानव ने विज्ञान में पहला कदम उठाया वहॉं दूसरा बड़ा कदम नए-नए आविष्‍कारों का था। मकान, मृद्भांड और वस्‍त्र बनाने की विधि का आविष्‍कार पहले हो चुका था। गाड़ी और पालदार नाव सरीखे यातायात के साधनों का उपयोग करना आ गया था। हथियार तथा बरतनों के लिए धातु का प्रयोग प्रारंभ हुआ। नए आविष्‍कारों ने सामाजिक क्रांति कर दी। प्रथमत: विशेष कार्य करने वाले कुछ वर्ग –ठठेरा, बढ़ई, कुम्‍हार, लोहार आदि बने। धीरे-धीरे ये अपने व्‍यवसाय पर आश्रित हो गए और खेती से इनका संबंध टूट गया। व्‍यक्ति और ग्राम स्‍वयं में पूर्ण न होकर परस्‍परावलंबी बने। दूसरे, नए-नए अन्‍वेषणों से संपत्ति का सृजन हुआ। इससे व्‍यापार प्रारंभ हुआ। यह सारा क्रम भारत में स्‍पष्‍ट है। सिंधु, सुमेर और मिश्र में घटती वर्षा और शुष्‍क होती भूमि ने मानव को नदी के किनारे बसने के लिए विवश किया, जहॉं कृषि तथा व्‍यक्तिगत आवश्‍यकताओं के लिए पर्याप्‍त जल था। नदी किनारे के दलदलों का जल निकालने, झाड़-जंगल साफ करने, बाढ़ को सँभालने के लिए बॉंध बनाने और दूर शुष्‍क स्‍थान पर नहरें ले जाने तथा व्‍यापार की आवश्‍यकताओं ने मानव को बड़े समूहों में, नगर में बसने के लिए बाध्‍य किया। नदियों द्वारा व्‍यापार आसानी से होता था। इस प्रकार नगर-क्रांति मानव जीवन में आई। प्राचीन ग्रंथों में अर्जुन को नगर सभ्‍यता का जन्‍मदाता कहा गया है।

आज भ्रमवश नगर-क्रांति को मानव सभ्‍यता का उदय कहते हैं। पर सभ्‍यता के चरण वहॉं से प्रारंभ हुए जब कुटुम्‍ब मानव जीवन की इकाई बना अथवा मानव ने कबीले के रूप में रहना प्रारंभ किया। यह भी कारण है कि यूरोपीय विद्वानों ने संसार के प्रथम कृषि देश, भारत को दुर्लक्ष्‍य किया। सभ्‍यता का सबसे बड़ा पग था कृषि उद्योग के कारण ग्राम्‍य बस्तियों का सृजन। इस कृषि सभ्‍यता का लाख वर्ष का जीवन, जिसके बाद नगरों की अथवा बड़ी बस्तियों की हलचल प्रारंभ हुई, इन्‍होंने ओझल कर दिया।

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मानव का आदि देश
सभ्‍यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं
- समय का पैमाना
- समय का पैमाने पर मानव जीवन का उदय
- सभ्‍यता का दोहरा कार्य
- पाषाण युग
- उत्‍तर- पाषाण युग
- जल प्‍लावन
७- धातु युग

सोमवार, दिसंबर 24, 2007

जल प्‍लावनः सभ्‍यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं

दूसरी बहुत बड़ी घटना जल प्‍लावन की है। तृतीय हिमाच्‍छादन के समय भूमध्‍य सागर का अस्तित्‍व दो झीलों के रूप में था, जो नदी द्वारा संबद्ध हो सकती थीं। पूर्वी झील में, जो शायद मीठे पानी की थी, नील नदी और आसपास का जल आता था। भूमध्‍य सागर आज भी एक प्‍यासा सागर है। सूर्य के ताप से पानी अधिक उड़ने के कारण वह सिकुड़ता है, जैसे आज कश्‍यप सागर और मृत सागर (Dead Sea) सिकुड़ रहे हैं। इस संकुचन को दूर करने के लिए आज पानी अटलांटिक महासागर से जिब्राल्‍टर जलसंधि होकर तथा काला सागर से दानियाल (Dardanelles) जलसंधि होकर भूमध्‍य सागर में आता है। काला सागर को आवश्‍यता से अधिक जल नदियों से प्राप्‍त होता है। जब भूमध्‍य सागर की घाटी दोनों ओर सागरों से संबद्ध न थी तब जहॉं आज नील सागर लहराता है वहॉं हरी-भरी घाटी में मनुष्‍य स्‍वच्‍छंद घूमते थे।

पर हिमाच्‍छादनस की बर्फ पिघलने से महासागरों के जल की सतह ऊपर उठने लगी। तभी संभवतया किसी आकाशीय पिंड ने पास आकर भयंकर ज्‍वार-तरंगे उत्‍पन्‍न कीं। फलत: अटलांटिक महासागर का जल पश्चिम से यूरोप और अफ्रीका के बीच की घाटी में फूट निकला। उसने मिट्टी बहा दी। आज भी अटलांटिक महासागर से जिब्राल्‍टर जलसंधि होकर भूमध्‍यसागर तल तक एक गहरा गलियारा रूपी महाखड्ड विद्यमान है। वहॉं की सीधी चट्टानों को ‘हरकुलिस’ के स्‍तंभ (Pillars of Hercules) कहते हैं। हरकुलिस (हरि + कुलि:, बलराम का दूसरा नाम) के साहसिक कार्यों की कहानियॉं विदित हैं। इस महा विपत्ति की कल्‍पना करें। सारे संसार में ज्‍वार तरंगे उठीं। पहले थोड़ी धारा में और फिर भयंकर गहराता सागर ‘भूमध्‍य घाटी’ की झीलों के किनारों की आदिम बस्तियों पर उमड़ पड़ा। शनै:-शनै: वह खारा पानी बस्तियों और पेड़ों के ऊपर पहाड़ों को छूने लगा। वहॉं पनपता सभ्‍यता का बीज मिट गया और अफ्रीका का यूरोप से स्‍थल-संबंध टूट गया। अफ्रीकी प्रजातियों का बड़ी मात्रा में यूरोप में निर्गमन समाप्‍त हुआ। प्रारंभिक मानव इतिहास के कुछ रहस्‍यों को गर्भ में धारण किए आज भूमध्‍य सागर लहरा रहा है।


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- सभ्‍यता का दोहरा कार्य
- पाषाण युग
- उत्‍तर- पाषाण युग
६- जल प्‍लावन

रविवार, दिसंबर 16, 2007

उत्‍तर- पाषाण युगः सभ्‍यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं

उत्‍तर- पाषाण (Upper Paleolithic) युग के प्रारंभ में दो बहुत बड़े परिवर्तन पृथ्‍वी पर हुए। प्रथम, उत्‍तरी अफ्रीका एवं दक्षिण-पश्चिम एशिया की जलवायु बदलने लगी। वर्षा कम हो गई और घास के मैदान मरूस्‍थल बनने लगे। सहारा का रेगिस्‍तान तभी बना और रेगिस्‍तान के बीच नील नदी की धारा मिस्‍त्र की जीवन-धारा बनी। अरब (अर्व देश, अर्वन = घोड़ा), गांधार (आधुनिक कंधार) और थार के मरूस्‍थल तभी बने। जहॉं कहीं पानी बचा, वह मरूद्यान (oasis) बन गया। इन प्रदेशों के वन्‍य-पशु और मनुष्‍य इन्‍हीं जल-स्‍त्रोंतों के समीप रहने को बाध्‍य हुए। कुत्‍ता मानव के साथ पहले से था। पांडवों के साथ कुत्‍ते के भी हिमालय जाने की कथा है। चारा खाकर रह सकने वाले पशु –गाय-बैल, भेड़, बकरी, सुअर आदि मरूद्यानों के समीप चक्‍कर काटने लगे। भैंस संभवतया बाद में मानव जीवन में आई। कहते हैं, एक बार विश्‍वामित्र ने वसिष्‍ठ के यहॉं से कामधेनु को ले जाना चाहा। पर वह छूटकर वापस भाग गई तो उन्‍होंने एक नई सृष्टि-रचना की, जिसमें गाय के स्‍थान पर भैंस थीं। मनुष्‍य ने हिंसक जंतुओं से उनकी रक्षा की और खेत का चारा उन्‍हें दिया। वे मनुष्‍य के ऊपर निर्भर हो गई। इस प्रकार या अन्‍य कारणों से पशु का साथ होने पर मानव ने पशुपालन सीखा।

भारत में थार का मरूस्‍थल बनना शुरू हो गया था। तब राजस्‍थान और सिंध की भूमि ऊपर उठने से जहॉं एक ओर सॉभर जैसी खारे पानी की झील बच गई वहॉं दूसरी ओर एक बालुकामय खंड निकल आया। किसी समय राजस्‍थान में पर्याप्‍त वर्षा होती थी; पर विश्‍व की बदलती जलवायु ने उसे शुष्‍क रेगिस्‍तान बना दिया। यहॉं की नदियाँ सूख गई। आज भी राजस्‍थान के बीच सरस्‍वती नदी ( जिसे कहीं ‘घग्‍घर’ भी कहते हैं) का शुष्‍क नदी तल सतलुज के दक्षिण, कुछ दूर उसके समानांतर,कच्‍छ के रन तक पाया जाता है।

कुछ पुरातत्‍वज्ञों का मत है कि आज जिस प्रदेश को पंजाब कहते हैं उसे कभी ‘सप्‍तसिंधव:’, सात नदियों की भूमि कहते थे। कुछ कहते हैं कि यमुना भी पहले सरस्‍वती के साथ राजस्‍थान और कच्‍छ या सिंधु सागर में गिरती थी। गंगावतरण के बाद गंगा की किसी सहायक नदी ने धीरे-धीरे यमुना को अपनी ओर खींच लिया। उनके कहने के अनुसार आधुनिक पंजाब की पॉंच नदियॉं—सतलुज ( शतद्रु), व्‍यास ( विपाशा), रावी (परूष्‍णी), चेनाब ( असक्री), झेलम ( वितस्‍ता) और सरस्‍वती तथा यमुना मिलकर सात नदियॉं सिंधु सागर में मिलती थीं। इन्‍हीं के कारण ‘सप्‍तसिंधव:’ नाम पड़ा। कुछ अन्‍य कहते हैं कि सप्‍तसिंधु में सरस्‍वती एवं सिंधु नदी और उनके बीच बहती पॉंच नदियॉं गिननी चाहिए। परंतु विष्‍णु पुराण के एक श्‍लोक में सात पवित्र नदियों के नाम इस प्रकार हैं—‘गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्‍वती। नर्मदे सिंधु कावेरी (जलेस्मिन सन्निधिं कुरू)।‘ इस प्रकार हिमालय के दक्षिण के संपूर्ण देश को ही ‘सप्‍तसिंधु’ कहते थे।

कालचक्र: सभ्यता की कहानी
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मानव का आदि देश
सभ्‍यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं
- समय का पैमाना
- समय का पैमाने पर मानव जीवन का उदय
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- पाषाण युग
५- उत्‍तर- पाषाण युग