रविवार, अगस्त 15, 2010

स्पेन निवासियों का आगमन

विक्रम संवत् की नौवीं शताब्दी से मध्य अमेरिका का दृश्य बदलने लगा। उत्तरी मेक्सिको से एक बर्बर जाति ने आक्रमण किया। वे देवताओं को रक्त एवं बलि चढ़ाते थे। दंतकथाएँ कहती हैं कि
'सर्वहितकारी पंखधारी सर्प (benevolent Quetzalcoatl) भाग गया और मध्य मेक्सिको ने आकाश और युद्घ के देवताओं के उन क्रूर पांथिक कृत्यों व अनुष्ठानों के प्रति आत्मसमर्पण कर दिया, जो मानव रक्त व बलि के प्यासे थे।'
उस समय से अपना रक्त तथा पशुबलि देवता को चढ़ाना पुण्य कर्म  और त्याग का लक्षण माना जाने लगा (जैसा मुसलमान कहते हैं)। इन्हीं को देखकर कुछ पुरातत्वज्ञ इन्हें क्रूर सभ्यताएँ कहते हैं। पर इस तरह का भटकाव उनके जीवन का स्थायी भाव न था। ये शांति काल की सभ्यताएँ कही जा सकती हैं। देवताओं को रक्त एवं बलि (विशेषकर मानवबलि) तो युद्घ की छाया में प्रकट होती है। अपना रक्त देवता की संतुष्टि के लिए चढ़ाना और बलि देना त्याग भाव का दुरूपयोग है। धीरे-धीरे यह प्रथा दक्षिण अमेरिका की सभ्यता में फैली। संस्कृति के प्रेरणा केंद्र भारत एवं दक्षिण-पूर्व एशिया से इस मध्य तथा दक्षिण अमेरिका की संस्कृति का संबंध टूट चुका था। ऎसे समय इन शांतिकालीन सभ्यताओं में भी विकृति उत्पन्न हुयी।

स्पेनी इंका के आखरी राजा ट्यूपैक आमरू का वध करते हुऐ
पर ये सभ्यताएँ यूरोपीय साम्राज्यवाद की दानवता और बीभत्सता, उसकी विभीषिका से कैसी अनभिज्ञ थीं और उसका शिकार बनीं, इतिहास के पन्ने इसी को रोते हैं। स्पेन का आक्रमण विक्रम संवत् की सोलहवीं शताब्दी में प्रारंभ हुआ। आसुरी लुटेरों ने कैसे अत्याचार किए, स्वर्ण-मोती-माणिक्य लूटे, उसके लिए नारकीय यातनाएँ दीं, मंदिर, भवन और कलाकृतियाँ तोड़ीं, ज्ञान-विज्ञान की धरोहर जहाँ थी वे अमूल्य पुस्तकें जलाईं तथा शिलालेख ध्वस्त किए। आंग्ल विश्वकोश ने लिखा है,
'इन्का की धार्मिक संस्थाएँ मूर्तिपूजा के विरूद्घ युद्घ घोषित कर निष्ठुरता से कुचली गयी। इन्का को गुलाम बनाकर खदानों में व बलात् श्रम में लगाया गया।'
 
स्पेनी सेनापति हरनान कोर्टेस ने लिखा है कि जब क्षत-विक्षत बंदी अवस्थ में मय लोगों को पकड़कर उसके समक्ष लाया गया तो राजा की गर्वोक्ति थी,
'तुम मुझे राजा समझते हो, पर मैं राजा नहीं हूँ। मैं उनका प्रतिनिधि हूँ। वे जब सुनेंगे कि तुमने मेरे साथ ऎसा व्यवहार किया है तो वे रोष में तृतीय नेत्र खोलकर तुम्हें भस्म कर देंगे।'
पर उसे क्या पता था कि उसके कुछ शताब्दी पहले ही तृतीय नेत्र खोलनेवाले देवता के देश का एक भाग स्वयं पददलित हो स्वतंत्रता खो बैठा था।

सम्राट अतहुल्य को धोका देकर काज़ामारका की लड़ाई में पकड़ते हुऐ स्पेनी
शरद हेबालकर ने अपनी पुस्तक में इन सभ्यताओं के साथ निर्मम बलात्कार का वर्णन 'मानव जाति के इतिहास का काला पृष्ठ' कहकर किया है-
'उस समय इन्का सम्राट् 'अतहुल्य'  राजपद पर था। स्पेनी प्रतिनिधियों ने उसे मिलने एवं भोजन हेतु आमंत्रित किया। मनुष्य के कपट और दुष्ट हृदय की कल्पना से अनजान वह निष्कपट सम्राट् शुद्घ मैत्री भाव से निर्भयतापूर्वक गिने-चुने सैनिकों के साथ पालकी में बैठकर स्पेनिश आमंत्रण का सम्मान करने गया।--और, वह वापस न लौट पाया।--स्पेनिश लोगों ने अकारण विश्वासघात से उस सम्राट् की हत्या की और फिर—ये आसुरी आक्रामक असावधान इन्का सैनिकों पर टूट पड़े।-- सबका नाश हुआ। उन्होंने इन्का राजधानी में जो प्रवेश किया, वह भी भयंकर। जो मार्ग में आए उनका संहार किया। बड़े-बड़े प्रासाद जलाकर नष्ट किए। इन्काओं के सूर्य मंदिर में जब ये स्पेनिश आक्रामक घुसे तो आश्चर्य व प्रसन्नता से मानो पागल हो गए। स्वर्ण की भूमि, स्वर्ण की दीवारें, स्वर्ण की छत, स्वर्ण और रजत के झूमर, रत्नदीप। इतना स्वर्ण ! मात्र राजधानी के एक मंदिर में ! उन्होंने कभी इतना स्वर्ण देखा न था। वे लोभी लुटेरे टूट पड़े उसपर । यह तो थी भौतिक संपदा; पर वास्तविक संपदा दूसरी थी। इस नगरी में शब्दश: सहस्त्रावधि प्राचीन अमूल्य ग्रंथ थे। ईसा मसीह के इन स्पेनी लालों (?) ने, जंगलीपन की परिसीमा कर, इन्काओं की इस साक्षात् विद्या देवी की भी भरे बाजार में होली जलाई।'
आगे वे लिखते हैं,
'मय संस्कृति, इन्का अथवा 'आस्तिक' संस्कृति को लगभग ४०० वर्षों तक बहुत सहना पड़ा। उन संस्कृतियों को नष्ट करने का बृहत् प्रयास ईसाई मिशनरियों ने किया। उनके धर्म-ग्रंथ, विज्ञान-ग्रंथ नष्ट किए। उनके आचारों, रूढ़ियों, परंपराओं पर बंधन लगाए। इन दुष्ट असुरों ने इन्का माता-बहनों को भी भ्रष्ट किया। इतनी विशाल, महाभयंकर विपत्तियों का सामना कर आज भी टिकी हुयी उनकी जो समाज-जीवन की रचना है, उसका दर्शन करते हुए पग-पग पर उसकी श्रेष्ठता का भान होता है, ये समाज भारतीय हैं।'
प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत
०८ - अक्कादी
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ -  आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ -  योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ -  मंगोलिया
३३ - चीन
३४ - चीन को भारत की देन 
३५ - अगस्त्य मुनि और हिन्दु महासागर
३६ -  ब्रम्ह देश 
३७ - दक्षिण-पूर्व एशिया
३८ - लघु भारत 
३९ - अंग्कोर थोम व जन-जीवन
४० - श्याम और लव देश
४१ - मलय देश और पूर्वी हिन्दु द्वीप समूह
४२ - चीन का आक्रमण और निराकरण
४३ - इस्लाम व ईसाई आक्रमण
४४ - पताल देश व मय देश
४५ - अमेरिका की प्राचीन सभ्याताएं और भारत
४६ - दक्षिण अमेरिका व इन्का
४७ - स्पेन निवासियों का आगमन

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