पूर्वी जावा में एक हिन्दू मन्दिर
रामायण काल के पहले से भारत का नाता दक्षिण-पूर्व एशिया से चला आया है। किंवदंती है कि मलय प्रायद्वीप में कभी अराजकता छायी थी। वहाँ के लोगों ने त्राण के लिए भगवान से प्रार्थना की। तब एक दिन उनके प्रथम राज महामेरू पर्वत से प्रकट हुए। यव द्वीप में विश्वास है कि उनके मध्य अवस्थित पर्वत ही मेरू पर्वत है, जिसपर सारी दुनिया टिकी है। वाल्मीकीय रामायण में सुग्रीव पूर्व दिशा की ओर इंगित कर आदेश देते हैं कि
'सीता जी का पता लगाने के लिए यत्न से सप्त राज्यों से सुशोभित यव द्वीप, स्वर्ण एवं रूप्यक द्वीपों में खोजो। यव द्वीप के पार शिशिर नामक पर्वत है, जिसके शिखर स्वर्ग को छूते हैं और जहाँ देव एवं दानवों का निवास है (वहाँ खोजो)।'महाभारत में वहाँ की जातियों का वर्णन है, जिन्होंने उस जागतिक युद्घ में भाग लिया।
इंडोनीशिया में शिव मन्दिर
विक्रम संवत् की छठी शताब्दी के चीनी यात्री फाहियान ने यव द्वीप से भारत की नियमित 'अत्यंत सुविधाजनक यात्रा' का वर्णन किया है, जहाँ बराबर जलयान चलते थे, जिनका मार्गदर्शन तथा प्रबंध शासकीय एवं जन-संस्थाएँ करती थीं। मलय के पुरातात्विक अवशेष भारत की महिमा गाते हैं। नृसिंह की मुखाकृति, आदि शक्ति, गणेश, नंदी, मूर्तियों से सज्जित शिवालय, बुद्घ भगवान की मूर्तियाँ, बोधिसत्व एवं प्रमुख भिक्षुओं के नामांकित सोने-चाँदी की थालियाँ और अन्य भारतीय प्रतीकयुक्त मूर्तियाँ तथा कलाकृतियाँ, चौथी शताब्दी के शिलालेख और उनकी ब्राम्ही लिपि भारत का ऋण बता रहे हैं। दक्षिण-पूर्व क्षेत्र के संस्कृत भाषा के शब्द तथा उनके अपभ्रंश भरे पड़े हैं।
उस समय सुमात्रा एवं यव द्वीप में प्रसिद्घ शैलेंद्र वंश का शासन था। सुमात्रा की रत्नजड़ित राजधानी थी श्रीविजय। कहते हैं, नालंदा के समान भारतीय विश्वविद्यालय श्रीविजय में स्थापित थे। इस क्षेत्र के महाप्रतापी राजवंशों का, उनके कर्तृत्व का हृदयग्राही वर्णन शरद हेबालकर ने अपनी पुस्तक 'भारतीय संस्कृति का विश्व-संचार' में किया है। अनेक चीनी विद्यार्थी प्रवेश लेने के पहले इस क्षेत्र में रहकर भारतीय जीवन एवं दर्शन की बानगी ले संस्कृत, व्याकरण और भाषा में दक्ष हो भारतीय विश्वविद्यालयो में प्रवेश लेने जाते। यव द्वीप के 'ब्रम्हांड पुराण' में अनेक पुराणों का सार एवं मनु और देवी-देवताओं की लीला का वर्णन है। दूसरे ग्रंथ 'अगस्त्य पर्व' में अपने पुत्र के पूछने पर अगस्ति ऋषि उसे संसार की उत्पत्ति, प्रलय, स्वर्ग-नरक और भिन्न प्रकान की जातियों एवं चरित्र के बारे में हिंदु धारणाएँ बताते हैं।
इसी कालखंड में जाता का प्रसिद्घ बोरोबुदुर का नौमंजिला विशाल स्तुप निर्मित हुआ, जैसा किसी अन्य देश में नहीं है- बुद्घ की जन्मस्थली भारत में भी नहीं। स्तूप के अंदर दो मील लंबी मंडलाकार सीढ़ियाँ हैं, जिनके किनारे महायान और जातक कथाओं के लगभग डेढ़ सहस्त्र शिल्प उकेरे गए हैं। उसी से थोड़ी दूर है 'चंडी मेडत' (मंदिर का मंडप), जहाँ दो बोधिसत्वों के बीच बुद्घ विराजमान हैं। उसी प्रकार यव द्वीप की प्रंबनन घाटी का १५६ मंदिरों का कुंज है 'लारा जोग्रांग' में। मध्य में ८ मंदिर हैं। उनके चारों ओर प्रचीरों से विभाजित चार पंक्तियाँ मंदिरों की हैं। यहाँ लगभग ३० मीटर लंबा-चौड़ा शिव मंदिर है, जहाँ शिव-पार्वती की मूर्तियाँ हैं। उसके २ मीटर चौड़े परिक्रमा पथ पर हैं राम के वनवास, सीता-हरण, बाली-वध और लंका पर अभियान के दृश्य। द्वीप के मध्यवर्ती पठार पर पाँचों पांडवों के मंदिर और उनके साथ शिखंडी तथा घटोत्कच के मंदिर हैं। सभी मत-मतांतरों का समन्वित संगम !
क्षेत्र में इसलाम का बोलबाला होने के बाद भी आज हिंदु जीवन उनकी परंपराओं और रीतियों में दिखता है। जावा की आज की राजधानी 'जकार्ता' के रेल स्थानक में प्रवेश के पहले गणेश की मूर्ति है, 'यात्री को मंगलमय यात्रा का आशीर्वाद देने के लिए।' आज भी वे अपनी राष्ट्रभाषा को 'भाषा' (Bahasa) कहते हैं। रामायण का उत्साहपूर्वक नाट्य-मंचन उनके सार्वजनिक जीवन का अंग है। भारत में इंडोनेशिया के प्रथम राजदूत अपनी दोनों पुत्रियों-सावित्री एवं जावित्री- के साथ दिल्ली की रामलीला देखने गए तो अन्य राजदूतों को कितूहल हुआ। उन्होंने बताया कि उनकी पुत्रियों ने उस सांस्कृतिक कार्यक्रम में अभिनय भी किया है। उनकी वायु सेवा का नाम आज भी 'गरूड़ एयरवेज' (Garuda Airways) है। साहित्य और नाटकों में हैं रामायण एवं महाभारत की कहानियाँ। बाली द्वीप की नब्बे प्रतिशत जनता आज भी हिंदु है, जो अपने विशुद्घ संस्कृत उच्चारण पर गर्व करती है।
चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से
कालचक्र: सभ्यता की कहानी
भौतिक जगत और मानव
मानव का आदि देश
सभ्यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं
अवतारों की कथा
स्मृतिकार और समाज रचना
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प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ - आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ - योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ - मंगोलिया
३३ - चीन
३४ - चीन को भारत की देन
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ - आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
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२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
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२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ - मंगोलिया
३३ - चीन
३४ - चीन को भारत की देन
३५ - अगस्त्य मुनि और हिन्दु महासागर
३६ - ब्रम्ह देश
३७ - दक्षिण-पूर्व एशिया
३८ - लघु भारत
४१ - मलय देश और पूर्वी हिन्दु द्वीप समूह
informative and exlusive post
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