शनिवार, जून 05, 2010

लघु भारत

कौंडिन्य के वंशजों में फूनान साम्राज्य के प्रतापी सोमवंशी राजा चंद्रवर्मा, जयवर्मा, रूद्रवर्मा आदि हुए जिन्होंने हिंदु संस्कृति की दुंदुभि बजायी। अन्य राज्यों को दूत भेजकर संबंध स्थापित किए। हिंदु जीवन के प्रचारक एवं बौद्घ भिक्षु चीन तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में और सुदूर द्वीपों में भेजे। कहते हैं कि विक्रम संवत् की चौथी शताब्दी के अंत में द्वितीय हिंदुकरण का प्रवाह 'चंदन' नामक एक भारतीय के फूनान क्षितिज में प्रकट होने से प्रारंभ होता है। विक्रम संवत्  की पंचम शताब्दी के आते भारत से एक ब्राम्हण 'कौंडिन्य' द्वितीय का शुभागमन हुआ। उसके स्वागत में फूनान की जनता ने सार्वजनिक खुशियाँ मनायी। उसने भारतीय प्रतिमान पर सामाजिक, विधिक और प्रशासनिक सुधार लागू किए। आंग्ल विश्वकोश के अनुसार, यह पौराणिक महापुरूष जैसा भी मिथक हो, उसके फूनान आगमन के भव्य समारोह का वर्णन भारतीय संस्कृति की नवीन अनुप्रेरणा के मोहक तथा युग-प्रवर्तक महत्व को प्रदर्शित करता है। कारण, द्वितीय कौंडिन्य (जिसने राजा चुने जाने पर जयवर्मन उपाधि धारण की) के समय फूनान समुत्कर्ष के शिखर पर जा पहुँचा। यह कौंडिन्य द्वितीय, जो हिंदु संस्कृति का नव संदेश लेकर फूनान आया, कौंडिन्य प्रथम के घराने का कहा जाता है। वह स्वयं शैव मतावलंबी था, जबकि उसका पुत्र गुणवर्मन और रानी वैष्णव थे। एक दूसरे राजा राजेंद्रवर्मन द्वितीय ने भगवती का मंदिर और स्वर्ण प्रतिमा स्थापित की। इस प्रकार भारत की तरह सभी मत, शैव, वैष्णव एवं शाक्त साथ-साथ फले-फूले। सब हिंदु राज्य उतार-चढ़ाव के बीच पंद्रह शताब्दियों तक चलते रहे।

उस समय के संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण शिलालेख फूनान साम्राज्य और कंबोज का गौरवपूर्ण इतिहास बताते हैं। एक शिलालेख में कौंडिन्य का उल्लेख आता है। संस्कृत भाषा, वर्णमाला एवं लिपि, भारतीय गाथाएँ, रामायण, महाभारत तथा पंचतंत्र की कहानियाँ, पुतली का नाच और नौटंकी की विषय-वस्तु, कलाएँ, धीरे-धीरे विकसित होता सामाजिक जीवन, देवता एवं स्थापत्य, सभी भारतीय प्रभाव की महिमा गाते हैं। वायु सर्वेक्षण से दिखता प्राचीन नहरों का जाल भारतीय कृषि, जल-संरक्षण तथा अभियंत्रण की विजय की कहानी है। कहा जाता है, वहाँ की विस्तृत छिछली झील 'तांगले (टोन्ले) साप' (Tonle Sap : शाब्दिक अर्थ 'विशाल झील') १२५ किलोमीटर लंबी और साधारणतया २५ किलोमीटर चौड़ी, मानव निर्मित है, जैसे भागीरथी की धारा है। यह एक बृहत् जलाशय है जो मीकांग (Mekong) ( 'माँ गंगा') नदी से दोनों ओर बहने वाली 'उदांग' (टोन्ले साब : Tonle Sab) नदी के द्वारा जुड़ा है।

सूर्यास्त समय का मीकांग नदी का दृश्य विकिपीडिया से

यह है 'माँ गंगा' (Mekong)  नदी। जहाँ कहीं भारतीय गए, पवित्र गंगा उनके साथ गयी। यह फूनान का चमत्कार कहना चाहिए कि मध्य एवं दक्षिणी चीन की सभी नदियाँ गंगा हैं। ऎसे ही 'यांग्टेजी' (Yangtze)  नदी और उसकी सभी उत्तर एवं दक्षिण की सहायक नदियाँ गंगा, 'क्यांग' (Kiang  या Chiang ) कहलाती हैं। वियतनाम में साम्यवादी शासन आने के बाद ही 'लाल नदी' तथा 'काली नदी' नाम उत्तरी प्रांत में रखा जा सका।

चीन के राजवंशीय पूर्ववृत्त में फूनान का उल्लेख एक समृद्घशाली राज्य के रूप में आया है। जहाँ साधारण लोग नंगे घूमते, पर स्वर्ण, मोती, माणिक्य के गहने पहनते। संपन्न लोग जरी के कपड़े पहनते और अलंकार धारण करते। राजा हाथी को वाहन के रूप में प्रयोग करते। इस वर्णन से कुछ पुरातत्वज्ञ उस समाज में गुलामों की कल्पना करते हैं जो भारतीय संस्कृतोन्मुख समाज के लिए सम्यक अवधारणा नहीं है। वैसे साधारणतया वस्त्र इस प्रदेश में कटि से नीचे घुटने तक ही पहना जाता था। चीनी यात्रियों ने फूनान एवं कंबोज की समृद्घि का वर्णन करते समय आश्चर्य से कहा है कि साधारण जनता भी सोना-चाँदी, मोती-माणिक्य के रूप में कर देती थी। इस क्षेत्र में भारतीय सांस्कृतिक प्रभाव चीन को अच्छा नहीं लगा, यद्यपि शैव एवं वैष्णव के साथ बौद्घ मत की भी मान्यता थी और उसी प्रकार राजाश्रय भी प्राप्त था। चीन के राजा ने वहाँ प्रचारार्थ फूनान के राजा रूद्रवर्मन) छठी शताब्दी) से बौद्घ ग्रंथ एवं आचार्य भेजने का निवेदन किया था।

हिंदी विश्वकोश ने कंबुज के 'अद्भुत ऎश्वर्य की गौरवपूर्ण परंपरा' का वर्णन किया है। 'चंपा भी इसी प्रभाव-क्षेत्र के अंतर्गत था।' सारे शिलालेख तथा अभिलेख संस्कृत में हैं। बाद में कहीं-कहीं 'पाली' का प्रयोग बौद्घ साहित्य के प्रभाव से प्रारंभ हुआ। आज संस्कृत एवं पाली के अपभ्रंश उनकी शब्दावली में भरे हैं। उनके प्रतापी राजाओं की लंबी तालिका है। पर विक्रम संवत् की आठवीं शताब्दी में यव द्वीप (जावा) के शैलेंद्र राजाओं ने इस पर अधिकार कर लिया।


प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत
०८ - अक्कादी
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ -  आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ -  योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ -  मंगोलिया
३३ - चीन
३४ - चीन को भारत की देन 
३५ - अगस्त्य मुनि और हिन्दु महासागर
३६ -  ब्रम्ह देश 
३८ - लघु भारत

1 टिप्पणी:

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