आस्तिक सभ्यता का चिन्ह |
इन सभ्यताओं के सामाजिक, राजनीतिक जीवन के ताने-बाने में धार्मिकता बसी थी। हिंदु जीवन की तरह व्यवसाय के अनुसार समाज में वर्ग थे। व्यवसाय और शिल्प की विशेषज्ञता के साथ उनका अलग संघ (guild) था। ऎसी पंचायत को भारत में 'श्रेणी' कहते हैं। वह आपसी झगड़ों का निपटारा भी करती हैं। ये वर्ग स्वायत्तशासी थे। कहीं-कहीं बड़े नगरों में उनका टोला भी अलग था, जिसके वे अधिकारी थे। व्यवसाय एवं शिल्प के अधिष्ठाता देवता भी थे और उनके अनुरूप उत्सव। पेशेवर कारीगर और व्यापारी का समाज में बड़ा आदर था। उनके माल की मंडी थी और दूर जाकर हाट भी लगाते थे। स्वयं के उनके न्यायाधिकरण थे। यह मंडी अथवा हाट लगाना भारतीय प्रथा थी, जो भारत से संसार में फैली।
ये खेतिहर सभ्यताएँ थीं। आंग्ल विश्वकोश के अनुसार,
उनकों दलदलों का उद्घार कर भूमि बनाना और नहरों की योजना आती थी। एक कुल के लोग कुटुंब के रूप में साथ-साथ रहते थे। ऎसे बीसियों (अथवा सौ भी) कुटुंब मिलकर एक इकाई 'कलपुल्ली' (Calculi) बनाते थे। कलपुल्ली की भूमि पंचायती थी, जो सभी घटक कुटुंबों में बाँट दी जाती थी। यह कलपुल्ली प्रशासन की इकाई थी। इसका शासन सभी कुटुंब के मुखियों की परिषद् के हाथ में था, जो अपना प्रमुख या राजा चुनती थी। यही प्राचीन काल से चली आई स्वायत्तता की भारतीय परिपाटी है। यह कर-निर्धारण की भी इकाई थी तथा श्रमदान एवं सैनिक आवश्यकताओं के लिए भी। बच्चों की शिक्षा का प्रबंध भी यही करती थी। पर विशेष शिक्षा के लिए बच्चों को आश्रम में जाना पड़ता था, जहाँ वे कड़े अनुशासन में रहना सीखते थे। एक सांस्कृतिक प्रवाह के अंदर पनपता उसका सामाजिक-राजनीतिक ढाँचा भारत के स्वायत्त शासित जीवन की याद दिलाता है।
वहाँ के निवासियों में प्रचलित नाम 'मेक्सिका' या 'मत्सलियापान' (शाब्दिक अर्थ रहस्यवादी अथवा आध्यात्मिक 'चंद्र झील') पर मध्य अमेरिका (Meso America)को मेक्सिको कहते हैं। स्पेनिश आक्रमण के समय यहाँ 'मय' लोग निवास करते थे। ये प्राचीन 'टोल्टेक' (Toltec) (शाब्दिक अर्थ 'दक्ष कारीगर') और उसके बाद की विस्तृत 'आस्तिक' (Aztec) सभ्यता के उत्तराधिकारी थे। सारस्वत सभ्यता के समान ही इन सभ्यताओं के योजनापूर्वक ज्यामितीय नमूने पर बने नगरों के खंडहर आज भी मिलते हैं।
मेक्सिको के बीच पठार की विशाल झीलों के द्वीप एवं तट पर संभवतया प्राचीन सभ्यता का सबसे बड़ा नगर विद्यमान था। इन्हीं झीलों में द्वीप अथवा खेत 'तैरते हुए खेत' कहे जाते हैं। आसपास की (कुछ हिमाच्छादित) चोटियों से नाली, प्रपात और सुरंग से पीने का स्वच्छ जल यहाँ आता था। सीधी रेखा में निर्मित एक ही प्रकार के भवन, लंबवत् सड़कें, बीच में स्तूप के शिखर पर मंदिर। ऎसा मेक्सिको पठार पर अवस्थित एक प्राचीन नगर रहा है 'तियोतिहुआकान' (Teotihuacan), जिसका शाब्दिक अर्थ है 'जहाँ मनुष्य देवता बन जाते हैं' अथवा 'जहाँ ईश्वर की पूजा होती है'। तियो (Teo or Deo) (संस्कृत: देव) का अर्थ है 'ईश्वर'। ऎसा ही दक्षिण अमेरिका में टिटकाका (Titicaca) झील के बोलीविया (Bolivia) तट पर प्राचीन 'तायहुआनको' नामक 'इन्का' का पवित्र नगर कहा जाता था, जो पानी में डूब गया। नगरों में मिलते हैं एक प्रकार के पंक्तिबद्घ आवासीय गृह, जिनमें आँगन का द्वार मुख्य सड़क पर और आँगन के बाकी तीन ओर बनी हैं कोठरियाँ। ऎसे ही पास में हैं कारीगरों के गृह एवं कर्मशाला। मानो सारस्वत सभ्यता के नगरों की और घरों की प्रतिकृति हों। ऎसे ही हैं प्रत्येक नगर में देवता के मंदिर। उसमें कमल-नाल एवं स्वस्तिक चिन्ह के बेलबूटे। ये दोनों भारतीय प्रतीक हैं। नगरों को जोड़ने वाली बजरी कुटी पक्की सड़कें बनी हैं, जिनके दोनों ओर हाथ भर ऊँची पत्थर की दीवारें आज ढाई हजार वर्ष बाद भी वैसी ही हैं। मध्य अमेरिका का प्राचीन 'तेनोसितिलम' नामक नगर अंदर होने पर भी चौड़ी नहर के जलमार्ग द्वारा सागर से जुड़ा हुआ था।
तियोतिहुआकान शहर का विहंगम दृश्य |
इस चिट्ठी के चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से
कालचक्र: सभ्यता की कहानी
भौतिक जगत और मानव
मानव का आदि देश
सभ्यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं
अवतारों की कथा
स्मृतिकार और समाज रचना
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प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ - आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ - योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ - मंगोलिया
३३ - चीन
३४ - चीन को भारत की देन
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ - आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
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२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ - योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ - मंगोलिया
३३ - चीन
३४ - चीन को भारत की देन
३५ - अगस्त्य मुनि और हिन्दु महासागर
३६ - ब्रम्ह देश
३७ - दक्षिण-पूर्व एशिया
३८ - लघु भारत
४१ - मलय देश और पूर्वी हिन्दु द्वीप समूह४२ - चीन का आक्रमण और निराकरण
४३ - इस्लाम व ईसाई आक्रमण
४४ - पताल देश व मय देश
४५ - अमेरिका की प्राचीन सभ्याताएं और भारत
यह सब पढ़कर इतना आश्चर्यजनक लगता है कि विश्वास ही नहीं होता। इससे यही बात दृढ़ होती है कि भरतीय सभ्यता के विकास की कहानी की बहुत सी कड़ियाँ गायब हैं या गायब कर दी गयीं हैं।
जवाब देंहटाएंmay danav ne hi rawan ki lanka ka nirman kiya tha jo adbhud tha.
जवाब देंहटाएंshayad kisi samay ye pradesh hamare desh ke kareeb hi tha jo khisak kar dur chala gaya