शुक्रवार, फ़रवरी 20, 2009

गणतंत्र की प्रथा प्राचीन भारत से शुरू हुई

सामाजिक जीवन की चौथी मूल धारणा उन राजनीतिक विचारों को लेकर है, जिन्हे 'प्रजातंत्र' (Democracy) के नाम से जाना जाता है। सामाजिक व्यवस्था का अनिवार्य अंग राजनीतिक ढाँचा भी है। मध्य युग में सामी सभ्यता सारे यूरोप, पश्चिम एशिया, पूर्वी तथा उत्तरी अफ्रीका में छा गयी। उनका राजनीतिक जीवन जिस पद्घति से परिचित था, अर्थात पादशाही या एक व्यक्ति के वंशानुवंश शासन (वही बादशाह तथा वही पंथगुरू, खलीफा) का बोलबाला रहा। और किसी प्रकार के प्रजातंत्र में स्वल्प संक्रमण ने विकृतियाँ उत्पन्न कीं, तानाशाहों का निर्माण किया और एक भ्रांत धारणा को जन्म दिया कि ये प्रजातंत्र की पद्घतियाँ किसी आधुनिक युग की देन हैं।


 शकुंतला, दुष्यंत को पत्र लिखते हुऐ जिनके पुत्र भरत जिसके नाम पर अपने देश का नाम पड़ा राजा रवी वर्मा का चित्र विकिपीडिया से 

परंतु भारतीय समाज प्राचीन काल में एक ही प्रकार की राजनीतिक रचना जानता था, जिसे 'गणतंत्र' कहते थे। व्यक्ति और उसके कुटुंब से लेकर मानवमात्र तक सभी बाड़ों को तोड़ता एक विशाल संगठन, 'वसुधैव कुटुंबकम्' का सपना भारत ने देखा था। उसे चरितार्थ करने का माध्यम यह गणतंत्र पद्घति थी। सुदूर अतीत, आज के विचारकों के अनुसार सामाजिक जीवन के प्रारंभ में ऎसी रचना उनके लिए आश्चर्य का विषय है।  इसके इतने प्रकार के प्रयोग हैं, जिनसे सर्वसाधारण का सीधा नाता शासन से ही नहीं, सामूहिक सांस्कृतिक जीवन से जुड़ता है, जिसमें वे सहभागी बनते हैं।

भारत में सदा से राज्य-व्यवस्था के अनेक प्रयोग होते आए। आज तक हिंदू के राज्य-संबंधी संवैधानिक विचारों का क्रमबद्घ इतिहास नहीं लिखा जा सका। पर प्राचीन हिंदू धर्मशास्त्रों में इस देश के विक्रम पूर्व के ३००० वर्षों में 'गणतंत्र' के सतत विकास का दृश्य देख सकते हैं। उस पर किसी आधुनिक देश को गर्व हो सकता है।


०१ - कुरितियां क्यों बनी
०२ - प्रथम विधि प्रणेता - मनु
०३ - मनु स्मृति और बाद में जोड़े गये श्लोक
०४ - समता और इसका सही अर्थ
०५ - सभ्यता का एक मापदंड वहाँ नारी की दशा है
०६ - अन्य देशों में मानवाधिकार और स्वत्व
०७ - भारतीय विधि ने दास प्रथा कभी नहीं मानी
०८ - विधि का विकास स्थिति (या पद) से संविदा की ओर हुआ है
०९  गणतंत्र की प्रथा प्राचीन भारत से शुरू हुई

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