सोमवार, जुलाई 16, 2007

भौतिक जगत और मानव-१४

कालचक्र: सभ्यता की कहानी
संक्षेप में
प्रस्तावना
भौतिक जगत और मानव-१
भौतिक जगत और मानव-२
भौतिक जगत और मानव-३
भौतिक जगत और मानव-४
भौतिक जगत और मानव-५
भौतिक जगत और मानव-६
भौतिक जगत और मानव-७
१० भौतिक जगत और मानव-८
११ भौतिक जगत और मानव-९
१२ भौतिक जगत और मानव-१०
१३ भौतिक जगत और मानव-११
१४ भौतिक जगत और मानव-१२
१५ भौतिक जगत और मानव-१३
१६ भौतिक जगत और मानव-१४

तब चराचर सृष्टि में एक नया आयाम खुला। क्रांतिकारी परिवर्तन करने वाला एक अद्वितीय तत्‍व उत्‍पन्‍न हुआ। पक्षी और स्‍तनपायी में एक नए भाव का निर्माण हुआ। पक्षी घोंसला बनाते हैं। अंडों को सेते समय उनकी रक्षा करते हैं। बच्‍चा पैदा होने पर कितना असहाय होता है। और मनुष्‍य का बच्‍चा तो सबसे बड़े कालखंड के लिए निर्बल रहता है। मां-बाप उसे खाना देते हैं, जीना सिखाते हैं। कितनी चिंता करके बच्‍चे का पालते हैं। पक्षी ने दाना छोड़ तिनका उठाया - घोंसला बनाने के लिए। घूमना छोड़ अंडा सेया, स्‍वयं न खाकर बच्‍चे को दिया, यह समझकर कि बच्‍चा वह स्‍वयं है। यह बच्‍चे से अभिन्‍नता का भाव स्‍नेह, ममता और उससे जनित अपूर्व त्‍याग सिखाता है।

स्‍नेह, इससे अनेक गुण उत्‍पन्‍न होते हैं। शिक्षा की प्रथम कड़ी इसीसे जुड़ती है। पालतू तोता, मैना मनुष्‍य की वाणी की नकल करना तभी सीखते हैं जब वे उससे प्रेम करने लगते हैं। पालतू कुत्‍ता भी घर के बच्‍चों को अपने गोल का समझता है। ‘जन्‍म से स्‍वतंत्र’ (born free) ऐसी शेरनी की पालनकर्ता मनुष्‍य के प्रति स्‍नेह की कहानी है। शिशुक
(सूँस : dolphin) के द्वारा मनुष्‍य को सागर से किनारे फेंककर उसकी जान बचाने की अनेक कथाऍं हैं। ऐसा है स्‍तनपायी जीव का नैसर्गिक स्‍नेह, जो सागर को लाट गया। शायद इसे देखकर ही जलपरी (mermaid) की कहानियॉं हैं। कैसे मनुष्‍य के साथ खेलतीं, संगीत सुसनती हैं। मॉं की ममता से कुटुंब बना। स्‍नेह करने से सुख होता है, इससे सामाजिकता आई। गोल या दल बना। यह समाज- निर्माण की प्रक्रिया है। केवल सुरक्षा के लिए समाज नहीं बनता, सामाजिकता के भाव के कारण समाज जुड़े।

ये मछलियॉं, उभयचर तथा सरीसूप अनुभवों से सीखते हैं। उनकी कम-अधिक स्‍मृति भी रहती है। ऊपरी तौर पर उनके अनुभव प्राणी तक ही सीमित रहते हैं और उनकी म़त्‍यु पर खो जाते हैं। पर पक्षी एवं स्‍तनपायी अपने अनुभव कुछ सीमा तक अगली पीढ़ी को दे जाते हैं। ये पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचित होते रहते हैं। इनके साथ भाव संलग्‍न हो जाते हैं।

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