रविवार, मार्च 14, 2010

मंगोलिया

गोबी मरूभूमि के सीमावर्ती मंगोलिया के घास के मैदान में रहने-विचरने वाली अश्वारोहिणी मंगोल जाति ने कभी पूर्व में चीन के बड़े भूभाग पर राज्य किया था- बीजिंग (Beijing) (पेकिंग) को राजधानी बनाकर। पश्चिम की ओर बढ़कर कश्यप सागर तक, जिसे तुर्किस्तान कहते हैं, पर उनका आधिपत्य हुआ। भारत को छोड़ दिया जाय तो प्राचीन काल के दो बड़े साम्राज्यों का यह काल था। यूरोप और भूमध्य सागर के देशों का अपने पश्चिमी एवं पूर्वी भागों को ले रोमन साम्राज्य तथा पूर्वोत्तर में मंगोल साम्राज्य। ये दोनों साम्राज्य अत्यंत क्रूर थे। कालांतर में कश्यप सागर से गोबी मरूस्थल का क्षेत्र इसलाम पंथावलंबी बना। तब पश्चिमी मंगोल जाति और भी खूँखार हो गयी। मंगोल को अरबी में 'मुगल' पुकारते हैं। इसी मंगोल-तुर्किस्तान से आए चंगेज खाँ और तैमूर लंग सरीखे क्रूर व अधम लुटेरे। उन्हीं में से एक सरदार का पुत्र था बाबर, जिसे भारत में मुगल सत्ता का जनक कहते हैं।
मंगोलिया की पहाड़ी पर चंगेज खाँ का चित्र


परंतु पहले का साइबेरिया और उससे संलग्न मंगोलिया का भाग कभी भारतीय संस्कृति के प्रभाव-क्षेत्र थे, जहाँ दोनों हाथ जोड़कर अभिवादन करने की पद्घति थी। जहाँ धार्मिक कृत्य एवं पूजा गंगाजल के बिना संपन्न न होती थी, इसलिए वहीं की नदी के जल में, मंत्र द्वारा गंगाजल की प्रतिष्ठा कर धर्मकार्य पूरा किया जाता था। इनके विहारों में संस्कृत एवं अन्य भाषाओं के अनेक विषयों के प्राचीन ग्रंथ और भारतीय प्रतिमाएं मिलती हैं तथा उनके लोक-काव्य में रामायण की कथाएं। 'बैकल' झील के चारों ओर विद्या के अनेक केंद्र थे, जहाँ देवी सरस्वती के अनुपम चित्र एवं भव्य प्रतिमाएं थीं।



गोबी मरूभूमि 
 
चीन की सभ्यता अन्य प्राचीन सभ्यताओं से अपेक्षाकृत नई है। भारत से चीन जाने के दो दुर्गम मार्ग थे। एक पश्चिम में कश्मीर तथा गिलिगत की घाटी से ऊँचे पर्वत लाँघकर और दूसरा पूर्व में ब्रम्हदेश के उत्तर से। इसके बीच में है नगराज हिमालय, जिसकी चोटियाँ सदा हिम से ढकी रहती हैं। एक तीसरा मार्ग था गांधार तथा कुंभा नदी के दर्रों से होते हुए उत्तर की ओर मध्य एशिया में सर्वत्र हिंदु राज्य थे। यहीं से भारतीय संस्कृति का प्रवाह मध्य एशिया में गया। बौद्घ प्रचारकों ने भी यही मार्ग अपनाया। इसके अतिरिक्त दक्षिण-पूर्व होकर एक चौथा सागर मार्ग भी था।

इस चिट्ठी के चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से

प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत
०८ - अक्कादी
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ -  आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ -  योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ -  मंगोलिया

1 टिप्पणी: