इन दोनों संप्रदायों-देवों के उपासक तथा असुरों के उपासक-के बीच इस प्रकार एक सांस्कृतिक विषमता खड़ी हुई। पुराणों में असुरों को देवों के अग्रज कहा गया है। असुरों के उपासकों ने लौकिक उन्नति की ओर ध्यान दिया और भौतिक समृद्धि प्राप्त की। कहा जाता है कि भौतिकता में पलकर उन्होंने दूसरे संप्रदाय के ईश्वर के विश्वासों को चुनौती दी। इसलिये उन्हें रजोगुण एवं तमोगुण-प्रधान कहा गया। देवों के उपासक इस भौतिक समृद्धि को आश्चर्य तथा संदेह की दृष्टि से देखते थे। वे मानते थे कि असुरों के उपासकों ने इसे माया से प्राप्त किया है। मय नामक असुर देवताओं का अभियंता (engineer) कहा जाता है। देव संस्कृति सत्व गुण पर आधारित थी। उसकी प्रेरणा आध्यात्मिक थी और दृष्टिकोण भौतिकवादी न था।
इस प्रकार कालांतर में देवों और असुरों के उपासकों में धार्मिक एवं सांस्कृतिक मतभेद उत्पन्न हुए। इसने संघर्ष का रूप धारण किया। असुर संप्रदाय के कुछ लोग प्रमुखतया ईरान में बसे। संभवतया इस कारण से भी आर्य आपने आदि देश भारत को छोड़कर ईरान और यूरोप में फैले हों। वैसे यह आर्यों के साहसिक उत्साही जीवन की कहानी है। इतिहास में अनेक संप्रदाय अपने धार्मिक एवं सांस्कृतिक विचारों के कारण स्वदेश छोड़ नए देशों में बसे। इंग्लैंड से बैपटिस्ट आदि ने अपनी धार्मिक स्वतंत्रता बचाने के लिए अमेरिका की शरण ली। पर भारत में असुरों के उपासक इन मतांतरों के बाद भी चक्रवर्ती सम्राट हुए। अमृत-मंथन की गाथा इन दो संप्रदायों में समन्वय की कहानी है।
कालचक्र: सभ्यता की कहानी
०१- रूपक कथाऍं वेद एवं उपनिषद् के अर्थ समझाने के लिए लिखी गईं
०२- सृष्टि की दार्शनिक भूमिका
०३ वाराह अवतार
०४ जल-प्लावन की गाथा
०५ देवासुर संग्राम की भूमिका
असिरिया 700 ईसा पूर्व असुरो का राज्य था। आज का सीरिया वही है। इसका प्रमाण है वहा का राजा था - असुर्बनिपाल। ये संस्कृत शब्द है। पढें- यूरोप की world history
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