वीरेन्द्र भाईसाहब |
आपका जन्म, २ सितंबर, १९२० को बाँदा ( उ.प्र.) के एक प्रसिद्ध समाजसेवी और स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े परिवार में हुआ। ऐसे परिवार के संस्कारों की छाप उनके लेखों तथा उनकी पुस्तकों में प्रतिबिंबित है। आपका स्वर्गवास २९ सितंबर २०१५ को हो गया।
उत्कृष्ट विद्यार्थी जीवन और एम.ए., एल.एल.बी. पास करने के बाद पिता के आग्रह पर १९४१ में बॉंदा में वकालत प्रारंभ की। सन १९४२ के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में कांग्रेसजन व अंग्रेजी शासन के कोपभाजन बने लोगों के वकील के रूप में नाम कमाया। सन १९५० से इलाहाबाद आकर उच्च न्यायालय में वकालत प्रारंभ की। बाद में वे यहीं वरिष्ठ अधिवक्ता बने और कुछ वर्ष उत्तर प्रदेश के महाधिवकता भी रहे। उनकी अंग्रेजी में लिखी कानून की अनेक पुस्तकें प्रसिद्ध हैं।
आपात स्थिति की निरूद्धि के समय हिंदी भाषा में लिखना प्रारंभ किया। इस समय सरल-सुबोध भाषा में सर्वसाधारण के लिए लिखे गए प्रतिदिन के जीवन में उठते विधिशास्त्र के गहन विषयों पर आपके हिन्दी में लेखों के दो संग्रह ‘विधि के दर्पण में : सामयिक और सनातन प्रश्न’ और ‘मुसलिम विधि : एक परिचय’ प्रकाशित है। इन पुस्तकों ने हिंदी जगत के लिए एक नया आयाम खोला। इसके अतिरिक्त उनके विद्यार्थी जीवन या उसके तुरंत बाद लिखे गए समस्यामूलक चार एकांकी नाटकों का संग्रह ‘बीते समय की प्रतिध्वनि’ भी प्रकाशित है, जो हिंदी नाटक के लिए वैज्ञानिक पृष्ठभूमि में एक नई दिशा है। हिन्दी में आपकी दो और पुस्तकें 'कालचक्र: सभ्यता की कहानी' और 'कालचक्र: उत्तर कथा' हैं। आपके, अंग्रेजी में उच्चतम न्यायालय के कुछ एतिहासिक कहे जाने वाले निर्णयों की, समालोचना लेखों का संग्रह 'आइवरी टावर: फिफटीन इयर्स आफ दि सुप्रीम कोर्ट' के शीर्षक से छपा है। आने वाले समय में यह पुस्तकें इस चिट्ठे पर प्रकाशित की जायंगी और सबसे पहले 'कालचक्र: सभ्यता की कहानी'।
(वीरेन्द्र भाईसाहब और उनकी पत्नी कृष्णा)