यूनान के इतिहास में होमर युग 'मध्य काल' के नाम से जाना जाता है। यह बृहत् प्रव्रजनों (great migrations) का भी कालखंड था। यवनों ने तब एजियन सागर के द्वीपों से होते हुए अनातोलिया के दक्षिण-पश्चिमी किनारों पर उपनिवेश बसाए। इसी से इसके प्रारंभिक काल को 'वीर काल' (heroic age) भी कहते हैं।
ब्रिटिश संग्रहालय में रखी होमर की अर्धप्रतिमा का चित्र
होमर (Homer) ने, जिसे यूनान का गूरू कहा जाता है, इस कालखंड का वर्णन किया है। सभ्यता व संस्कृति की दृष्टि से यह अत्यंत पिछड़ा युग था, जब आखेट और पशुपालन ही प्रमुख उद्यम था। प्राचीन सभ्यताओं की उपलब्धियां लिपि, कला, स्थापत्य आदि विस्मृत हो गयी थीं। आदिम राज्य-व्यवस्था, जहाँ विवाद युद्घ व हत्या द्वारा तय होते थे, सामंतों पर आधारित थी। सुंदर स्त्री के लिए संघर्ष की कथाएं सामान्य थीं। पर व्यवस्था के अभाव में राज्य की आय शासकों द्वारा लूटपाट अथवा उनको दी गयी भेंट थी। और पाप-पुण्य की धारणाएँ अथवा नैतिकता पर आधारित धर्म व आत्मा-परमात्मा की कल्पना न थी; जैसी पहले से भारतीय संस्कृति में है। ऐसी दशा से यूरोपीय इतिहास में कहा जाने वाला 'महान क्लासिकल यूनान' (Great Classical Greece) की सभ्यता की ओर संक्रमण विक्रम संवत पूर्व आठवीं शती में प्रारंभ हुआ। कुछ यूरोपीय विद्वान इसे यूनान के मध्यकाल में प्रव्रजन के कारण यवन कबीलों की एशियाई एवं प्राचीन मिनोयन और माइकीनी सभ्यताओं के साथ रक्त-सम्मिश्रण का सुफल मानते हैं। इस प्रकार सम्मिश्रण रूपी अमृत-मंथन से नयी चेतना, नवजीवन समाज को प्राप्त होता है।
यह वह समय था जब भारतीय सभ्यता के विचार पश्चिमी एशिया और यूरोप में फैल रहे थे। उसके पहले भी अंकुर के रूप में सुमेर द्वारा कुछ सामी रंगों में रँगे भारतीय विचार तथा सामाजिक रचना फणीश और यहूदी सभ्यताओं में गयी। सम्मिश्रण के कारण छनकर जो भारतीय विचार यूनान और उसके चारों ओर पहुँचे, उससे यूनान के जीवन में आमूल परिवर्तन स्वाभाविक था। उसके पहले सामंतशाही व्यवस्था में उथल-पुथल उत्पन्न हुयी। कुछ नेताओं ने शस्त्रबल से राजसत्ता हथिया ली। कालांतर में ये निरंकुश शासक (Tyrants) जनता ने हटा दिए और यूनान में नगर-राज्य आए। तब कुछ अपवाद छोड़कर सुमेर एवं फणीश सभ्यता द्वारा पहुँची भारतीय जनतंत्रात्मक प्रणाली लागू हो सकी।
प्राचीन यूनान में कुछ स्थलों के नाम 'शिव' से संबन्धित पाए जाते हैं। वहाँ 'त्रिशूल' उसी रूप का एक भूखंड है, वहीं 'सलोनिका' नगर है। कहते हैं, यहाँ शिव-पूजक रहते थे, जो कभी एशिया से यूरोप जाने वाले राजमार्ग में व्यापारियों से कर वसूलते थे। कभी अरब प्रायद्वीप से यूनान तक शिव के उपासक निवास करते थे। शिव सर्वसाधारण के आराध्य देवता सहज रूप में थे। इसके स्मृति चिन्ह सारे क्षेत्र में फैले हैं।
पर यूनान का इस कालखंड का जीवन ईरानी हखमनीषी आक्रमणों से ग्रस्त था। उससे छुटकारा विक्रम संवत् पूर्व पाँचवीं शती में हो सका, सलामी (Salamis) या प्लेटियाई के युद्घ में आक्रामकों की स्थल-सेना और माइकेल के युद्घ में ईरानी जल बेड़ा समूचा नष्ट हो गया। इसी से यवन सभ्यता एवं संस्कृति बच सकी। इसके बाद नगर-राज्यों के आपसी संघर्ष होते हुए भी अनेक चिंतक, विचारक, दार्शनिक, गणितज्ञ, वैज्ञानिक और साहित्यकार छोटे से कालखंड में हुए, तब ईरानी आक्रमण समाप्त हो गया था और मखदूनिया का अधिकार एथेंस (Athens) समेत यूनान पर न आया था। यूनान के जीवन में कुछ अपवाद छोड़ यह प्रजातंत्र का युग था। इस छोटे से कालखंड ने अंततोगत्वा सारे यूरोप को प्रभावित किया। यूरोप के पुनर्जागरण (renaissance) के युग में कला, दर्शन तथा विज्ञान को दिशा मिली। क्लासिकल युग के दर्शन, शासन और समाज-व्यवस्था के विचारों में भारत का स्पष्ट प्रभाव दिखता है। परंतु मानवता अथवा मानव-मूल्यों का भारतीय पक्ष वहाँ पहुँच न सका, जिससे विसंगति उत्पन्न हुयी। तदुपरांत भविष्य में समूचे यूरोप के चिंतन को दिशा देना जिसके भाग्य में लिखा था, यूनान के उस स्वर्ण युग, जिसे पेरिक्लीस (Pericles) का युग भी कहते हैं, का अंत सिकंदर के महत्वाकांक्षी अभियान के दौरान प्रारंभ हो गया।
कितना छोटा यूनान का कालखंड और कैसा प्रभावी ! पर मुक्त विचारधारा के विकास के साथ-साथ मानव-मूल्यों के अनुरूप सांस्कृतिक जीवन बनना चाहिए। पेरिक्लीस (Pericles) (यूनानी स्वर्ण युग के कथित नायक) ने सार्वजनिक मताधिकार रूपी नए अस्त्र का प्रयोग सामंतशाही को समाप्त करने में किया; भारतीय गणतांत्रिक विचारधारा अपनाकर जनता के अधिकारों का समर्थन किया। इसी कालखंड के आसपास हर तरह का यवन साहित्य पनपा। विचारकों एवं दार्शनिकों के संवाद लिखे गए। उनमें भारतीय अध्यात्म तथा दर्शन की गहराई न होने के बाद भी मुक्त तार्किक विचारधाराएँ देखने को मिलती हैं। इन्हीं से यूरोपीय विज्ञान का जन्म हुआ। यवन साहित्य के सुखांत और दुखांत नाटक एवं काव्य, इन्होंने आधुनिक विज्ञान, मनोविज्ञान तथा मानविकी को पारिभाषिक शब्द और रूपक प्रदान किए। इसी कालखंड में गुलामों की नागरिक की मान्यता मिलना प्रारंभ हुआ। संपत्ति के सम वितरण के प्रयत्न हुए।
पर इसी क्रिया में बिना सर्वसाधारण के जीवन को सुसंस्कृत बनाए और उदात्त मूल तत्वों पर मानव की आस्था जगाए, जब न्याय-व्यवस्था भी प्रजातंत्र के नाम पर सभी नागरिकों के भीड़तंत्र को सौंप दी गयी तो कैसी विकृति फली ! मुक्त विचारों के कारण सुकरात के ऊपर नवयुवकों के मस्तिष्क को मान्यताओं से हटाकर दूषित करने का अभियोग लगाया गया और जनता-न्यायाधिकरण ने उसे मृत्युदंड दिया। अपनी वैचारिक स्वतंत्रता के कारण जेल में विष का प्याला, बाद में यूरोप के नवचैतन्यदाता कहलाने वाले, दार्शनिक को पीना पड़ा। उस तर्क के अनुसार सहस्त्रों गुना अपराध भारतीय मुक्त चिंतकों, श्रमण और अन्य विचारकों ने किया था, जिनको समाज ने सम्मान दिया और स्वयं गौतम बुद्घ ने भी किया, जो अवतार कहलाए। अरस्तू को भी इसी बात पर भागकर मृत्युदंड से अपनी जान बचानी पड़ी। अनेक पुरातत्वज्ञों ने यवन इतिहास के इस कालखंड को भारत के वैदिक काल के समान कहा है। पर उन्होंने इस मूलभूत अंतर को अनदेखा कर दिया। बिना वैचारिक स्वतंत्रता के, बिना एक-दूसरे की बात सुनने और आदर करने की समझ के सामाजिक जीवन पूर्णता की ओर नहीं बढ़ सकता। यही भारतीय संस्कृति की विलक्षणता है।
चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से।
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प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
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११ - असुर जाति
१२ - आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ - योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान