पृथ्वी को आवेष्टित करती प्राचीन आदि सभ्यताओं की मेखला में सर्वत्र यह मकर संक्रांति अथवा सूर्य के उत्तरायण होने का त्योहार सूर्य-पूजा का अंग समझकर मनाया जाता था। ईसाई पंथ के प्रचारकों ने आदि सभ्यताओं में प्रचलित इस भारतीय त्योहार को ईसा मसीह का जन्म- दिवस कहकर अपना लिया। नवीन शोध बताते हैं कि ईसा के जन्म के समय प्रभात में तीन ग्रहों की एक साथ युति दिखी, एक जात्वल्यमान प्रकाश के रूप में, वह घटना ९ सितंबर ईस्वी पूर्व तीसरे या छठे वर्ष की है। हिंदी विश्वकोश के अनुसार संवत ५८५ (सन ५२७) के लगभग रोम निवासी पादरी डायोसिनियस ने गणना करके रोम की स्थापना के ७९५ वर्ष बाद ईसा मसीह (Jesus Christ) का जन्म होना निश्चित किया तथा छठी शताब्दी से ईस्वी ‘सन्’ का प्रचार प्रारंभ हुआ। इस प्रकार २५ दिसंबर को मनाया जाने वाला विशुद्ध भारतीय त्योहार ‘बड़े दिन’ (christmas) को ईसाई जगत के लिए अपहृत कर लिया गया और भारतीय पद्धति के अनुसार उन्होंने शिशु ईसा की ‘छठी’ का दिन १ जनवरी तथा ‘बरहों’ ६ जनवरी को मनाना प्रारंभ किया।
ईसाई और मुसलिम मान्यता है कि मानव का प्रारंभ आदम और हव्वा से अदन वाटिका में हुआ। यह मानव की जन्मस्थली अदन वाटिका थी कहॉं ? इस विषय में अरब (प्राचीन अर्व देश, अर्थात अच्छे घोड़ों का देश) की किंवदंतियों तथा विश्वासों का सहारा लें तो मानव का आदि प्रदेश उसके शैशव की लीलास्थली, जहॉं से वे संसार में फैले, उनके देश के पूर्व में दक्षिण भारत के पठारी शीतोष्ण जलवायु के अरण्य में थी।
स्वस्तिक चिन्ह सदा-सर्वदा भारत में मंगल, सर्वकल्याणकारी, शुभ चिन्ह के रूप में प्रयोग होता आया है। कहते हैं, प्रारंभ में ऋषियों ने आकाश के किसी भाग में तारों को देखकर इस शुभ चिन्ह की कल्पना की थी। भारत में पूजा, हवन या अन्य शुभ अवसरों पर, घर तथा मंदिरों में यह चिन्ह बनाते हैं। भारत में यह दक्षिणावर्ती (clockwise) है, पर कहीं वामावर्ती (anti- clockwise) स्वस्तिक (swastik) चिन्ह भी प्रचलित था। जब हिटलर ने जर्मन लोगों को विशुद्ध आर्य कहना प्रारंभ किया तब ‘वामावर्ती स्वस्तिक’ धारण किया। इसके पहले लगभग सहस्त्र वर्ष से इसका उपयोग भारत में सीमित रह गया था। यह स्वस्तिक चिन्ह भारत से उक्त भू-मेखला में फैला।
संभवतया भारत के सांस्कृतिक प्रभाव के कारण ही इन पूजा और स्वस्तिक चिन्ह ने संसार का चक्कर काटा। यह विशेषकर पुरानी दुनिया के लिए ही नहीं वरन् नई दुनिया, मेक्सिको और पेरू के लिए भी सत्य है जहॉं पिंगल प्रजाति के लोग भी बसे। मानव केवल रूप-रंग का आकार नहीं। उसने विचारों की सृष्टि की, जिन्होंने एक सभ्यता उपजाई। प्राचीन सभ्यताओं की प्रेरणा का कोई केंद्र, कोई छोर है क्या, जहॉं से वह नि:सृत हुई? ज्यों-ज्यों अधखुले नेत्रों से प्रारंभ होकर मानव सभ्यता की यह कहानी आगे बढ़ती है, यह केंद्र स्पष्टतर होता जाता है।
कालचक्र: सभ्यता की कहानी
१ मानव का आदि देश२ मानव का आदि देश
३ मानव का आदि देश
४ मानव का आदि देश
५ मानव का आदि देश
६ मानव का आदि देश
७ मानव का आदि देश
८ मानव का आदि देश
९ ईसा मसीह का जन्म दिन - बड़ा दिन और भारतीय त्योहार