भारतीय संस्कृति का जहाँ प्रभाव पड़ा वहाँ संस्कृति का किसी साम्राज्य से विलग जीवन देखा जा सकता है। सुमेर में ही अनेक विजेता हुए, जिन्होंने कई नगरों को जीतकर संयुक्त राज्य स्थापित किया, पर हर बार जनशक्ति तथा नागरिक भावना ने पुन: विकेंद्रित कर दिया। अनेक आख्यान हैं, जिनमें नगर के राजा ने सभा (अनुभवी ज्येष्ठों के सदन) में विचार किया, परंतु असहमति होने पर समिति (लोकसभा) के परामर्श से कार्य किया। सुमेरियन सभ्यता में राजसत्ता जनसभाओं में थी और राजा उनके परामर्श के अनुसार कार्य करता था। उसका मूल प्राचीन भारतीय रचना में है। इस प्रकार सांस्कृतिक एकता के बाद भी एक साम्राज्यवादी शक्ति का उदय नहीं हो पाया। ऐसा भारत में अनेक बार होता रहा।
सुमेर का जीवन नगर-देवता के मंदिर के चारों ओर निर्मित था। भूमि मंदिर (अर्थात समाज) की होती थी। उसका एक भाग निगेन्ना सामूहिक था, जिसमें उस मंदिर के सभी व्यक्तियों को काम करना पड़ता था। वहाँ कार्य करने के लिए हल, जोतने के लिए बैल और गधे, खेती के औजार और बोने के लिए बीज-सभी मंदिर की ओर से उपलब्ध होते थे। सार्वजनिक भवन और बाँध की मरम्मत भी सभी लोग मिलकर करते थे। मंदिर का प्रमुख पुजारी बीज तथा उत्सवों के लिए उपज रखकर बाकी सभी लोगों में बाँट देता था। उत्सवों में भी सभी को कुछ भाग मिलता था। भूमि का दूसरा भाग ('कुर') मंदिर के पदाधिकारी सभी सदस्यों में बाँटते थे। इससे हरेक को कुछ-न-कुछ भूमि अपनी अलग खेती करने के लिए मिल जाती थी। और तीसरा भाग ('उरूललू') लगान पर (जो उपज का १/६ से १/३ तक हो सकता था) उठा दिया जाता था। प्रमुख पुजारी के सहायक के रूप में खेतों, भंडारगृहों और संपत्ति की देखरेख तथा आय-व्यय का लेखा-जोखा रखने के लिए अनेक पदाधिकारी कर्मचारी रहते थे। नगर-देवता एवं मंदिर की दृष्टि में सभी सदस्य समान थे। चाहे वह पुजारी हो अथवा कृषक, व्यापारी या मंदिर से संबंधित बढ़ई, लोहार अथवा अन्य कारीगर, या श्रमिक, सभी को सामूहिक भूमि में श्रम व काम करना पड़ता था। स्त्रियों को पुरूषों के समान अधिकार प्राप्त थे। समता का यह आदर्श और अनुशासनबद्घ कार्य, जिसे कुछ विद्वानों ने 'धार्मिक समाजवाद' कहा, भारत की देन है। प्राचीन भारतीय जीवन अथवा सारस्वत नगरों में ये पहलू देखे जा सकते हैं।
यदि सारस्वत सभ्यता सुमेर सभ्यता से पुरानी है (जैसा अधिकांश पुरातत्वज्ञ विश्वास करने लगे हैं) तो कीलाक्षर लिपि की प्रेरणा (जैसा सुमेरी किवदंतियां कहती हैं) पूरबी सारस्वत सभ्यता से प्राप्त हुई। सुमेरी लिपि पश्चिम एशिया की प्राचीनतम लिपि है। उसका उपयोग अन्य सभ्यताओं ने सीखा। सुमेर का व्यापार सारस्वत नगरों में था ही। सुमेर में वैसा ही साहित्य, जीवन एवं मृत्यु के विचार, दार्शनिक आख्यान, जैसी प्राचीन भारत की प्रारंभिक परंपरा थी, पाए जाते हैं। गणना '६०' के अंक को आधार मानकर अर्थात 'षाष्ठिक' (sexagesimal) स्थानिक मान पद्धति पर करते थे। आज तक हम कोणीय माप में ६० के आधार का प्रयोग करते हैं। पर उन्हें 'शून्य' का संकेत ज्ञात न था। संभवतया वे भारत से उस संकेत के आविष्कार के पहले विलग हो गए। उनकी षाष्ठिक गणना-पद्घति और ज्योतिष का ज्ञान तथा कीलाक्षर लिपि को बाद की सामी सभ्यताओं ने अपना लिया।
कालचक्र: सभ्यता की कहानी
भौतिक जगत और मानव
मानव का आदि देश
सभ्यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं
अवतारों की कथा
स्मृतिकार और समाज रचना
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प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत