शनिवार, सितंबर 12, 2009

सिकंदर (अलक्षेन्द्र) और भारत

सिकंदर (Alexander) के साथ भारत में क्या हुआ, इस बारे में यवन इतिहासकारों ने असंगत बातें लिखी हैं पर राजा पुरू (Porus) की संधि बताती है कि वह विजेता एवं विजित के बीच न थी। यवन इतिहासकार कहते हैं कि वह संधि तब हुयी जब सिकंदर के पूछने पर कि उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाय, पुरू ने निर्भीकता से उत्तर दिया कि जैसा एक राजा दूसरे स्वतंत्र राजा के साथ करता है। उनके अनुसार,
'यह सिकंदर की महानता थी कि उत्तर से प्रसन्न हो संधि में बराबरी की शर्तें तय हुयी।' 

यह कहकर तो किसी को बहलाया नहीं जा सकता। और सिकंदर जैसे सुरसा, परसीपुलिस आदि ईरानी नगरों की भयंकर लूट और नर-संहार करने वाले क्रूरकर्मा से तो कभी ऎसी अपेक्षा नहीं हो सकती।





 पोरस बायें और सिकंदर दायें


हम उसके बाद की कहानी जानते हैं। पुरू के राज्य व सतलुज नदी के बीच और सतलुज के पार अनेक गणराज्य थे। चाणक्य ने, जो उन दिनों तक्षशिला में आचार्य थे, एक भीषण प्रतिरोध की योजना चालू की, जिसकी प्रमुख कड़ी उनका प्रिय शिष्य चंद्रगुप्त था। गणराज्यों के प्रतिरोध के कारण सिकंदर की सेना और उसके साहस ने जवाब दे दिया। अंत में सिकंदर अपनी सेना के साथ नावों से नदी के मार्ग से भागा। ऎसे समय चंद्रगुप्त अथवा उसके साथियों का बाण सिकंदर की छाती में लगा। उस घाव के पकने से लौटते समय उसे ज्वर आया और बगदाद में उसकी महत्वाकांक्षी जीवन-लीला, विश्व-विजय का अधूरा स्वप्न लिए, समाप्त हो गयी। उसने पूर्वी ईरान में अपने सेनापति सेल्यूकस को छोड़ा था। उसका भी क्या हुआ, इतिहास हमें बताता है पर सिकंदर जैसे लोगों को इतिहास  'महान' का विशेषण लगाता है। वास्तव में सिकंदर जैसे लोग सभ्यता  के शांत प्रवाह में महामारी के समान थे। उन्होंने ज्वालामुखी सरीखी हलचल मचाई सभ्यता के शांत प्रवाह में और फिर अपनी विनाश-लीला और क्रूरता की कहानी छोड़कर शून्य में विलीन हो गए। जहाँ भी पहुँचे वहाँ के लोगों को गुलाम बनाया। स्वतंत्रता-प्रेमी जनों से नृशंस बदला लिया। मानवता के लिए आखिर उसका योगदान क्या था? दानवता का नंगा नाच?

लगभग डेढ़ सौ वर्षों तक यूनान का शासन रहा। उसके बाद पार्थिया प्रांत के राजा मित्रादित्य (अथवा मित्रदत्त) (Mitridates) ने यवनों को निकाल बाहर किया। पार्थी राजाओं ने लगभग चार सौ वर्षों तक राज्य किया। पर अंत में ईरान धार्मिक-पांथिक कर्मकांड एवं अंधविश्वास में जकड़ गया। उसके पहले आमू (वक्षु) और सीर नदी के सहारे हीरमंद तक और पूरे उत्तरी ईरान में बौद्घ भिक्षु फैल चुके थे।

गांधार आदि प्रदेश तब भारत के थे। तब ईरान में एक नए महात्मा 'मानी' (Mani) का जन्म हुआ। इनके विचार बौद्घ विचार थे। इन्होंने जरथ्रुष्ट्र, बौद्घ तथा ईसाई मतों का समन्वय करके 'मानी मजहब' प्रारंभ किया, जो मूलत: बौद्घ मत ही था। पर कुछ कट्टरपंथी और दकियानूसी मागी पुरोहितों ने षड्यंत्र करके उसे सूली पर चढ़वा दिया। पार्थी राजाओं के बाद सासानी कुल आया; उसमें प्रसिद्घ राजा नौशेरवाँ हुआ। पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु के पश्चात् अरबों ने ईरान जीत लिया। समस्त ईरान ने, अत्याचारों का  शिकार हो, इसलाम स्वीकार किया। सहस्त्रों जरथ्रुष्ट्री पंथ के अनुयायी पवित्र अग्नि बचाकर भारत भागे। आज के पारसी यही हैं जिन्हें भारत ने इसलामी आक्रमण के विरूद्घ शरण दी।


इस चिट्ठी के चित्र - विकिपीडिया के सौजन्य से

प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य

०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत
०८ - अक्कादी
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ -  आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत

शनिवार, सितंबर 05, 2009

ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकंदर)

प्राचीन ईरान की ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख आवश्यक है। दक्षिण ईरान में 'पर्सु' नामक प्रांत था, जहाँ हखामनीषी वंश के लोगों का शासन था। इसी 'पर्सु' (संस्कृत परशु) से अंग्रेजी में 'पर्शिया' (Persia)  नाम पड़ा। इस वंश की कीर्ति शिखर पर पहुँचाने का श्रेय 'कुरू' को है। विक्रम संवत् पूर्व छठी शताब्दी में उसने तातारियों से ईरान को स्वतंत्र कराया। तब बाबुल पर आक्रमण कर ईरानी साम्राज्य का भूमध्य सागर तक विस्तार किया। बाबुल में पड़े निर्वासित अथवा बंदी यहूदी परिवारों (जिनमें कहा जाता है कि उनके आदि पुरूष या नबी, अब्राहम भी थे) को पुन: फिलिस्तीन भेजकर बसाने की व्यवस्था की। उनके येरूसलम के मंदिर का अपने व्यय से पुनर्निर्माण कराया। इसी प्रकार जब लीडिया के राजा क्रोयम ने कुरू के हाथों पराजय होने पर स्वयं को चिमा में जलाकर आत्महत्या करनी चाही तब कुरू ने उसे बचाकर अपनी राजसभा में उचित स्थान दिया। ये व्यवहार उसकी संस्कृति के अनुरूप सबका हृदय जीतने वाले थे। आसपास की सामी सभ्यताओं की नृशंसता के विपरीत उदात्त आचरण ! इसी वंश में प्रसिद्घ प्रतापी सक्राट् 'दारा' हुआ, जिकी समाधि के लेख में उसे 'आर्यों में आर्य' कहा गया।

फ्रांस के एक संग्रहालय में रखी सिकंदर की अर्धप्रतिमा का  चित्र

हखामनीषी वंश के शासन में, यूनान के सिकंदर (अलक्षेंद्र : Alexander) ने विक्रम संवत् पूर्व तीसरी सदी में, विश्व-विजय के स्वप्न सँजोए, भयंकर लूटपाट का अपना आक्रमण अभियान आरंभ किया। वह मिस्त्र को तथा पश्चिमी प्रदेश को रौंदकर ईरान की राजधानी परसीपुलिस ( Persepolis : पर्सु की नगरी) जा पहुँचा। वहाँ के लोगों ने यह देखकर कि यूनान में लोहारों की नगरी मखदूनिया (Macedonia) का राजपुत्र नए अच्छे अस्त्र बनाकर लाया है, जिससे लोहा लेना कठिन होगा, एक अफवाह फैलायी कि उस नगरी को वरदान है कि जब तक उससे १५ मील दूर एक मंदिर में रखी गाँठ (Gordian knot) आक्रमणकारी खोल नहीं देता तब तक उस नगर का बाल भी बाँका न होगा। यह सुनकर सिंकदर की सेना ने आक्रमण करने से इनकार कर दिया। सिकंदर तब उस मंदिर में गया। देखा कि कोई छोर पकड़ पाना कठिन है; गाँठ खोलने में कई सप्ताह लगेंगे। परसीपुलिस को आशा थी कि तब तक भारत से आधुनिकतम अस्त्र-शस्त्र तथा सहायता आ पहुँचेगी। पर सिकंदर ने कटार से गाँठ के दो टुकड़े कर दिए और दोनों छोर अपनी सेना को दिखा दिए कि
'मैंने गाँठ खोल दी है, अब युद्घ करो।'  
सिकंदर गांठ को काटते हुऐ 
सिकंदर की सेना ने एकाएक हमला किया और वहाँ की ईंट से ईंट बजा दी। भयानक नर-संहार हुआ, जिसमें स्त्री-पुरूष सभी मारे गए। सारा नगर जला दिया गया। कहते हैं कि अकेले सुसा नगरी की लूट में सिकंदर को ७,३९० मन सोना और ३२,८४५ मन चाँदी मिली। सर्वत्र लूटपाट के बाद उसने ईरानी कला के बहुमूल्य नमूने भी नष्ट कर दिए। नगरों के भग्नावशेष आज भी भयंकर त्रासदी की याद दिलाते हैं। महानाश उपस्थित करने के बाद घोड़ों पर सवार सिकंदर की सेना द्रुत गति से भारत के दरवाजे पर दस्तक देने पहुँच गयी।

इस चिट्ठी के चित्र - विकिपीडिया के सौजन्य से

प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य

०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत
०८ - अक्कादी
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ -  आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)