रविवार, नवंबर 29, 2009

फणीश अथवा पणि

ऐसे ही फणीश (Phoenicians) थे। इनका उल्लेख वेदों में 'पणि' नाम से आता है। ये नाग-पूजक थे और संभवतः पुराणों में वर्णित यही 'नाग' जाति है। ये भूमध्य सागर के पूर्वी तट आधुनिक लेबनान (Lebanon) और इसराइल के तटवर्ती प्रदेश के निवासी कहे जाते हैं। इतिहास इन्हें इब्रानी 'केन-आनी' (Kena-ani)  शाब्दिक अर्थ : 'व्यापारी') के नाम से जानता है।


फणीश सभ्यता का सिक्का

इनके प्राचीन नगर जेबाल (Gebal, आधुनिक: Jubayl; ग्रीक :Byblos), सिडान (Sidon, आधुनिक: 'शायदा'), टायर (Tyre; अरबी: शूर Tsor; ग्रीक: Tyros) और बेरूत (Beror;  आधुनिक: Beirut; ग्रीक : Brytos), सभी प्रसिद्घ नगर थे। इन्हें आधार बनाकर सारे भूमध्य सागर में इनकी नौकाएँ जातीं। इनके व्यापार की वस्तुएँ थीं सभी तरह का सामान,  महीन और रँगे कसीदा तथा बेलबूटे कढ़े वस्त्र, इमारती लकड़ी, नमक, काँच और धातु का सामान, भांड, हाथीदाँत तथा काठ की कलाकृतियाँ। वस्त्रों की रँगाई और सागरीय परिवहन इनका विशेष उद्योग था। इन्होंने अनातोलिया, साइप्रस (CYpress), एजियन सागर के द्वीपों में तथा उत्तरी अफ्रीका के तट के कार्थेज एवं यूतिका (Utica), स्पेन के अटलांटिक महासागर पर केडिज (Cadiz या Grades ) और अन्य उपनिवेश बसाए।

व्यापार में अभिलेख आवश्यक थे, इसलिए कीलाक्षर लिपि से एक नई २२ अक्षरों की व्यंजन वर्णमाला विकसित की। इसमें स्वर न थे। यही ग्रीक (और अरबी) वर्णमाला की जननी है। अन्ततोगत्वा इसी से रोमन तथा आधुनिक यूरोपीय भाषाओं की वर्णमाला आई। यह उनका स्थायी योगदान आधुनिक यूरोपीय सभ्यता को है।


सिकंदर के द्वारा टायर शहर का घेरा 

इनके नगर स्वशासित व्यापारिक केंद्र थे। राज्य-सत्ता पर संपन्न व्यापारियों का अंकुश था। आश्चर्य की बात है कि नगरों में आपस में कभी लड़ाई नहीं हुयी। संभवतः लिपि के साथ यूनान ने इनसे भारतीय गणराज्य की व्यवस्था, सुमेर द्वारा, नगर-राज्य के रूप में प्राप्त की। पर यूनान में आपस में लड़ाई होती रही। विक्रम संवत् पूर्व नौवीं शताब्दी में असीरिया ने इनके नगरों पर अधिकार कर लिया। कालांतर में सिकंदर और रोम के आक्रमण इन नगरों पर हुए तथा विक्रम संवत् पूर्व दूसरी शताब्दियों में रोमवासियों ने कार्थेज नगर को जलाकर राख कर दिया। तब इस सभ्यता का अवसान पूर्ण हो गया।

इस चिट्ठी के चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से 

प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य

०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत
०८ - अक्कादी
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ -  आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि

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रविवार, नवंबर 22, 2009

एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य


भूमध्य सागर की बाकी सभ्यताएँ {एजियन सभ्यताएँ (Aegean civilizations)} साम्राज्यों से ग्रथित हैं और उनके साये में पली हैं। केवल अपवादस्वरूप यूनान का एक छोटा कालखंड रहा है जब गणतंत्र के प्रयोग हुए और कला, विज्ञान, साहित्य एवं दर्शन, सभी क्षेत्रों में यवन सभ्यता की अभूतपूर्व प्रगति हुई। भूमध्य सागर में 'क्रीति' (Crete: ग्रीक Kriti) नामक एक द्वीप है। वहाँ नाविकों की सागरीय सभ्यता विकसित हुयी। उसे उनकी एक प्राचीन राजधानी 'नोसोस' (Knossos)  के राजा अथवा देवता मिनोस (Minos) के नाम पर मिनोयन (Minoan) सभ्यता कहा जाता है। यह शांतिप्रिय  सभ्यता थी। उनके नगर किलेबंदी अथवा खाई से रक्षित थे। आज उनके खंडहर भवनों व नगर-नियोजन के मूक साक्षी हैं। उनके भित्तिचित्र (fresco) एवं मृद्भांड साक्षी हैं उनके कला- प्रेम के, जिनमें चित्रित हैं पशु-पक्षी, मानव तथा बहुतायत से फूल (विशेषकर कुमुदिनी)। चित्र-लिपि से प्रारंभ कर उन्होंने अक्षर-लिपि का विकास किया। पर उनकी वह लिपि आज तक पढ़ी नहीं जा सकी। यदि कोई सभ्यता बीच में ही काल के गर्त में विलीन हो जाती है और आधुनिक युग तक किसी प्रकार का सातत्य या सूत्र नहीं पकड़ में आता तो उनकी लिपि पढ़ना कठिन हो जाता है। इनके चित्रों में नारी आकृति इस प्रकार दिखायी गयी है जैसे वे किसी देवी की पूजा करते हों। पूरा भूमध्य सागर उनकी नौयात्रा का क्षेत्र था; जिसमें स्पेन से लेकर पूर्वी तट तक इन साहसिक नाविकों ने व्यापार किया।

 राजकुमारी सिला (scylla), मिनोस के प्रेमपाश में बंधती हुई

पर एक दिन अचानक उनकी यह सभ्यता और उनकी कीर्ति के भव्य नगर तथा प्रासाद नष्ट हो गए। इसके बारे में दो मत हैं। प्लातोन के अनुसार मिनोयन सभ्यता का विनाश भयंकर जल-प्रलय के कारण हुआ। एक विशाल, लगभग ३०० मीटर ऊँची सागर की महातरंग आई और उसने इन नगरों, उसके भवनों को उजाड़ दिया। यह इतना अचानक हुआ कि वहाँ के लोग सँभल नहीं पाए और समूल सभ्यता नष्ट हो गयी। दूसरा मत है कि एक भयानक भूकंप से विनाश हुआ। कुछ अवशेष मिलते हैं कि क्रीति निवासियों ने पुन: भूकंप से रक्षित भवन (लकड़ी का ढाँचा खड़ा कर) बनाने का यत्न किया। ये दोनों प्राकृतिक विपत्तियाँ अचानक एक साथ भी आ सकती थीं।

नोसोस में मिले मिनोयन सभ्यता का सबसे प्रसिद्ध भित्तिचित्र

इन मिनोयन लोगों का स्थान लिया युद्घप्रिय माइकीनी (Mycenaeans) ने। पहले भी मिनोयनों ने माइकीनी सागर-तट पर अपने व्यापारिक संस्थान बनाने के यत्न किए थे, पर अधिक सफलता न मिल सकी। 'माइकीनी' नाम दक्षिण ग्रीस के पेलोपनीस (Peloponnese) प्रांत के प्रमुख नगर माइकीने (Mycenae) पर पड़ा; परंतु बाद में इससे अर्थ लिया जाने लगा 'सोने का रक्तपात (खून-खराबे) से भरा राज्य।' इन्होंने अनेक बातों में मिनोयन सभ्यता को, उनकी कला, स्थापत्य तथा नौयात्रा-विज्ञान आदि को अपनाया। अनेक प्रयासों के बाद भी वे क्रीति को जीत न सके थे, यह प्राकृतिक आपदा के बाद संभव हुआ। इनके अवशेष आज भी एजियन सागर के असंख्य द्वीपों में तथा यूनान प्रायद्वीप में मिलते हैं। हेनरिख श्लीमान ने माइकीनी राजाओं के मकबरे खोज निकाले, जहाँ शवों के मुख पर सोने के मुखौटे चढ़े थे और रत्न आदि रखे हुए थे। पर शायद ट्राय तथा अन्य गृहयुद्घों में उलझने से और उत्तर-पश्चिम के सीमांत आक्रमणों से यह सभ्यता नष्ट हो गयी।

इस चिट्ठी के चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से 

प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य

०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत
०८ - अक्कादी
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ -  आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य


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रविवार, नवंबर 15, 2009

जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण


पर लगभग अस्सी वर्ष की स्वाधीनता के बाद इस्रायल पुनः रोम के आक्रमण का शिकार बना। इस भीषण युद्घ में हजारों यहूदी मारे गए और बाद में नर-संहार हुआ। रोमन साम्राज्य आने के लगभग दो शताब्दी बाद यहूदियों पर और भी भीषण अत्याचार बरपे गए। उसका वर्णन 'हिंदी विश्वकोश' ने इस प्रकार किया है,
'इसके बाद सन् १३५ ई. में रोम के सम्राट हाद्रियन ने येरूसलम के यहूदियों से रुष्ट होकर एक-एक यहूदी का कत्ल करवा दिया। वहाँ की एक-एक ईंट गिरवा दी और शहर की समस्त भूमि पर हल चलवाकर उसे बराबर करवा दिया। इसके पश्चात अपने नाम पर एक रोमी नगर का उसी स्थान पर निर्माण कराया और आज्ञा दी कि कोई यहूदी इस नए नगर में कदम न रखे। नगर के मुख्य द्वार पर रोम के प्रधान चिन्ह शूकर की एक मूर्ति स्थापित कर दी गयी।'


इन अत्याचारों के कारण यहूदी सारे संसार में बिखर गए। उन्हें उनका देश 'इस्रायल' द्वितीय महायुद्घ के बाद ही प्राप्त हो सका। भारत को छोड़कर दुनिया के सभी देशों ने उनके ऊपर अत्याचार किए। पर अपने पंथ की भावनाओं को संजोए सभी अत्याचार, जिनमें हिटलरी जर्मनी के गैस चैंबर का जाति-संहार (genocide) भी है, उन्होंने सहन किए। द्वितीय महायुद्घ के बाद ही उनकी भूमि (देश) उन्हें प्राप्त हुयी। वहाँ बसने की छूट मिली और मिली स्वतंत्रता, अपने पंथ के अनुसार जीवन बनाने की छूट। सारे संसार से यहूदी इस्रायल में पुनः आकर बसे। उन्होंने प्राचीन मृत कही जाने वाली भाषा इब्रानी को राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद इस्रायल की स्वतंत्र यहूदी सरकार ने एक श्वेतपत्र (white paper) जारी किया कि किस देश से कितने यहूदी कैसे आकर बसे। उस श्वेतपत्र में उल्लेख है भारत देश का, जहाँ उन पर कभी कोई अत्याचार नहीं हुआ; जहाँ अपने पंथ की मान्यताओं का पालन करते हुए वे भारत के नागरिकों की भाँति रह सके। और है भारत और उस हिंदु संस्कृति के प्रति उनकी श्रद्घांजलि।


इस्रायली संसद - चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से

प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य

०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत
०८ - अक्कादी
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ -  आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण

रविवार, नवंबर 08, 2009

यहूदी और बौद्ध मत

यह समय था जब बौद्ध तथा अन्य प्रचारक भारत (जिसके अंतर्गत गांधार भी था) की पश्चिमी सीमा लाँघ कर ईरान और सुदूर पश्चिमी एशिया में अहिंसा का संदेश लेकर फैले। इस भारतीय संस्कृति के संदेश से यहूदियों में नए संप्रदाय उत्पन्न हुए। ऐसे 'फारिसी' (Pharisee) थे जिन्होंने अपनी धर्मपरायणता और तप एवं संयम के द्वारा सर्वसाधारण के प्रतिदिन के जीवन में भगवान के प्रति आस्था जगाने का यत्न किया। हज़रत मूसा के आदेशों की सद्य: परिस्थिति के अनुसार व्याख्या की, जिसके लिए लिखित 'थोरा' के अतिरिक्त मौखिक परंपराएँ भी वैसे ही बंधनकारी बनीं। वे आत्मा को अनश्वर मानते थे, पुनर्जन्म पर विश्वास करते थे और मानते थे कि बुरे कर्मों का फल भगवान देते हैं।






 ईसा और फारसी के बीच विवाद - चित्र  विकिपीडिया के सौजन्य से 

ऎसे ही यहूदियों के अंदर एक 'एस्सेनी' (Essene)  संप्रदाय आया। ये पंजाब के सैनी (ब्राम्हणों) से संबंधित कहे जाते हैं। उसका वर्णन हिंदी विश्वकोश ने (ग्रंथ १, पृष्ठ ५१०) निम्न शब्दों में किया है--

'हर 'एस्सेनी' ब्राम्ह मुहूर्त में उठता था और सूर्योदय के पहले प्रात: क्रिया, स्नान, उपासना आदि से निवृत्त हो जाता था। उसका मुख्य सिद्घांत था अहिंसा। एस्सेनी हर तरह की पशुबलि (जो येरूसलम मंदिर में प्रचलित थी), मांस-भक्षण या मदिरापान के विरूद्घ थे। हर एस्सेनी को दीक्षा के समय प्रतिज्ञा करनी पड़ती थी-'मैं यह्वे अर्थात् परमात्मा का भक्त रहूँगा। मैं मनुष्यमात्र के साथ सदा न्याय का व्यवहार करूँगा। मैं कभी किसी की हिंसा नहीं करूँगा और न किसी को हानि पहुँचाऊँगा। मनुष्यमात्र के साथ मैं अपने वचनों का पालन करूँगा। मैं सदा सत्य से प्रेम करूँगा।' आदि।

'उस समय के निकट हिंदु दर्शन के प्रभाव से इसराइल में एक और विचार-शैली ने जन्म लिया, जिसे 'कब्बाला' (Kabbalah)  (शाब्दिक अर्थ : 'परंपरा') कहते हैं। उसके सिद्घांत हैं-ईश्वर अनादि, अनंत, अपरिमित, अचिंत्य, अव्यक्त और अनिर्वचनीय है। वह अस्तित्व और चेतना से भी परे है।' 'कब्बाला' की पुस्तकों में योग की विविध श्रेणियाँ, शरीर के भीतर के चक्र और अभ्यास के रहस्यों का वर्णन है।'

ऎसा था हिंदु दर्शन का प्रभाव, जिसने यहूदियों के घोर निराशा और गुलामी के काल में भी श्रेष्ठ जीवन का संदेश देकर संस्कृति को जगाए रखा।




प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य

०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत
०८ - अक्कादी
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ -  आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत

रविवार, नवंबर 01, 2009

पुलस्तिन् के यहूदी


भूमध्य सागर के पूर्वी भाग का जिन प्राचीन सभ्यताओं से संबंध का वर्णन आता है; उनमें बाइबिल के 'पूर्व विधान' में वर्णित यहूदी जाति और सभ्यता है। उनका देश था पुलस्तिन् (फिलिस्तीन), बाइबिल ने जिसे दूध एवं मधु का देश कहा। आज प्राचीन इतिहास के 'उर्वर अर्धचंद्र' का यह दक्षिणी-पश्चिमी छोर बदलती जलवायु के कारण मरूभूमि  में परिणत हो गया है। उस समय की उनकी सभ्यता, ज्ञान, दर्शन और जीवन उक्त 'पूर्व विधान' की प्रथम पाँच पुस्तकों में वर्णित है, जो 'पंचक' (Pentateuch)  के नाम से प्रसिद्घ हैं। इसराइल (Israil) शब्द का प्रयोग 'पूर्व विधान' की प्रथम पुस्तक 'उत्पत्ति' में यहूदियों के बारह कबीलों के लिए हुआ है। इनके प्रथम पैगम्बर (अथवा पूर्व पुरूष) अब्राहम (Abraham) (इब्राहीम?) के पौत्र याकूब [Jacob] (जिनका दूसरा नाम 'इसराइल' था) ने इन बारह कबीलों को एक सूत्र में बाँधा था। ये बारह कबीले अपने को 'बनी इसराइल' (इसराइल के पुत्र) कहने लगे। बाद में इबरानी (Hebrew) भाषा में इसराइल का अर्थ ही 'भगवान का प्यारा राष्ट्र' हो गया। याकूब का एक पुत्र 'यहूदा' या 'जूडा' (Juda) था। उसी के नाम पर यह जाति यहूदी (Jew) कहलायी।



याकूब (जेकब) फरिश्ते से लड़ते हुऐ

यहूदी मूलत: सामी परिवार की एक शाखा थी। इनका एक दु:खपूर्ण, सामूहिक आव्रजनों (Migrations)  से लिपटा इतिहास है। (ये आव्रजन द्वितीय जागतिक महायुद्घ के बाद अब समाप्त हुए जब यहूदियों ने इच्छित देश, 'इसराइल', पा लिया।) यहूदी पंथ के संस्थापक अब्राहम ने अत्याचारों से पीड़ित सभी यहूदियों को सुमेर की उर नगरी तथा उत्तरी अरब देश से पुलस्तिन को प्रयाण कराया था। दोबारा हजरत मूसा के नेतृत्व में उन्होंने मिस्र में नील नदी के मुहाने से पुन:पुलस्तिन की ओर आव्रजन किया और पुन: इसराइल की प्रतिज्ञात भूमि (Promised land) पर आए (जिसे पैगंबर मूसा के अनुसार भगवान ने देने को कहा था)।

इस बीच हजरत मूसा ने उन्हें उपदेश दिया। वे बाइबिल के 'तौरेत' (इबरानी 'थोरा' : शाब्दिक अर्थ 'धर्म') भाग में संकलित किये गए हैं। उनके उपदेशों के दो सार हैं-उपनिषदों के निराकार ब्रम्ह, 'यहोवा' की उपासना और मनुस्मृति में धर्म के जो दस लक्षण बताए गए हैं, लगभग उन्हीं सदाचार के दस नियमों का पालन। यही बाइबिल के उस भाग में वर्णित दस आदेश ( ten commandments) हैं।

कहा जाता है कि उसके बाद सुलेमान (Soloman) के जमाने में उनकी लौकिक उन्नति हुयी। सुलेमान ने येरूसलम में विशाल मंदिर एवं भवन बनवाया। उनका व्यापार संसार के सभी ज्ञात देशों से और भारत से भी होने लगा। परंतु सुलेमान की मृत्यु के बाद इसराइल और जूडा पुन: स्वतंत्र रियासतें बनीं। उनमें झगड़े शुरू हुए। तब असीरिया (असुर देश:  Assyria) ने चढ़ाई की। वहाँ के विशाल मंदिर एवं भवनों में आग लगा दी और येरूसलम नगर भी ध्वस्त कर दिया। यहूदी पुरोहितों और सरदारों का संहार कर २७,२९० प्रमुख यहूदी परिवारों को कैद कद और गुलाम बनाकर बाबुल भेजा। वहाँ उन पर अनेक अत्याचार हुए और उन्हें नारकीय यातनाएँ सहन करनी पड़ीं।

परंतु जब ईरान ने बाबुल पर विजय पाई तो आर्य राजा 'कुरू' ने उन्हें स्वतंत्र किया। लूट का सारा धन जो बाबुल आया था, उसे यहूदी राजा के वंशज, जो वहाँ गुलाम थे, के सुपुर्द कर आदर के साथ वापस पुलस्तिन भेजा (देखें-पृष्ठ १६७)। राजा कुरू ने येरूसलम के मंदिर का अपने व्यय से पुनर्निर्माण कराया और पुराने पुरोहित के वंशजों को सौंप दिया। यहूदी जाति का पुनर्वास हुआ, उनके खुशी के दिन फिर लौटे। उनकी स्वतंत्रता व स्वायत्त शासन लौटा और उनके स्वर्णिम दिन आए। धार्मिक विचार लिपिबद्घ हुए। प्रात:-सायं का हवन और वेदी की अग्नि कभी बुझने न पाए; सुगंध एवं खाद्य पदार्थ की आहुति और विशेष अवसरों पर जीव की आहुति तथा भगवान का भजन उनका कर्मकांड बना।

सामी सभ्यताओं के जीवन में यह घटना अभूतपूर्व है। ईरानियों ने दास प्रथा के विपरीत इन गुलामों को स्वतंत्रता एवं स्वशासन दिया। जो अत्याचार उन पर दूसरों ने किया था उसका परिमार्जन किया। ऎसा था भारतीय संस्कृति का प्रभाव; जो इसके संपर्क में आया उसे उदात्त जीवन की प्रेरणा मिली। संस्कृति वास्तव में पारस पत्थर के समान है। जिसका स्पर्श करेगी वह मन-वचन-कर्म से स्वर्ण और खरा बनेगा।

पर सिकंदर के आक्रमण के बहाने पुन: विपत्ति आई। इसराइल और यहूदा पुन: परतंत्र हुए। अंत में सेल्यूकस और उसके वंश का राज्य आया। उसी वंश में अंतिओकस ने विद्रोह के दंड स्वरूप येरूसलम का मंदिर पुन: भूमिसात् कर दिया। हजारों यहूदियों को मरवा डाला। उनके ही देश में उनकी उपासना-पद्घति अपराध घोषित की गयी। उनकी धर्म पुस्तकें जला दी गयी और यहूदी मंदिरों में यूनानी प्रतिमाएँ स्थापित की गयी। लगभग पौने दो सौ वर्ष बाद यहूदी पुन: यूनानी पाश से मुक्त हो सके।

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प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य

०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत
०८ - अक्कादी
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ -  आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी