बौद्घ दर्शन में चित्त (मन) का सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक विश्लेषण है, जिससे सब भौतिक, मराभौतिक भाव एवं अवस्थाएं जानी जाती हैं। पहले भी इनमें कुछ भारतीय दार्शनिकों तथा सांख्य योगियों को ज्ञात थीं। उसी को एक आधुनिक, वैज्ञानिक और तर्कपूर्ण ढंग से रखकर आगे बढ़ाया। गृहस्थ और श्रमण—दोनों प्रकार के शिष्य बने। साधारण शिष्यों के लिए पांच शील का विधान था, पर नए भिक्षु के लिए दस शील और उत्तरोत्तर उससे अधिक का विधान। 'बुद्घं शरणं गच्छामि, धर्मं शरणं गच्छामि, संघं शरणं गच्छामि' प्रवेश का मंत्र बना।
उनकी विशेषता जीवनोद्देश्य प्राप्त करने के लिए एक तर्कशुद्घ ढांचा खड़ा करने में है। इसके लिए प्राचीन भारतीय दर्शन में व्यवहृत शब्दों का प्रयोग किया। पंद्रह हजार ग्रंथों में संगृहीत विचारों में (जो अनेक देशों और भाषाओं में हैं) उन्होंने किसी नए मत के प्रचार की बात कभी नहीं कही। सदा चिरकाल से आए 'धम्म' (धर्म) का वर्णन किया। बारंबार कहा, 'एष पोराण पन्था:।' (पाली : यह पुरातन पंथ है) तरह-तरह के उदाहरण देकर तर्कसम्मत आधार पर दर्शन को कसा। वे समन्वयवादी थे, पुरातन विचारों को नए समयानुकूल ढंग से रखकर सबको क्रोध एवं हिंसा की प्रवृत्ति पर विजय प्राप्त कर, त्याग और शांति का मार्ग सुझाया। इसी से करूणावतार कहाए। अपनी साधना के बल पर आध्यात्मिक ज्ञान के चरमोत्कर्ष पर जो अधिष्ठित हुए और जिन्होंने मानव के महाकल्याण का शंख फूंका, उस महाविभूति को श्रद्घा से भारत ने विष्णु का अवतार कहा।
उनका चिंतन भारतीय दर्शन की अजस्त्र प्रवाहित धारा का अभिन्न अंग है। भारतीय वाङ्मय में ज्ञान की अनेक धाराओं की वर्णन आया है--'वैदिका:, मीमांसका:, नैयायिका:, बौद्घा:, शैवा:, शाक्या:।' बौद्घ धारा भी भारतीय दर्शन की शैली है। अनेक बाद पाश्चात्य मानसिकता लिये और दर्शन से अछूते कुछ व्यक्ति इस 'बौद्घ' धारा को एक अलग पंथ या वैदिक धारा के प्रति विद्रोह ( अथवा ब्राम्हणों के विरूद्घ क्षत्रिय विद्रोह) के रूप में चित्रित करते हैं। ये संपूर्ण बौद्घ ग्रंथों को धोखा देकर भारतीय संस्कृति को झुठलाते हैं। एक दिन हम लेह से दक्षिण-पूर्व सिंधु नदी पार कर वहां के प्रसिद्घ गुफा में पहुंचे तो त्रिविष्टप (तिब्बत) के पास इस बौद्घ मंदिर में बुद्घ भगवान की बृहत् मूर्ति के चारों ओर हिंदू देवी-देवताओं की, विष्णु के पूर्व अवतारों की प्रतिमाएं तथा चित्र देखे। ऎसा प्राय: सभी बौद्घ मंदिर और अन्य हिंदू देवी-देवताओं के मंदिर एक-दूसरे से ग्रथित है।
कोरिया में बौद्ध मन्दिर - चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से उसी की सर्तों पर
बुद्घ ने अपना उपदेश मागधी अथवा पाली में दिया। उसे सभी देशों में अपनी-अपनी भाषा में अनुवाद करने का भिक्षुओं को आदेश दिया। बौद्घ साहित्य संसार के साहित्य की अपूर्व निधि है। बुद्घ के बाद ही उनकी पूजा और संभवतया मूर्तिपूजा प्रारंभ हुई। बुद्घ की मुद्राओं में मूर्तियां संपूर्ण एशिया में मिलती हैं और बौद्घ विहारों के अवशेष भी। उत्तर में साइबेरिया (प्राचीन शिविर देश, जहां शंकु की तरह के शिविरनुमा घर हैं) से लेकर मंगोलिया, चीन, जापान और दक्षिण-पूर्व के देश, वियतनाम (प्राचीन चंपा), कंबोडिया (प्राचीन कंबोज), थाईलैंड (प्राचीन स्याम), मलयेशिया (प्राचीन मलय देश), सुमात्रा, जावा (प्राचीन यव द्वीप)--सभी जगह यह मत छा गया। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि ईसा के जीवन के जो कुछ वर्ष अज्ञात हैं वे भारत में बीते, जहां से ईसा ने 'अहिंसा' अपनाई। पर येस्सलम में भी, जहां ईसा का जन्म हुआ, एक बौद्घ विहार का होना कहा जाता है, जहां से यह विचार ईसाई जगत में फैला।
इसके बाद संसार के सबसे बड़ भूखंड एशिया में भारतीय संस्कृति का पुन: आलोक फैला। भारतीय चिंतन का आधुनिक काल की देहली पर दस्तक देता स्वर्ण युग आया। बुद्घ के मानव मात्र के कल्याण के लिए इस संदेश को एशिया ने सिर माथे लगाया। कल्पना करें उदात्त सभ्यता के परम उत्कर्ष की, जिसने मानव की समता के आदर्श को रखा, विचार -स्वतंत्रता का बोध कराकर तर्क के आधार पर जीवन-दर्शन खड़ा किया, अहिंसा का अमर संदेश दिया, त्याग एवं शांति के आधार पर मान-कल्याण का मार्ग सुझाया। यह संसार के इतिहास में अभूतपूर्व है।
कालचक्र: सभ्यता की कहानी
०१- रूपक कथाऍं वेद एवं उपनिषद् के अर्थ समझाने के लिए लिखी गईं०२- सृष्टि की दार्शनिक भूमिका
०३ वाराह अवतार
०४ जल-प्लावन की गाथा
०५ देवासुर संग्राम की भूमिका
०६ अमृत-मंथन कथा की सार्थकता
०७ कच्छप अवतार
०८ शिव पुराण - कथा
०९ हिरण्यकशिपु और प्रहलाद
१० वामन अवतार और बलि
११ राजा, क्षत्रिय, और पृथ्वी की कथा
१२ गंगावतरण - भारतीय पौराणिक इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण कथा
१३ परशुराम अवतार
१४ त्रेता युग
१५ राम कथा
१६ कृष्ण लीला
१७ कृष्ण की सोलह हजार एक सौ रानियों
१८ महाभारत में, कृष्ण की धर्म शिक्षा
१९ कृष्ण की मृत्यु और कलियुग की प्रारम्भ
२० बौद्ध धर्म
२१ जैन धर्म
२२ सिद्धार्त से गौतम बुद्ध तक का सफर
२३ बौद्ध धर्म का विकास