पहले ज्ञान लिपिबद्ध न होने के कारण कुछ रूपक कथाऍं वेद एवं उपनिषद् के अर्थ समझाने के लिए लिखी गईं। ऐसी कथा शक्ति की देवी दुर्गा की है। देवासुर संग्राम में एक बार देव हार गए। उनका ऐश्वर्य, श्री और स्वर्ग सब छिन गया। दीन-हीन दशा में वे भगवान् के पास पहुँचे। भगवान् के सुझावपर सबने अपनी सभी शक्तियॉं ( शस्त्र) एक स्थान पर रखीं। शक्ति के सामूहिक एकीकरण से दुर्गा उत्पन्न हुई। पुराणों में उसका वर्णन है—उसके अनेक सिर हैं, अनेक हाथ हैं। प्रत्येक हाथ में वह अस्त्र-शस्त्र धारण किए हैं। सिंह, जो साहस का प्रतीक है, उसका वाहन है। देवी दुर्गा संघटन का रूपक है। उसके घटकों के सिर संघटक के सहस्त्रों सिर हैं, सबके हाथ संघटन के असंख्य हाथ हैं। ऐसी शक्ति की देवी ने महिषासुर को मार डाला। राम ने लंका पर आक्रमण के समय दुर्गा की आराधना की थी। शक्ति की देवी के विभिन्न रूपों की दशहरे के पहले नवरात्रों में पूजा होती है। शास्त्र ने कहा है – ‘संघे शक्ति: कलौ युगे’।
सभी सभ्यताओं में प्रतीकात्मक कथाऍं कही गई हैं। कुछ बातें कहने की मनाही के कारण या अप्रिय होने के कारण या मानसिक निषेध के कारण प्रतीकों में फूट निकलती हैं। जॉन बनियन (John Bunyan) को इंग्लैंड में प्रोटेस्टेंट मत के विरूद्ध उपदेश देने के कारण कैद कर लिया गया। वह कम पढ़ा-लिखा, सीधा-सादा व्यक्ति था। उसने अपने कैदी जीवन में एक धार्मिक प्रतीकात्मक कहानी ‘तीर्थयात्री की प्रगति’(Pilgrim’s Progress) लिखी। यह बाइबिल के बाद अंग्रेजी की सबसे अधिक पढ़ी गई पुस्तक है। इससे प्रतीकात्मक शैली की लोकप्रियता का अनुमान लगा सकते हैं।
कालचक्र: सभ्यता की कहानी
०१- रूपक कथाऍं वेद एवं उपनिषद् के अर्थ समझाने के लिए लिखी गईं