रविवार, जून 27, 2010
मलय देश और पूर्वी हिन्दु द्वीप समूह
ऎसे ही मलय देश (Malayasia) और हिंदु महासागर के द्वीप, जिन्हें पूर्वी हिंद द्वीप समूह (East Indies) भी कहते हैं, जिनमें सुमात्रा, जावा (प्राचीन यव द्वीप) से लेकर मदुरा, बाली आदि, पूर्व में प्रशांत महासागर की ओर बढ़ते लघु द्वीप तथा कालीमंथन, जिसे अब बोर्निओ (Borneo) भी कहते हैं और जहाँ शरद हेबालकर के अनुसार, गणेश एवं बुद्घ की मूर्तियाँ तथा कमल, सूर्य, चंद्र, कूर्म और नाग की स्वर्ण-प्रतिमाएँ खंडहरों में मिली हैं।
गुरुवार, जून 17, 2010
श्याम और लव देश
विक्रम संवत् की दसवीं-ग्यारहवीं शती में 'थाई' (ताई : Tai) लोग चीन के नानचाओ प्रदेश से इस दक्षिण-पूर्व एशिया में आए। पश्चिम में ब्रम्ह देश से लगे प्रदेश में अपने को तेलंगी कहने वाले 'मान' लोग (हरिपुंजय राज्य) प्रभावशाली थे और कंबोज के विस्तृत राज्य में ख्मेर। ये दोनों ही भारतीय जीवन से ओतप्रोत थे। ऎसे समय में थाई भी, जिनका नानचाओ प्रदेश भारतीय संस्कृति से परिचित था, उसी में रँगते गए। अंत में कंबुज राज्य का पश्चिमी भाग 'थाई' लोगों का स्याम देश (Thailand) बना, जहाँ के राजा 'राम' की पदवी धारण करते थे।
रविवार, जून 13, 2010
अंग्कोर थोम व जन-जीवन
विक्रम संवत् की नौवीं शताब्दी में जयवर्मन द्वितीय के द्वारा कंबुज की पुन: प्रतिष्ठा हुयी। तब 'अंग्कोर युग' का प्रारंभ हुआ, जो कंबुज के इतिहास में 'स्वर्ण युग' कहा जाता है। इसी युग में इंद्रवर्मन ने अनेक मंदिरों एवं झीलों का निर्माण कराया। यशोवर्मन (दशम शताब्दी) ने, जो स्वयं संस्कृत का विद्वान और हिंदु शास्त्रों का मर्मज्ञ था, 'यशोधरपुर' राजधानी बसायी। वह 'अंग्कोर थोम' ('थोम' का अर्थ है राजधानी) के नाम से प्रसिद्घ है और थोड़ी दूर पर है 'अंग्कोर (ओंकार) वात' नामक प्रसिद्घ विष्णु मंदिर।
शनिवार, जून 05, 2010
लघु भारत
कौंडिन्य के वंशजों में फूनान साम्राज्य के प्रतापी सोमवंशी राजा चंद्रवर्मा, जयवर्मा, रूद्रवर्मा आदि हुए जिन्होंने हिंदु संस्कृति की दुंदुभि बजायी। अन्य राज्यों को दूत भेजकर संबंध स्थापित किए। हिंदु जीवन के प्रचारक एवं बौद्घ भिक्षु चीन तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में और सुदूर द्वीपों में भेजे। कहते हैं कि विक्रम संवत् की चौथी शताब्दी के अंत में द्वितीय हिंदुकरण का प्रवाह 'चंदन' नामक एक भारतीय के फूनान क्षितिज में प्रकट होने से प्रारंभ होता है।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)