सोमवार, अप्रैल 26, 2010
दक्षिण-पूर्व एशिया
दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय संस्कृति का प्रकाश जिन्होंने फैलाया, उनकी चार लहरों की चर्चा शरद हेबालकर ने अपने पुस्तक 'भारतीय संस्कृति का विश्व-संचार' (Indian Culture over the World by Sharad Hebalkar) में की है। प्रथम, भारतीय अन्वेषक तथा व्यापारी के रूप में हिंदु संस्कृति के प्रचारक वहाँ पहुँचे।
रविवार, अप्रैल 18, 2010
ब्रम्ह देश
बौद्ध मन्दिर - चित्र विकिपीडिया से |
भारत एवं ब्रम्ह देश का गहन सांस्कृतिक नाता रहा है। यह नाता उस देश के स्थलों के पुराने नामों में, वहाँ की पुरानी परंपराओं एवं मान्यताओं में, साहित्य, रीति-रिवाजों तथा सामाजिक धारणाओं में दिखता है। यहाँ का जीवन वैष्णव एवं बौद्घ मतों का अद्भुत समन्वय है। प्राचीन काल में विष्णु और बुद्घ एक ही मंदिर में स्थापित रहते थे।
चीनी यात्रियों ने उस समय के हिंदु राज्य के वैभव का वर्णन किया है। परंपरा के अनुसार उत्तर भारत में वैशाली से और दक्षिण भारत में पल्लव राजाओं की प्रेरणा से संस्कृति का संदेश लेकर भारतीय यहाँ आए। ऎसे ही ब्रम्ह देश के 'वर्मा' या 'वर्मन' राजा दक्षिण भारत के मूल निवासी थे। यहीं 'हरिविक्रम' ने विक्रम वंश की नींव डाली, जिसमें प्रतापी राजा हुए। उन्होंने 'श्रीक्षेत्र' नगर को अपनी राजधानी बनाया और 'शक' नाम से एक संवत् भी चलाया। उनका तथा जन साधारण का वैष्णव जीवन था। रीति और शिक्षा में हिंदु परंपराएँ आईं। भारतीय शासन प्रणाली और मनुस्मृति पर आधारित विधि स्थानिक परिस्थितियों को ध्यान में रख अपनायी गयी। इसी से देश में स्वायत्तता आई और भारतीय संस्कृति की भूमिका में वहाँ की मूल प्रकृति का विकास हुआ। सामाजिक जीवन, कला, स्थापत्य- सभी में भारतीय ढंग होते हुए भी स्वतंत्र प्रतिभा विकसित हुयी।बौद्घ मंदिरों में उत्तरी भारत के समान शिखर थे और दक्षिण भारतीय गर्भगृह। बौद्घ मत में भी वैदिक पूजा-पद्घति। वैसे ही उपासना, उत्सव, अभिषेक, समारोह वैदिक पद्घति से करने की रीति बनी। सभी उत्सवों के प्रारंभ में भगवान की प्रार्थना होती। संवत् की बारहवीं शताब्दी में 'अनव्रत' नामक राजा हुआ, जिसने 'पैगन' को राजधानी बनाया। पाली वहाँ की राजभाषा बनी। उस समय अनेक 'स्मृतियों' के पाली भाषा में अनुवाद हुए। ऎसे ही 'मान' (Mon) लोगों ने, जो अपने को 'तेलंगी' कहते थे, दक्षिण में अपनी राजधानी 'हंसावती' (आधुनिक पेगू : Pegu) बसायी। उन्हीं का 'रमम्गो' नगर आज रंगून (Rangoon ) बन गया।
पर यह जीवन आगे टिकने वाला न था। दसवीं शती में चीन की उथल-पुथल के कारण विस्थापितों की लहरें ब्रम्ह देश एवं स्याम (आधुनिक थाईलैंड) में आईं। इन्होंने ब्रम्ह देश के जीवन को हिला दिया। पर विक्रम संवत् की तेरहवीं शताब्दी में चीन के मंगोल सम्राट कुबलई खाँ के आक्रमण ने पैगन एवं श्रीक्षेत्र के मंदिर तथा प्रासाद नष्ट कर दिए।
कालचक्र: सभ्यता की कहानी
भौतिक जगत और मानव
मानव का आदि देश
सभ्यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं
अवतारों की कथा
स्मृतिकार और समाज रचना
भौतिक जगत और मानव
मानव का आदि देश
सभ्यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं
अवतारों की कथा
स्मृतिकार और समाज रचना
प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ - आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ - योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ - मंगोलिया
३३ - चीन
३४ - चीन को भारत की देन
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ - आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ - योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ - मंगोलिया
३३ - चीन
३४ - चीन को भारत की देन
३५ - अगस्त्य मुनि और हिन्दु महासागर
३६ - ब्रम्ह देश
रविवार, अप्रैल 11, 2010
अगस्त्य मुनि और हिन्दु महासागर
अगस्त्य मुनि की प्रतिमा का चित्र - विकिपीडिया के सौजन्य से |
अब हिंदु महासागर के द्वीप एवं दक्षिण-पूर्व एशिया के देश। कभी अगस्ति (अगस्त्य) (Agastya) मुनि ने हिंदु महासागर का अन्वेषण किया था। इसी से आलंकारिक भाषा में कहते हैं, उन्होंने उस 'महासागर को चुल्लू में भरकर पी लिया'। दक्षिणी गोलार्द्घ में महासागर यात्रा करते समय उनकी कीर्ति का सूचक दक्षिण का अगस्ति तारा पथ-प्रदर्शक बना (देखें- पूष्ठ ४०)। प्राचीन काल में गुजरात से सीधा दक्षिणी ध्रुव का सागर मार्ग, जिस पर बीच में कोई भूमि नहीं पड़ती, पता था। आज सोमनाथ मंदिर के परकोटे पर दक्षिणी ध्रुव तक यह सीधा सागर मार्ग बताता, तीर चिन्हांकित पट्ट देख सकते हैं। शरद हेबालकर ने अपनी पुस्तक 'भारतीय संसकृति का विश्व-संचार' में भारत के उन साहसी नाविकों की महासागर की विजय-गाथा और भारतीय संस्कृति के इन प्रचारकों की कहानी का हृदयग्राही वर्णन किया है-जिन्होंने उत्ताल तूफानी तरंगों के बीच, आँधियों के साये में, काल से खेलते हुए अनजाने प्रदेशों की यात्रा कर नवीन भूखंडों में भारतीय संस्कृति का दीप प्रज्वलित किया।
कभी श्रीलंका (सिंहल द्वीप : Ceylon ) और ब्रम्ह देश ( या बर्मा : Burma) (आधुनिक म्याँमार : Myanmar) वैसे ही भारत के अंग थे जैसे गांधार (कंधार और अफगानिस्तान)। इनका संपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक जीवन भारतीयों द्वारा निर्मित था। भारत के प्राचीन साहित्य में यह 'लंका', 'सिंहल' अथवा 'रत्नद्वीप' कहकर विख्यात है। रामायण में राम द्वारा लंका विजय का वर्णन है। कहते हैं कि चित्तौड़ की रानी पद्मिनी सिंहल द्वीप की राजकुमारी थी।
सिंहली परंपरा, जो प्राचीन ग्रंथ 'महावंश' में उल्लिखित है, के अनुसार गुजरात से सिंहपुर का राजकुमार विजय अपने सात सौ साथियों सहित विक्रम संवत् पूर्व पाँचवीं शताब्दी में पोत से श्रीलंका आया। किंवदंती है कि उसके पूर्वज बंगाल में सिंहपुर के निवासी थे तथा अपने को 'सिंहल' कहते थे। लंका में यक्षों का निवास था। विजय ने एक यक्ष-कन्या से विवाह भी किया; पर बाद में वह चली गयी। तब मदुराई के पांडु राजा से निवेदन करने पर उसका विवाह पांडु राजकुमारी के साथ हुआ और उसके सभी साथियों को वधुएँ प्राप्त हुयीं। बाद में विजय ने अपने छोटे भाई को सिंहपुर (बंगाल) से बुला भेजा, जिसने अपने कनिष्ठ पुत्र पांडुवासुदेव को भेजा। वह अपने कुछ साथियों सहित पूर्वी तट पर 'गोकन्न' (आधुनिक त्रिंकोमाली) पत्तन पर उतरा। विजय और पांडुवासुदेव के वंशजों ने सिंहली राज्य स्थापित किया, जो उतार-चढ़ाव तथा व्यवधानों के बीच उन्नीसवीं शताब्दी तक चलता रहा। इस प्रकार उत्तरी भारत के पूर्व एवं पश्चिम दोनों ओर से आकर सिंहल बसे और फिर दक्षिण भारतीय। इन्होंने अपनी राजधानी अनुराधापुर, सारस्वत सभ्यता की नगर-रचना के समान बनाई और उसी प्रकार की समाज-रचना और राजनीतिक ढाँचा खड़ा किया। भारतीय संस्कृति का यह नवीन पालना बना।
ये हिंदुओं के उपनिवेश वैष्णव मतावलंबी थे। जब सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र को यहाँ भेजा ('महावंश' के अनुसार, वे आकाश मार्ग से आए) तो राजा-प्रजा सभी ने उनका स्वागत किया। राजा ने 'महामेघ' नामक उपवन दिया, जहाँ उन्होंने प्रथम बौद्घ विहार बनाया। बाद में महेंद्र की बहन संघमित्रा भी आई। दोनों ने भिक्षु-भिक्षुणी संघ स्थापित किए। लंका ने बौद्घ मत अपनाया। भारतीय संस्कृति और उसके मत-मतांतर शांति काल के सुफल हैं। दक्षिण भारत के राज्यों ने सिंहल द्वीप पर भी प्रभाव जमाया। तब पांडु, चोल तथा पल्लव राजाओं के झगड़ों का प्रक्षेप लंका पर पड़ना स्वाभाविक था। यदाकदा उनके आपसी झगड़ों की लीलास्थली लंका भी बनी। दक्षिण भारत में मुसलिम राज्य आने पर संस्कृति का भारत से आता प्रवाह सूख गया।
लंका की प्रमुख नदियों को 'गंगा' कहते हैं। 'महावेलि गंगा' पूर्व त्रिकोमाली में सागर में मिलती है; 'कालू गंगा' एवं 'केनाली गंगा' पश्चिम सागर में गिरती है और 'बलवे गंगा' दक्षिण में। नगरों और व्यक्तियों के नाम, प्रशासनिक शब्द तथा पद, जीवन और समाज-रचना, सभी एक लघु भारत की सृष्टि करते हैं, जो उत्तरी भारत के नमूने पर है। उसमें वृंत से कट जाने के कारण भटकाव तथा आपसी संघर्ष आया।
कभी श्रीलंका (सिंहल द्वीप : Ceylon ) और ब्रम्ह देश ( या बर्मा : Burma) (आधुनिक म्याँमार : Myanmar) वैसे ही भारत के अंग थे जैसे गांधार (कंधार और अफगानिस्तान)। इनका संपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक जीवन भारतीयों द्वारा निर्मित था। भारत के प्राचीन साहित्य में यह 'लंका', 'सिंहल' अथवा 'रत्नद्वीप' कहकर विख्यात है। रामायण में राम द्वारा लंका विजय का वर्णन है। कहते हैं कि चित्तौड़ की रानी पद्मिनी सिंहल द्वीप की राजकुमारी थी।
सिंहली परंपरा, जो प्राचीन ग्रंथ 'महावंश' में उल्लिखित है, के अनुसार गुजरात से सिंहपुर का राजकुमार विजय अपने सात सौ साथियों सहित विक्रम संवत् पूर्व पाँचवीं शताब्दी में पोत से श्रीलंका आया। किंवदंती है कि उसके पूर्वज बंगाल में सिंहपुर के निवासी थे तथा अपने को 'सिंहल' कहते थे। लंका में यक्षों का निवास था। विजय ने एक यक्ष-कन्या से विवाह भी किया; पर बाद में वह चली गयी। तब मदुराई के पांडु राजा से निवेदन करने पर उसका विवाह पांडु राजकुमारी के साथ हुआ और उसके सभी साथियों को वधुएँ प्राप्त हुयीं। बाद में विजय ने अपने छोटे भाई को सिंहपुर (बंगाल) से बुला भेजा, जिसने अपने कनिष्ठ पुत्र पांडुवासुदेव को भेजा। वह अपने कुछ साथियों सहित पूर्वी तट पर 'गोकन्न' (आधुनिक त्रिंकोमाली) पत्तन पर उतरा। विजय और पांडुवासुदेव के वंशजों ने सिंहली राज्य स्थापित किया, जो उतार-चढ़ाव तथा व्यवधानों के बीच उन्नीसवीं शताब्दी तक चलता रहा। इस प्रकार उत्तरी भारत के पूर्व एवं पश्चिम दोनों ओर से आकर सिंहल बसे और फिर दक्षिण भारतीय। इन्होंने अपनी राजधानी अनुराधापुर, सारस्वत सभ्यता की नगर-रचना के समान बनाई और उसी प्रकार की समाज-रचना और राजनीतिक ढाँचा खड़ा किया। भारतीय संस्कृति का यह नवीन पालना बना।
ये हिंदुओं के उपनिवेश वैष्णव मतावलंबी थे। जब सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र को यहाँ भेजा ('महावंश' के अनुसार, वे आकाश मार्ग से आए) तो राजा-प्रजा सभी ने उनका स्वागत किया। राजा ने 'महामेघ' नामक उपवन दिया, जहाँ उन्होंने प्रथम बौद्घ विहार बनाया। बाद में महेंद्र की बहन संघमित्रा भी आई। दोनों ने भिक्षु-भिक्षुणी संघ स्थापित किए। लंका ने बौद्घ मत अपनाया। भारतीय संस्कृति और उसके मत-मतांतर शांति काल के सुफल हैं। दक्षिण भारत के राज्यों ने सिंहल द्वीप पर भी प्रभाव जमाया। तब पांडु, चोल तथा पल्लव राजाओं के झगड़ों का प्रक्षेप लंका पर पड़ना स्वाभाविक था। यदाकदा उनके आपसी झगड़ों की लीलास्थली लंका भी बनी। दक्षिण भारत में मुसलिम राज्य आने पर संस्कृति का भारत से आता प्रवाह सूख गया।
लंका की प्रमुख नदियों को 'गंगा' कहते हैं। 'महावेलि गंगा' पूर्व त्रिकोमाली में सागर में मिलती है; 'कालू गंगा' एवं 'केनाली गंगा' पश्चिम सागर में गिरती है और 'बलवे गंगा' दक्षिण में। नगरों और व्यक्तियों के नाम, प्रशासनिक शब्द तथा पद, जीवन और समाज-रचना, सभी एक लघु भारत की सृष्टि करते हैं, जो उत्तरी भारत के नमूने पर है। उसमें वृंत से कट जाने के कारण भटकाव तथा आपसी संघर्ष आया।
कालचक्र: सभ्यता की कहानी
भौतिक जगत और मानव
मानव का आदि देश
सभ्यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं
अवतारों की कथा
स्मृतिकार और समाज रचना
भौतिक जगत और मानव
मानव का आदि देश
सभ्यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं
अवतारों की कथा
स्मृतिकार और समाज रचना
प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ - आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ - योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ - मंगोलिया
३३ - चीन
३४ - चीन को भारत की देन
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ - आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ - योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ - मंगोलिया
३३ - चीन
३४ - चीन को भारत की देन
३५ - अगस्त्य मुनि और हिन्दु महासागर
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