इस समाज-मंथन से ऐश्वर्य तथा संपदा के साथ मानव को वारूणी भी प्राप्त हुई। असुरों के उपासक, जो प्राकृतिक शक्तियों के ज्ञान में आगे थे, पर रजोगुण एवं तमोगुण प्रधान थे, वारूणी पीकर मदहोश हो गए। इसलिए उनके पल्ले अमृत नहीं पड़ा। वे एकरस सांस्कृतिक जीवन के अंग न बन बसे। पर एक विशाल प्रयत्न सभी प्रकार के लोगों को मिलाकर साथ चलने का अध्यवसाय हुआ और इसी से प्रारंभिक समृद्धि, सामर्थ्य और लौकिक संपदा एकरस सामाजिक जीवन की खोज में मिलीं।
भारत आर्यों का आदि देश है; इसके विभिन्न भागों में आर्यों की भिन्न उपजातियॉं निवास करती थीं। कुछ अन्य उपजातियों के लोग भी आ बसे। सबके भावात्मक मिश्रण से एकात्म सामाजिक जीवन के निर्माण का श्रीगणेश जंबूद्वीप (बृहत्तर भारत) में हुआ। आज भी सभी विभिन्नताओं के बीच पिरोई भारत की मौलिक एकता दिखती है और जिस महामना व्यक्ति या जिस जाति के लोगों के द्वारा मानव के प्रारंभिक काल में यह चमत्कार संभव हुआ उसे अवतार कहा। सागर-मंथन के रूपक को लेकर उसे सागर के प्रारंभिक जीव कछुआ की संज्ञा दी गई। यही कच्छप अवतार की गाथा है।
इस कथा से जुड़ी ब्रम्हांड संबंधी दो अन्योक्तियॉं हैं। महाभारत के अनुसार, मंथन के समय सागर से चंद्रमा भी मिला। अभी तक कुछ भूशास्त्री कहते थे कि पृथ्वी का जो भाग टूटकर चंद्रमा बन गया, वहॉं पर आज प्रशांत महासागर है। इसी प्रकार कहते हैं कि अमृत बॉंटने के समय ‘राहु’ नामक असुर, जो वारूणी न पीता था, देवताओं का वेष बनाकर उनकी पंक्ति में आ बैठा। देवताओं के साथ उसे भी अमृत मिला। पर चंद्र एवं सूर्य ने उसकी पोल खोल दी। अभी अमृत उसके मुख में ही था कि भगवान ने सिर ‘राहु’ (dragons head) धड़ ‘केतु’ (dragons tail) से अलग कर दिया। सिर अमर हो गया और उसे आकाशीय ग्रह मान लिया गया। इसलिए राहु एवं चंद्र को पर्व (अमावस्या तथा पूर्णिमा) के दिन ग्रसने का प्रयत्न करता है। यह सूर्यग्रहण तथा चंद्रग्रहण का वर्णन मात्र है।
कालचक्र: सभ्यता की कहानी
०१- रूपक कथाऍं वेद एवं उपनिषद् के अर्थ समझाने के लिए लिखी गईं
०२- सृष्टि की दार्शनिक भूमिका
०३ वाराह अवतार
०४ जल-प्लावन की गाथा
०५ देवासुर संग्राम की भूमिका
०६ अमृत-मंथन कथा की सार्थकता
०७ कच्छप अवतार
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जवाब देंहटाएंDr P K Shrotriya