वीरेन्द्र भाईसाहब की पुस्तकों में सबसे पहले हम उनकी पुस्तक 'कालचक्र - सभ्यता की कहानी' इस चिट्ठे पर पोस्ट करेंगे।
सभ्यता की यह कहानी सृष्टि के विचारों से लेकर साम्राज्यों और युद्ध के उतार-चढ़ाव के बीच होकर आधुनिक वैचारिक आंदोलनों तक की गाथा है। इसका रंगमंच संपूर्ण जगत है। कैसे मानव जीवन में विचार उत्पन्न हुये? कैसे उसने कुटुंब के रूप में रहना सीखा? कैसे साम्राज्य-लालसा के साथ तथाकथित सभ्यताओं का संघर्ष हुआ? और अब हम नई सदी की दहलीज पर आकर खड़े हैं। कौन से विचार हैं जिन्होंने मानव को भिन्न देशों में व भिन्न समय में आलोडित किया, कैसे संस्कृति उपलाई—का यह सरल बोधगम्य विवेचन है।
वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण से लिखी कई यह पुस्तक आज के युग की विचारधराओं का इतिहास व उनकी पृष्टभूमि ही नहीं, वरन उस संघर्ष की और उसमें खपते लोगों की भी कहानी है, जिन्होंने युद्ध के नगाड़ों के बीच मानव सभ्यता व उसके मूल्यों को जीवित रखा, जो साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाओं के बीच विस्मृत हो जाते हैं।
प्राचीन भारतीय चिंतन को विशद करता यह ग्रंथ मानव संस्कृति के प्रवाह को विज्ञान व मानविकी के स्तरों में स्पष्ट करता है और जन-जीवन से लेकर राष्ट्र-जीवन को प्रेरणा देने वाला है। इसलिये यह विश्व विजय का स्वप्न सँजोए, क्रूरता भरे अध्यायों का तथा साम्राज्यों की नामावली व उनके संवत्सर का क्रम प्रकट करता इतिहास न होकर मानव जीवन की,उसके विचारों की कहानी है। जहां यह पुस्तक विद्यार्थियों के लिए जिज्ञासा और अधिक जानने की प्रेरणा देती है वहां साधारण पाठक के लिए अपने और मानव संस्कृति के विषय में एक उपन्यास की तरह रूचिकर ढंग से आधुनिक खोजों को उजागर करती है। पुराततव से लेकर आधुनिक विज्ञान तक की विकास यात्रा इसकी परिधि है।
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