दिग्भेद (parallax) के लंबन सिद्धांत से दूरी एक सीमा तक नाप सकते हैं जो सौरमंडल में लाखों किलोमीटर में सही हो और अंतरिक्ष में अरबों किलोमीटर में। पर हर दशा में समय नापने की एक विधि नहीं है। जीवाश्मों के काल का कुछ अनुमान पास की परतों में कार्बन समस्थानिकों (carbon isotopes) का अनुपात लगाकर हो जाता है। कार्बन के कई समस्थानिक हैं, जो उन्मुक्तावस्था में निश्चित अनुपात में रहते हैं। जब कार्बन का अंश पृथ्वी में दब जाता है तब कार्बन-१४ ( C-१४) का रेडियोधर्मिता के कारण ह्रास होता रहता है। पर कार्बन के दूसरे समस्थानिकों का वायुमंडल से संपर्क विच्छेद और कार्बन-द्वि-ओषिद न बनने के कारण उनके आपस के अनुपात में अंतर हो जाता है। पृथ्वी में दबे कार्बन में उसके समस्थानिकों का अनुपात जानकर उसके दबने की आयु का पता शताब्दी के हेर-फेर से कर सकते हैं। कुछ और नए तरीके ईजाद हुए हैं। पर सृष्टि की कहानी की अन्य घटनाओं के बारे में अटकलें ही हो सकती हैं। इसी से अभी तक कल्पों और युगों की धुँधली अस्पष्ट इकाई में बात करने की आवश्यकता पड़ी।
सूर्य की निर्मिति से आज तक समय को दिग्दर्शित करने के लिए एक पॉंच किलोमीटर लंबा पैमाना लें। इस पैमाने में एक किलोमीटर एक अरब वर्ष (109) के कालखंड के बराबर है, और विक्रमी संवत् के दो सहस्त्र वर्ष का काल दो किलोमीटर द्वारा दिखाया गया है। ऐतिहासिक कालखंड के लगभग तीन किलोमीटर हैं। अब कल्पना करें कि हम समय की विमा के यात्री हैं और विहंगम दृष्टि से दुनिया को देख रहे हैं। जैसी एच.जी.वेल्स. (H.G.Wells) की कहानी ‘काल यंत्र’ (The Time Machine) में एक वैज्ञानिक ने समय में काल्पनिक यात्रा की; सोचें कि वैसी यात्रा हम कर रहे हैं।
कालचक्र: सभ्यता की कहानी
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