भारतीय पुराणों का विशेष महत्व है। इनमें रूपक में कही गई कहाजियॉं भी हैं। अपने देश की ऐतिहासिक घटनाओं और जनश्रुतियों के अतिरिक्त कुछ दुसरे देशों की भी जनश्रुतियॉं हैं। वेद ग्रंथों में जिस प्रकार संसार का ज्ञान संकलन करने का प्रयत्न हुआ, वैसा ही उस समय की सभी देशों की ज्ञात घटनाओं का संग्रह पुराणों में किया गया। इसलिए पुराणों में अनेक प्रकार के लोगों का वर्णन मिलता है। इनमें से बहुतों को, जैसे –यक्ष, गंधर्व, किन्नर, नाग आदि—हम भूल गए कि कौन थे, कहॉं के निवासी थे। पुराणों में वर्णित अनेक प्रदेश आज हम संसार के मानचित्र में नहीं बता सकते। आज पुराण वर्णित सभी घटनास्थल कूपमंडूक बनकर भारत में ढूढ़ते हैं। इनमें से कुछ घटनाऍं भारत के बाहर की हो सकती हैं। कम-से-कम अनेक देशों में प्रचलित उसी प्रकार की जनश्रुतियों से यह कहा जा सकता है कि वे सार्वभौमिक हैं। तो फिर दुनिया में इनके रंगमंच की खोज करनी होगी। पर इनके प्रमुख स्त्रोत होंगे भारत के पुराण ग्रंथ।
कालांतर में जनश्रुतियों में परिवर्तन हुए। अनेक विकृतियाँ तथा क्षेपक इनमें जुड़ गए। भिन्न-भिन्न मत-मतांतरों के विभेदों ने इन्हें तोड़-मरोड़ डाला। अपने मत के प्रतिपादन में कल्पना तथा अलौकिकता का सहारा और देवी-देवताओं की दुहाई इन कथाओं में आ गई। इसलिए इन सब प्रकार के आवरणों को हटाकर और रूपक को भेदकर पुराणों का अर्थ समझने की आवश्यकता है। उनसे ऐतिहासिक घटना-तत्व प्राप्त कर उसका समर्थन पुरातत्व के अन्य तरीकों से खोजा जा सकता है। क्या जनश्रुतियों के सत्यांश को पहचानकर, कभी मानव सभ्यता, जो प्राचीन काल में भारतीय अथवा हिंदु सभ्यता से प्रभावित थी, का वास्तविक इतिहास हम खड़ा कर सकेंगे?
कालचक्र: सभ्यता की कहानी
०१- समय का पैमाना०२- समय का पैमाने पर मानव जीवन का उदय
०३- सभ्यता का दोहरा कार्य
०४- पाषाण युग
०५- उत्तर- पाषाण युग
०६- जल प्लावन
०७- धातु युग
०८- राजा उदयन की राजधानी - कौशांबी
०९- पुराने कबीले मातृप्रधान थे
१०- जादू, टोने टुटके से - विज्ञान के पथ पर
११- रिलिजन के लिये हिन्दी में उपयुक्त शब्द - संप्रदाय या पंथ
१२- जनश्रुतियों या दंतकथाओं में भी सत्यता होती है
१३- देशों की जनश्रुतियों में साम्य है
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