मेरे साथ एक साम्यवादी मित्र कौशांबी गए थे। दरबार के विशाल कक्ष का ऐश्वर्य देखकर वे चकराए। पूछा,
'कहॉं है इतने बड़े सम्राट की साम्राज्ञी का महल?’तो प्राध्यापक ने एक चार मीटर लंबे, ढाई मीटर चौड़े कक्ष को, जहॉं से सीढियॉं यमुना में जाती थीं, दिखाकर कहा,
'केवल यह कक्ष सम्राज्ञी का रनिवास दिखता है।‘आश्चर्यचकित होकर मेरे मित्र ने पूछा,
'बस, इतना छोटा कमरा?’पाश्चात्य इतिहास की कल्पना थी किसी आलीशान महल की।
'एक मनुष्य के लिए कितना स्थान चाहिए?’प्राध्यापक बोल पड़े। कभी-कभी भारत के प्राचीन जीवन के बारे में विकृत, पूर्वाग्रहजनित धारणाऍं कैसी भ्रमित कल्पनाओं को जन्म देती है।
व्यापार अदला-बदली या वस्तु-विनिमय (barter) द्वारा प्रारंभ होना कहा जाता है। पर शीघ्र ही इसके लिए मुद्रा की आवश्यकता हुई। वस्तु के लिए स्वर्ण में मूल्य देना भारत में ही प्रारंभ होकर सारी सभ्यताओं में फैला। व्यापार का प्रमुख केन्द्र भारत था। इसके कारण यहॉं के विचार एवं रीति-रिवाज दूसरी सभ्यताओं में पहुँचे। स्वर्ण विनिमय ने मुद्रा (currency) में स्वर्ण मानक (gold standard) को जन्म दिया, जो संसार पर बीसवीं सदी तक छाया रहा। स्वर्ण का भारतीय जीवन में बहुत बड़ा महत्व है। संसार की सबसे पुरानी ( और गहरी) सोने की खान, कोलार, भारत में है। यहॉं सदा से स्वर्ण आभूषण पहनने का चलन था। प्राचीन काल में यहॉं के स्वर्ण ने भारत को स्वर्ण देश (‘सोने की चिड़िया’) नाम दिलाया।
लौकिक उन्नति के साथ न्यायपूर्ण सामाजिक रचना और उसके लिए उपयुक्त विचारों की आवश्यकता पड़ती है। विचारों ने मानव जीवन को सार्थक और उदात्त बनाया, ‘सत्यं शिवं सुंदरम्’ की अनुभूति दी। दूसरी ओर कभी-कभी क्रूरतम, नीच, राक्षसी और भयंकर विकृति तथा दारूण दु:ख को जन्म दिया। यह चिंतन समाज के उष:काल का होने पर भी इसके पीछे मानव की पिछली सभी पीढ़ियों के संचित अनुभव हैं और है उसके मन की सानुबंध निर्मिति। इस भूमिका में ही उस काल के चिंतन का अनुमान कर सकते हैं।
कालचक्र: सभ्यता की कहानी
०१- समय का पैमाना०२- समय का पैमाने पर मानव जीवन का उदय
०३- सभ्यता का दोहरा कार्य
०४- पाषाण युग
०५- उत्तर- पाषाण युग
०६- जल प्लावन
०७- धातु युग
०८- राजा उदयन की राजधानी - कौशांबी
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