इस ऐतिहासिक भ्रम ने कैसा विष उत्पन्न किया, इसकी छाया तमिलनाडु के हिंदी-विरोधी आंदोलनों में देखी जा सकती है। एक बार विचित्र अनुभव हुआ। तब यह आंदोलन प्रारंभ हुआ था। इटारसी से नागपुर जाते समय मैं रेल के छोटे डिब्बे में कोने में बैठा पुस्तक पढ़ रहा था। इतने में देखा कि एक श्याम तमिल सज्जन अंग्रेजी में उत्तरी भारत के विरूद्ध, उत्तर के गोरे लोगों के विरूद्ध और हिंदी के विरूद्ध बक रहे थे और डिब्बे में सबसे हुँकारी भरा रहे थे। सब उनसे त्रस्त थे, पर उनका ‘उत्तरी भारत’, ‘गोरे आर्य’ तथा ‘हिंदी’ के ‘साम्राज्यवाद’ के विरूद्ध प्रस्ताव चालू था। अंत में मेरी ओर घूमकर उन्होंने कहा,
‘क्यों साहब, आप कुछ नहीं बोल रहे ?’मैंने कहा,
‘मैं तो उलटा ही जानता हूँ। यदि दक्षिण के साम्राज्यवाद से छुटकारा मिल जाए तो हम लोगों का बड़ा भला हो।’उनकी त्योरियॉं चढ़ गई,
‘यह कैसे ?’मैंने कहा,
‘एक शंकराचार्य दक्षिण में केरल के कालडी ग्राम में पैदा हुआ। कहते हैं, उसने उत्तर भारत आकर दिग्विजय की। तब से कैसे नियम बना गए—गंगा का जल ले जाकर रामेश्वरम में चढ़ाओ। भारत के चार कोनों में स्थापित चारों धाम की यात्रा करो। हम उत्तरी भारत में बेवकूफ बने उसकी कही करते रहते हैं। -- और तो और, इतिहासज्ञ कहते हैं कि आर्य जब भारत में आए तो वे गोरे थे, पर द्रविड़ों ने अपने देवी-देवता उन्हें दे दिए। हमारे राम भी सॉंवले, कृष्ण का नाम ही कृष्ण है। ‘काली’ को देखते भय लगता है। और देवों के देवता ‘महादेव’ भी सॉंवले। अब हम उत्तर में इन सॉंवले देवी- देवताओं की पूजा करते फिरते हैं।– इससे भी बढ़कर सीता जगन्माता हैं, इसलिए उनके सौंदर्य का वर्णन कहीं नहीं है। पर जिसे महाभारत में अनिंद्य सुंदरी कहकर पुकारा, वह द्रौपदी भी काली। इसी से कृष्ण की बहन कहलाई। जिसके कारण चित्तौड़गढ़ में जौहर हुआ, भारत के संघर्ष काल की अद्वितीय सुंदरी पदिमनी, वह भी सॉंवली। सॉंवलों से तथा उनके देवी-देवताओं से पीछा छूटे तो हम उबर जाऍं।’क्रोध के मारे उन सज्जन की आवा न निकली। डिब्बे के लोग हँस पड़े और चैन सॉंस ली। जब दृष्टि भ्रमवश संकुचित हो जाती है तो कैसा विकार उत्पन्न होता है।
दूसरा भाषा का प्रमाण देते हैं। मैक्समूलर का प्रसिद्ध उदाहरण है-कैसे संस्कृत का ‘पितृ’ शब्द (हिंदी ‘पिता’), देहाती अपभ्रंश में ‘पितर’ बनता है, वही फारसी में ‘पिदर’, लैटिन तथा जर्मन भाषा में ‘पेटर’ (pater) और अंग्रेजी में ‘फादर’ (father) बन जाता है। इस प्रकार के सहस्त्रों उदाहरण मिलते हैं। हिंद-यूरोपीय (Indo-European) भाषाओं के अद्भुत साम्य के कारण कुछ इतिहासज्ञ कहने लगे-‘भारत के आर्य और यूरोपीय किसी एक ही प्रदेश में जनमें हैं। एक शाखा निकली, यह यूरोप में बस गई। दूसरी भारत आई। बीच में कश्यप सागर के आसपास का क्षेत्र है। इसलिए ये दोनों शाखाऍं वहीं से निकती होंगी। वही आर्यों का आदि देश है।‘ भाषा के साम्य को इस बात का प्रमाण मान सकते हैं कि आर्यों का आदि देश एक था, जिससे शब्द –ध्वनियों की बानगी उनके पास बनी रही।
आज जो ‘जिप्सी’ (Gypsy) मध्य यूरोप में घुमक्कड़ जिंदगी व्यतीत करते हैं उनकी भाषा ‘रामणी’ (Romany) में बहुत से भारत के देहाती शब्द हैं। इन जिप्सियों के परंपरागत विश्वास, उनकी दंतकथाऍं और रीति-रिवाज बताते हैं कि वे संवत͉ पूर्व पंजाब से मिस्त्र (Egypt) ( इसी से जिप्सी कहलाए) तथा अनेक मंजिलें पार कर मध्य यूरोप पहुँचे।
कालचक्र: सभ्यता की कहानी
१ मानव का आदि देश२ मानव का आदि देश
३ मानव का आदि देश
४ मानव का आदि देश
५ मानव का आदि देश
" ऐतिहासिक भ्रम ने कैसा विष उत्पन्न किया, इसकी छाया तमिलनाडु के हिंदी-विरोधी आंदोलनों में देखी जा सकती है।"
जवाब देंहटाएंएकदम सही निरीक्षण है -- शास्त्री जे सी फिलिप
मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार!!