रविवार, अगस्त 01, 2010

अमेरिका की प्राचीन सभ्याताएं और भारत

आस्तिक सभ्यता का चिन्ह
स्पेनी आक्रमणकारियों के वृत्त मध्य एवं दक्षिण की आस्तिक (Aztec), 'मय' (Maya) और इन्का (Inca) नामक प्राचीन सभ्यताओं के भारतीय आदर्शों के अनुरूप, सदाचारी जीवन का गुण कीर्तन करते हैं। बर्नार्डिनो (Bernardino de Sahagún) ने उस समय लिखित पुस्तक 'नव स्पेन की वस्तुओं का सामान्य इतिहास' (General History of Things in New Spain) में इन प्राचीन सभ्यताओं के लोगों में नैतिकता के उच्च मानदंड, उनके पुजारियों के सद्गुणों, राजाओं के उच्चादर्शों और विचारकों के ज्ञान-भंडार की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। ये वृत्त लोगों के सहज सच बोलने के स्वभाव के साक्षी हैं और अटूट वैवाहिक निष्ठा के भी, जैसी स्पेनवासियों ने कभी जानी न थी। इन प्राचीन सभ्यताओं में भारत की भाँति विवाह एक संस्कार था, वह कोई संविदा या करार (contract) न था। अंतिम इन्का राजा का शव जब स्पेनवासी गिरजाघर ले गए तो उनके आश्चर्य की सीमा न रही, जब रानियों ने शव के साथ चिता पर बैठने का हठ किया। इन प्राचीन सभ्यताओं  में शवदाह प्रचलित था।

इन सभ्यताओं के सामाजिक, राजनीतिक जीवन के ताने-बाने में धार्मिकता बसी थी। हिंदु जीवन की तरह व्यवसाय के अनुसार समाज में वर्ग थे। व्यवसाय और शिल्प की विशेषज्ञता के साथ उनका अलग संघ (guild) था। ऎसी पंचायत को भारत में 'श्रेणी' कहते हैं। वह आपसी झगड़ों का निपटारा भी करती हैं। ये वर्ग स्वायत्तशासी थे। कहीं-कहीं बड़े नगरों में उनका टोला भी अलग था, जिसके वे अधिकारी थे। व्यवसाय एवं शिल्प के अधिष्ठाता देवता भी थे और उनके अनुरूप उत्सव। पेशेवर कारीगर और व्यापारी का समाज में बड़ा आदर था। उनके माल की मंडी थी और दूर जाकर हाट भी लगाते थे। स्वयं के उनके न्यायाधिकरण थे। यह मंडी अथवा हाट लगाना भारतीय प्रथा थी, जो भारत से संसार में फैली।

ये खेतिहर सभ्यताएँ थीं। आंग्ल विश्वकोश के अनुसार, 

'जब यूरोप नव-प्रस्तर युग की बर्बरता में जीवन बिता रहा था तब यहाँ एक कांस्य युग से आगे उन्नत सभ्यता उभर चुकी थी।'
उनकों दलदलों का उद्घार कर भूमि बनाना और नहरों की योजना आती थी। एक कुल के लोग कुटुंब के रूप में साथ-साथ रहते थे। ऎसे बीसियों (अथवा सौ भी) कुटुंब मिलकर एक इकाई 'कलपुल्ली' (Calculi)  बनाते थे। कलपुल्ली की भूमि पंचायती थी, जो सभी घटक कुटुंबों में बाँट दी जाती थी। यह कलपुल्ली प्रशासन की इकाई थी। इसका शासन सभी कुटुंब के मुखियों की परिषद् के हाथ में था, जो अपना प्रमुख या राजा चुनती थी। यही प्राचीन काल से चली आई स्वायत्तता की भारतीय परिपाटी है। यह कर-निर्धारण की भी इकाई थी तथा श्रमदान एवं सैनिक आवश्यकताओं के लिए भी। बच्चों की शिक्षा का प्रबंध भी यही करती थी। पर विशेष शिक्षा के लिए बच्चों को आश्रम में जाना पड़ता था, जहाँ वे कड़े अनुशासन में रहना सीखते थे। एक सांस्कृतिक प्रवाह के अंदर पनपता उसका सामाजिक-राजनीतिक ढाँचा भारत के स्वायत्त शासित जीवन की याद दिलाता है।

वहाँ के निवासियों में प्रचलित नाम 'मेक्सिका' या 'मत्सलियापान' (शाब्दिक अर्थ रहस्यवादी अथवा आध्यात्मिक 'चंद्र झील') पर मध्य अमेरिका (Meso America)को मेक्सिको कहते हैं। स्पेनिश आक्रमण के समय यहाँ 'मय' लोग निवास करते थे। ये प्राचीन 'टोल्टेक' (Toltec) (शाब्दिक अर्थ 'दक्ष कारीगर') और उसके बाद की विस्तृत 'आस्तिक'  (Aztec) सभ्यता के उत्तराधिकारी थे। सारस्वत सभ्यता के समान ही इन सभ्यताओं के योजनापूर्वक ज्यामितीय नमूने पर बने नगरों के खंडहर आज भी मिलते हैं।

मेक्सिको के बीच पठार की विशाल झीलों के द्वीप एवं तट पर संभवतया प्राचीन सभ्यता का सबसे बड़ा नगर विद्यमान था। इन्हीं झीलों में द्वीप अथवा खेत 'तैरते हुए खेत' कहे जाते हैं। आसपास की (कुछ हिमाच्छादित) चोटियों से नाली, प्रपात और सुरंग से पीने का स्वच्छ जल यहाँ आता था। सीधी रेखा में निर्मित एक ही प्रकार के भवन, लंबवत् सड़कें, बीच में स्तूप के शिखर पर मंदिर। ऎसा मेक्सिको पठार पर अवस्थित एक प्राचीन नगर रहा है 'तियोतिहुआकान' (Teotihuacan), जिसका शाब्दिक अर्थ है 'जहाँ मनुष्य देवता बन जाते हैं' अथवा 'जहाँ ईश्वर की पूजा होती है'। तियो (Teo or Deo) (संस्कृत: देव) का अर्थ है 'ईश्वर'। ऎसा ही दक्षिण अमेरिका में टिटकाका (Titicaca) झील के बोलीविया (Bolivia) तट पर प्राचीन 'तायहुआनको' नामक 'इन्का' का पवित्र नगर कहा जाता था, जो पानी में डूब गया। नगरों में मिलते हैं एक प्रकार के पंक्तिबद्घ आवासीय गृह, जिनमें आँगन का द्वार मुख्य सड़क पर और आँगन के बाकी तीन ओर बनी हैं कोठरियाँ। ऎसे ही पास में हैं कारीगरों के गृह एवं कर्मशाला। मानो सारस्वत सभ्यता के नगरों की और घरों की प्रतिकृति हों। ऎसे ही हैं प्रत्येक नगर में देवता के मंदिर। उसमें कमल-नाल एवं स्वस्तिक चिन्ह के बेलबूटे। ये दोनों भारतीय प्रतीक हैं। नगरों को जोड़ने वाली बजरी कुटी पक्की सड़कें बनी हैं, जिनके दोनों ओर हाथ भर ऊँची पत्थर की दीवारें आज ढाई हजार वर्ष बाद भी वैसी ही हैं। मध्य अमेरिका का प्राचीन 'तेनोसितिलम' नामक नगर अंदर होने पर भी चौड़ी नहर के जलमार्ग द्वारा सागर से जुड़ा हुआ था।

तियोतिहुआकान शहर का विहंगम दृश्य
मध्य एवं दक्षिण अमेरिका की इन सभ्यताओं का अद्भुत स्थापत्य-शिल्प था। एक दूसरे के ऊपर भिन्न-भिन्न आकार के गढ़े पत्थर बिना चूने एवं गारे के कितनी शताब्दियों से भूकंप-प्रभावित प्रदेशों में टिके रहे और धक्के सहन करते रहे ! वेधशाला के रूप में प्रयोग होनेवाले चौकोर ऊँचे बुर्ज और मंदिर थे, जहाँ से तारों, चंद्र, सूर्य एवं ग्रहों का, उनकी गति का अध्ययन हो सके। फूस छाए कच्चे मकानों में पलता उनका ज्ञान-विज्ञान, कृषि के तरीके और उनके पंचांग, सभी स्पेनवासियों को चकित करने वाले थे। आंग्ल विश्वकोश का यह कहना कि 'जब यूरोप नव-प्रस्तर युग की बर्बरता व क्रूरता से उबर न पाया था तब यहाँ की सभ्यताएँ कांस्य युग से आगे बढ़ चुकी थीं', केवल ऊपरी लक्षणों का अनुमान है। इनको अंकगणित में 'शून्य' का और दशमलव पद्घति का पता था। इसी से वे बहुत बड़े अंकों की बात कर सके। वे 'समय' को एक देवता समझते थे, जैसे भारत में 'काल' की महिमा कहते हैं। भारत की तरह 'इन्का' विश्वास है कि अनेक बार प्रलय हुयी और पुन: सृष्टि प्रारंभ हुयी, और वैसी ही है चतुर्युगी की कल्पना। उनका सतयुग हिंदु के सतयुग के बराबर उतने ही वर्ष का है। प्राचीन भारत की तरह वे जानते थे कि सौर वर्ष में ३६५ दिन हैं। मध्य अमेरिका में पांडवों के वर्ष की तरह २० दिन के १८ माह और ५ अतिरिक्त पतित दिवस थे, जब तप से अपने को उबारना होता था। इन्का के वर्ष में ३० दिन के १२ माह होते थे और पड़ने वाले अंतर को भारतीय संवत् की भाँति अधिक मास या मलमास से पूरा करते थे। वे चंद्र और शुक्र ग्रह की गति जानते थे और ग्रहण की भविष्यवाणी कर सकते थे। यदि उन्होंने यह भारत से पाया तो क्या आश्चर्य?

इस चिट्ठी के चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से

प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत
०८ - अक्कादी
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ -  आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ -  योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ -  मंगोलिया
३३ - चीन
३४ - चीन को भारत की देन 
३५ - अगस्त्य मुनि और हिन्दु महासागर
३६ -  ब्रम्ह देश 
३७ - दक्षिण-पूर्व एशिया
३८ - लघु भारत 
३९ - अंग्कोर थोम व जन-जीवन
४० - श्याम और लव देश
४१ - मलय देश और पूर्वी हिन्दु द्वीप समूह
४२ - चीन का आक्रमण और निराकरण
४३ - इस्लाम व ईसाई आक्रमण
४४ - पताल देश व मय देश
४५ - अमेरिका की प्राचीन सभ्याताएं और भारत

2 टिप्‍पणियां:

  1. यह सब पढ़कर इतना आश्चर्यजनक लगता है कि विश्वास ही नहीं होता। इससे यही बात दृढ़ होती है कि भरतीय सभ्यता के विकास की कहानी की बहुत सी कड़ियाँ गायब हैं या गायब कर दी गयीं हैं।

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  2. बेनामी10/31/2010 1:03 pm

    may danav ne hi rawan ki lanka ka nirman kiya tha jo adbhud tha.
    shayad kisi samay ye pradesh hamare desh ke kareeb hi tha jo khisak kar dur chala gaya

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