रविवार, अगस्त 08, 2010

दक्षिण अमेरिका व इन्का

दक्षिण अमेरिका की इन्का सभ्यता, जिसका पालना एंडीज पर्वत और पश्चिम सागर-तट रहा, और इनके मंदिर। कहते हैं, कहीं-कहीं अंदर से मंदिर की दीवारेंऔर गुंबज स्वर्ण-मंडित थे। एक ओर सूर्य चक्र, दूसरी ओर चंद्र का रजत वृत्त और बीच में तारों को चिन्हित करते जड़े रत्न। आज का तारागृह (Planetarium) मानो बीज रूप में है। वे प्रमंथन द्वारा अग्नि को अरणी से प्रज्वलित करते थे, जैसा वेदों में वर्णित है। शरद हेबालकर ने अपने पुस्तक 'भारतीय संस्कृति का विश्व-संचार' में इनकी सामाजिक रीतियों के बारे में लिखा है, 
'इन्का संस्कृति में रूढ़ शिक्षा-प्रणाली प्राचीन भारतीय गुरूकुल प्रणाली जैसी थी। छात्र गुरू के यहाँ रहकर अध्ययन करता था। अध्ययन पूर्ण होने तक उसे गूरू की आज्ञा में रहना होता था। इन्का अग्नि की भी पूजा करते थे। अग्नि के साक्ष्य में उपनयन संस्कार होता था। इन्काओं की वर्तमान रूढ़ियाँ देखने पर जन्म से मृत्यु तक की सभी प्रथाओं और संस्कारों में भारतीय परंपरा से विलक्षण समानता पायी जाती है।--ऋग्वेद की अनेक प्रार्थनाओं से मिलती-जुलती प्रार्थनाएँ उनके यहाँ रूढ़ हैं इन्का भाषा ('किजुआ' या 'किशुआ') भी अति प्राचीन है। उसकी जननी है संस्कृत।'
मध्य एवं दक्षिण अमेरिका की इन प्राचीन सभ्यताओं की लिपि (पंचांग और गणित अंश को छोड़कर) पढ़ी नहीं जा सकी। इसका एक कारण आक्रमणकारी बनकर आए स्पेनवासियों द्वारा इन्हें बलपूर्वक ईसाई बनाने की प्रक्रिया में किए गए विध्वंस हैं। मय लोगों का ज्ञान-विज्ञान पत्थर की पाटियों, लकड़ी और मिट्टी के बरतनों तथा रेशे से बनी पुस्तकों में निहित था। स्पेन के बिशप ने सभी आलेख ईसाई पंथ की रक्षा के नाम पर जलवा दिए। उनकी बहुमूल्य पुस्तकें अग्नि की भेंट चढ़ीं। आलेख नष्ट किए गए। आज भी, शोधकर्ताओं का भारतीय जीवन से अनजान होने और पूर्वाग्रह एवं धर्मांधता के कारण, खोज पूर्ण नहीं हुयी। पर आज शिल्डमैन सरीखे जर्मन भाषाविद् कहते हैं कि मध्य अमेरिका और पेरू की गुफाओं के शिलालेख संस्कृत से ज्यों-के-त्यों मिलते हैं और उनकी लिपि सिंधु घाटी में प्रचलित लिपि की भाँति संस्कृत पर आधारित है।


'इन्का' राज्य-व्यवस्था देखकर आधुनिक कल्याण राज्य (Welfare State) का स्मरण हो आता है। अपनी राजधानी से पश्चिमी सागर-तट के नीचे (आधुनिक क्यिटो Quito से लेकर सैंटियागो Santiago तक) ५,००० किलोमीटर से भी लंबा, पक्का, एंडीज पर्वत की घाटियों को लाँघता, विषुवतीय उफनती नदियों को पत्थर के पुलों द्वारा पार करता, कहीं पर्वत पर चढ़ता, कहीं सीढ़ियों तथा कहीं गुफाओं और कंदराओं से गुजरता शासकीय मार्ग था, जिसपर हरकारे दौड़ते थे। उस पर लगभग प्रति १५ किलोमीटर पर विश्रामगृह और लगभग ३० किलोमीटर पर भोजनालय थे। आधुनिक राज्यों की तरह अपनी निश्चित जनसंख्या उन्हें पता थी। उसकी गणना होती थी और जन्म-मरण का लेखा रखा जाता था। हर कुटुंब अन्न-वस्त्र में आत्मनिर्भर था। वह खेती करता था और कताई-बुनाई भी। पर छोटी बस्तियाँ भी स्वशासित होने के साथ स्वावलंबी थीं। उनके अय्यर राजाओं को तो 'सूर्य देवता' ने ही भेजा था। उन अय्यर राजाओं के चित्र उपलब्ध हैं। सिर पर पगड़ी और उसका अलंकरण है हाथ में राजदंड, जिसके ऊपरी छोर पर कतल का सोने का फूल है। यही कमल उनके मंदिरों तथा प्रासाद से लगे तालाबों और पोखरों की शोभा बढ़ाता है, जो भारत का राष्ट्रीय पुष्प है।

क्वेत्सलकोट्ल (पंखधारी सर्प) चित्र विकिपीडिया से

भारत के देहात की तरह देव-मंदिर के चारों ओर घूमता जीवन। ये मंदिर प्राथमिक विद्यालय भी थे। त्रिमूर्ति-अर्थात सृष्टि, पालन और संहार के देवताओं की उन्हें कल्पना थी। सभी प्राचीन सभ्यताओं के समान सूर्य-पूजा एवं नाग-पूजा यहाँ प्रचलित थी। 'आस्तिक' सभ्यता के प्रमुख देवता क्वेत्सलकोट्ल (Quetzalcoatl) (शाब्दिक अर्थ पंखधारी सर्प: dragon) हैं। क्वेत्सल (Quetzal) मध्य अमेरिका का एक सुंदर पक्षी है। उसी के पंख धारण किए हुए है यह नाग। वैसा ही जैसा भारत के कुछ भागों में, अथवा चीन और जापान पूजित है। सूर्य के मंदिर हैं, जिनमें पंचांग भी अंकित है। पेरू के इन्का सूर्य मंदिर तो कोणार्क की छोटी प्रतिकृति कहे जाते हैं। स्पेन के आक्रमण के समय मेक्सिको नगर में गोपुरम् शैली का एक विशाल शिव मंदिर था। उनको युद्घ (संहार) का देवता कहते थे। मूर्ति के चारों ओर स्वर्ण के सर्प लिपटे थे। स्पेन के लोभी लुटेरों ने स्वर्ण के लालच में उसका विध्वंस कर डाला। मदुरा के मंदिर की झलक भी वहाँ देखने को मिल सकती है। मंदिर में पत्ररू-पुष्प अर्पित कर, धूप जलाकर सुगंध से हिंदु की भाँति देवता की पूजा होती थी। स्पेन के वृत्त कहते हैं कि पुजारी अविवाहित ब्रम्हचारी थे। उनका पवित्ररू और शुचितापूर्ण कठोर जीवन था। वे त्याग-तपस्या की मूर्ति कहे जाते थे। किन्हीं मंदिरों में देवदासी भी थीं। स्वर्ण, रजत और रत्नों से जटित ये मंदिर सदा स्वच्छ रहते थे।

भिक्षु चमनलाल ने अपने विलक्षण पुस्तक 'हिंदु अमेरिका: अलगाववादियों को एक चुनौती' (Hindu America: A challenge  to Isolationists) में अध्यवसायपूर्वक उन तथ्यों को उजागर किया है जो निर्विवाद रूप से अमेरिका की विक्रम संवत् पूर्व तेरहवीं शताब्दी से चली आई प्राचनी सभ्यताओं को भारत के सांस्कृतिक साम्राज्य का पुरातन अंग बताते हैं और हिंदु के अदम्य साहस की कहानी कहते हैं। अमेरिका की इन प्राचीन सभ्यताओं का रहन-सहन, उनकी महिलाओं का साड़ी का पल्ला डालने का ढंग, उनके विचार, परंपराएँ, रीतियाँ, आचार-व्यवहार, उनके देवता एवं आस्थाएँ, उनका विज्ञान तथा पंचांग, उनका 'पचीसी' का खेल- सभी पर भारतीय संस्कृति की छाप देखी जा सकती है। उस पर मुहर लगाता 'आस्तिकों' का 'राम-सिया' त्योहार है। उसी प्रकार जैसे दक्षिण-पूर्व एशिया को कभी 'लघु भारत' कहा जाता था, अमेरिका के आदि निवासियों को अज्ञान में दिया गया 'इंडियन' (Indian: भारतीय) नाम उनकी प्राचीन सभ्यता को देखकर सार्थक हो उठता है।


प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत
०८ - अक्कादी
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ -  आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ -  योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ -  मंगोलिया
३३ - चीन
३४ - चीन को भारत की देन 
३५ - अगस्त्य मुनि और हिन्दु महासागर
३६ -  ब्रम्ह देश 
३७ - दक्षिण-पूर्व एशिया
३८ - लघु भारत 
३९ - अंग्कोर थोम व जन-जीवन
४० - श्याम और लव देश
४१ - मलय देश और पूर्वी हिन्दु द्वीप समूह
४२ - चीन का आक्रमण और निराकरण
४३ - इस्लाम व ईसाई आक्रमण
४४ - पताल देश व मय देश
४५ - अमेरिका की प्राचीन सभ्याताएं और भारत
४६ - दक्षिण अमेरिका व इन्का

रविवार, अगस्त 01, 2010

अमेरिका की प्राचीन सभ्याताएं और भारत

आस्तिक सभ्यता का चिन्ह
स्पेनी आक्रमणकारियों के वृत्त मध्य एवं दक्षिण की आस्तिक (Aztec), 'मय' (Maya) और इन्का (Inca) नामक प्राचीन सभ्यताओं के भारतीय आदर्शों के अनुरूप, सदाचारी जीवन का गुण कीर्तन करते हैं। बर्नार्डिनो (Bernardino de Sahagún) ने उस समय लिखित पुस्तक 'नव स्पेन की वस्तुओं का सामान्य इतिहास' (General History of Things in New Spain) में इन प्राचीन सभ्यताओं के लोगों में नैतिकता के उच्च मानदंड, उनके पुजारियों के सद्गुणों, राजाओं के उच्चादर्शों और विचारकों के ज्ञान-भंडार की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। ये वृत्त लोगों के सहज सच बोलने के स्वभाव के साक्षी हैं और अटूट वैवाहिक निष्ठा के भी, जैसी स्पेनवासियों ने कभी जानी न थी। इन प्राचीन सभ्यताओं में भारत की भाँति विवाह एक संस्कार था, वह कोई संविदा या करार (contract) न था। अंतिम इन्का राजा का शव जब स्पेनवासी गिरजाघर ले गए तो उनके आश्चर्य की सीमा न रही, जब रानियों ने शव के साथ चिता पर बैठने का हठ किया। इन प्राचीन सभ्यताओं  में शवदाह प्रचलित था।

इन सभ्यताओं के सामाजिक, राजनीतिक जीवन के ताने-बाने में धार्मिकता बसी थी। हिंदु जीवन की तरह व्यवसाय के अनुसार समाज में वर्ग थे। व्यवसाय और शिल्प की विशेषज्ञता के साथ उनका अलग संघ (guild) था। ऎसी पंचायत को भारत में 'श्रेणी' कहते हैं। वह आपसी झगड़ों का निपटारा भी करती हैं। ये वर्ग स्वायत्तशासी थे। कहीं-कहीं बड़े नगरों में उनका टोला भी अलग था, जिसके वे अधिकारी थे। व्यवसाय एवं शिल्प के अधिष्ठाता देवता भी थे और उनके अनुरूप उत्सव। पेशेवर कारीगर और व्यापारी का समाज में बड़ा आदर था। उनके माल की मंडी थी और दूर जाकर हाट भी लगाते थे। स्वयं के उनके न्यायाधिकरण थे। यह मंडी अथवा हाट लगाना भारतीय प्रथा थी, जो भारत से संसार में फैली।

ये खेतिहर सभ्यताएँ थीं। आंग्ल विश्वकोश के अनुसार, 

'जब यूरोप नव-प्रस्तर युग की बर्बरता में जीवन बिता रहा था तब यहाँ एक कांस्य युग से आगे उन्नत सभ्यता उभर चुकी थी।'
उनकों दलदलों का उद्घार कर भूमि बनाना और नहरों की योजना आती थी। एक कुल के लोग कुटुंब के रूप में साथ-साथ रहते थे। ऎसे बीसियों (अथवा सौ भी) कुटुंब मिलकर एक इकाई 'कलपुल्ली' (Calculi)  बनाते थे। कलपुल्ली की भूमि पंचायती थी, जो सभी घटक कुटुंबों में बाँट दी जाती थी। यह कलपुल्ली प्रशासन की इकाई थी। इसका शासन सभी कुटुंब के मुखियों की परिषद् के हाथ में था, जो अपना प्रमुख या राजा चुनती थी। यही प्राचीन काल से चली आई स्वायत्तता की भारतीय परिपाटी है। यह कर-निर्धारण की भी इकाई थी तथा श्रमदान एवं सैनिक आवश्यकताओं के लिए भी। बच्चों की शिक्षा का प्रबंध भी यही करती थी। पर विशेष शिक्षा के लिए बच्चों को आश्रम में जाना पड़ता था, जहाँ वे कड़े अनुशासन में रहना सीखते थे। एक सांस्कृतिक प्रवाह के अंदर पनपता उसका सामाजिक-राजनीतिक ढाँचा भारत के स्वायत्त शासित जीवन की याद दिलाता है।

वहाँ के निवासियों में प्रचलित नाम 'मेक्सिका' या 'मत्सलियापान' (शाब्दिक अर्थ रहस्यवादी अथवा आध्यात्मिक 'चंद्र झील') पर मध्य अमेरिका (Meso America)को मेक्सिको कहते हैं। स्पेनिश आक्रमण के समय यहाँ 'मय' लोग निवास करते थे। ये प्राचीन 'टोल्टेक' (Toltec) (शाब्दिक अर्थ 'दक्ष कारीगर') और उसके बाद की विस्तृत 'आस्तिक'  (Aztec) सभ्यता के उत्तराधिकारी थे। सारस्वत सभ्यता के समान ही इन सभ्यताओं के योजनापूर्वक ज्यामितीय नमूने पर बने नगरों के खंडहर आज भी मिलते हैं।

मेक्सिको के बीच पठार की विशाल झीलों के द्वीप एवं तट पर संभवतया प्राचीन सभ्यता का सबसे बड़ा नगर विद्यमान था। इन्हीं झीलों में द्वीप अथवा खेत 'तैरते हुए खेत' कहे जाते हैं। आसपास की (कुछ हिमाच्छादित) चोटियों से नाली, प्रपात और सुरंग से पीने का स्वच्छ जल यहाँ आता था। सीधी रेखा में निर्मित एक ही प्रकार के भवन, लंबवत् सड़कें, बीच में स्तूप के शिखर पर मंदिर। ऎसा मेक्सिको पठार पर अवस्थित एक प्राचीन नगर रहा है 'तियोतिहुआकान' (Teotihuacan), जिसका शाब्दिक अर्थ है 'जहाँ मनुष्य देवता बन जाते हैं' अथवा 'जहाँ ईश्वर की पूजा होती है'। तियो (Teo or Deo) (संस्कृत: देव) का अर्थ है 'ईश्वर'। ऎसा ही दक्षिण अमेरिका में टिटकाका (Titicaca) झील के बोलीविया (Bolivia) तट पर प्राचीन 'तायहुआनको' नामक 'इन्का' का पवित्र नगर कहा जाता था, जो पानी में डूब गया। नगरों में मिलते हैं एक प्रकार के पंक्तिबद्घ आवासीय गृह, जिनमें आँगन का द्वार मुख्य सड़क पर और आँगन के बाकी तीन ओर बनी हैं कोठरियाँ। ऎसे ही पास में हैं कारीगरों के गृह एवं कर्मशाला। मानो सारस्वत सभ्यता के नगरों की और घरों की प्रतिकृति हों। ऎसे ही हैं प्रत्येक नगर में देवता के मंदिर। उसमें कमल-नाल एवं स्वस्तिक चिन्ह के बेलबूटे। ये दोनों भारतीय प्रतीक हैं। नगरों को जोड़ने वाली बजरी कुटी पक्की सड़कें बनी हैं, जिनके दोनों ओर हाथ भर ऊँची पत्थर की दीवारें आज ढाई हजार वर्ष बाद भी वैसी ही हैं। मध्य अमेरिका का प्राचीन 'तेनोसितिलम' नामक नगर अंदर होने पर भी चौड़ी नहर के जलमार्ग द्वारा सागर से जुड़ा हुआ था।

तियोतिहुआकान शहर का विहंगम दृश्य
मध्य एवं दक्षिण अमेरिका की इन सभ्यताओं का अद्भुत स्थापत्य-शिल्प था। एक दूसरे के ऊपर भिन्न-भिन्न आकार के गढ़े पत्थर बिना चूने एवं गारे के कितनी शताब्दियों से भूकंप-प्रभावित प्रदेशों में टिके रहे और धक्के सहन करते रहे ! वेधशाला के रूप में प्रयोग होनेवाले चौकोर ऊँचे बुर्ज और मंदिर थे, जहाँ से तारों, चंद्र, सूर्य एवं ग्रहों का, उनकी गति का अध्ययन हो सके। फूस छाए कच्चे मकानों में पलता उनका ज्ञान-विज्ञान, कृषि के तरीके और उनके पंचांग, सभी स्पेनवासियों को चकित करने वाले थे। आंग्ल विश्वकोश का यह कहना कि 'जब यूरोप नव-प्रस्तर युग की बर्बरता व क्रूरता से उबर न पाया था तब यहाँ की सभ्यताएँ कांस्य युग से आगे बढ़ चुकी थीं', केवल ऊपरी लक्षणों का अनुमान है। इनको अंकगणित में 'शून्य' का और दशमलव पद्घति का पता था। इसी से वे बहुत बड़े अंकों की बात कर सके। वे 'समय' को एक देवता समझते थे, जैसे भारत में 'काल' की महिमा कहते हैं। भारत की तरह 'इन्का' विश्वास है कि अनेक बार प्रलय हुयी और पुन: सृष्टि प्रारंभ हुयी, और वैसी ही है चतुर्युगी की कल्पना। उनका सतयुग हिंदु के सतयुग के बराबर उतने ही वर्ष का है। प्राचीन भारत की तरह वे जानते थे कि सौर वर्ष में ३६५ दिन हैं। मध्य अमेरिका में पांडवों के वर्ष की तरह २० दिन के १८ माह और ५ अतिरिक्त पतित दिवस थे, जब तप से अपने को उबारना होता था। इन्का के वर्ष में ३० दिन के १२ माह होते थे और पड़ने वाले अंतर को भारतीय संवत् की भाँति अधिक मास या मलमास से पूरा करते थे। वे चंद्र और शुक्र ग्रह की गति जानते थे और ग्रहण की भविष्यवाणी कर सकते थे। यदि उन्होंने यह भारत से पाया तो क्या आश्चर्य?

इस चिट्ठी के चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से

प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत
०८ - अक्कादी
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ -  आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ -  योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ -  मंगोलिया
३३ - चीन
३४ - चीन को भारत की देन 
३५ - अगस्त्य मुनि और हिन्दु महासागर
३६ -  ब्रम्ह देश 
३७ - दक्षिण-पूर्व एशिया
३८ - लघु भारत 
३९ - अंग्कोर थोम व जन-जीवन
४० - श्याम और लव देश
४१ - मलय देश और पूर्वी हिन्दु द्वीप समूह
४२ - चीन का आक्रमण और निराकरण
४३ - इस्लाम व ईसाई आक्रमण
४४ - पताल देश व मय देश
४५ - अमेरिका की प्राचीन सभ्याताएं और भारत

रविवार, जुलाई 25, 2010

पताल देश व मय देश

सागर की उत्ताल तरंगों पर महाकाल से भी खेलते भारतीय संस्कृति के पुजारियों ने चंपा देश से और आगे कदम बढ़ाया। कालांतर में सबसे विशाल और तूफानी महासागर (यह व्यंग्योक्ति है कि धोखे से उसे आज प्रशांत महासागर ( Pacific Ocean) कहते हैं) को सहस्त्रों किलोमीटर चीरकर पाताल देश (मध्य एवं दक्षिणी अमेरिका) जा पहुँचे ये हिंदु संस्कृति के संदेशवाहक। यह यूरोप का मिथ्याभिमान है कि कोलंबस ने अमेरिका की खोज की, अथवा हालैंड के वाइकिंग (Vikings) ने उस भूमि पर प्रथम पग रखा। यह 'पाताल देश' भारत के लिए नयी दुनिया कभी न था।


जब पहले-पहल यूरोपीय मध्य एवं दक्षिण अमेरिका पहुँचे तो हाथी के सिर और सूँड़ की मूर्ति देखकर चकित हो गए।  कारण, हाथी अमेरिका में नहीं पाया जाता। ऎसा ही एक उकेरा चित्र पेरू के संग्रहालय में है, जिसमें गले में सर्प धारण किए जटाजूटधारी देवता एक सूँड़धारी युवक को आशीर्वाद दे रहा है। शिव से आशीर्वाद प्राप्त करते गणेश के इस चित्र को 'प्रेरणा प्राप्त करता हुआ इन्का (Inca, Inga)' कहा गया। इसी प्रकार ग्वाटेमाला (Guatemala) के पूर्व एक हाथी पर बैठे देवता की मूर्ति है। यह ऎरावत पर आसीन इंद्र यहाँ कैसे प्रकट हुए ? शिव एवं गणेश जी और इंद्र इस अनजानी नई दुनिया में कैसे अवतरित हुए? यह उन स्वर्ण-लोभी, दंभी और बर्बर यूरोपवासियों की समझ में न आया जो लूट-खसोट करने अमेरिका पहुँचे थे।

महाभारत में पाताल देश के राजा का युद्घ में भाग लेने का उल्लेख है और वर्णन है 'मय ' दावन का, जिसने इंद्रप्रस्थ में अपने पाताल देश से लाए रत्नों से जटित पांडवों के अभूतपूर्व राजप्रासाद का निर्माण किया। जब स्पेनवासी मध्य तथा दक्षिण अमेरिका पहुँचे तो उनके रत्नजटित एवं स्वर्णमंडित मंदिर देखकर दंग रह गए। विष्णुपुराण में पृथ्वी के दूसरी ओर के सात क्षेत्रों का वर्णन है- अतल, वितल, नितल, गर्भास्तमत (भारत के एक खंड को भी कहते हैं), महातल, सुतल और पाताल। उसके अनुसार वहाँ दैत्य, दानव, यक्ष, नागों और देवताओं का निवास है। नारद मुनि वहाँ से लौटकर देवताओं से वर्णन करते हैं 'इंद्र की अमरावती से भी सुंदर पाताल देश' का। आज हम नहीं जानते कि पूथ्वी के दूसरी ओर के अन्य क्षेत्र कौन हैं, पर मध्य अमेरिका एवं दक्षिण अमेरिका का उत्तरी-पश्चिमी भाग (जिसमें आज उत्तर-पश्चिम कोलंबिया, इक्वाडोर, पेरू तथा उत्तरी चायल के आसपास का क्षेत्र है) की प्राचीन सभ्यता के भारतीय लक्षणों को देखते हुए उसकी पहचान संस्कृत वाङ्मय में वर्णित 'पाताल' से हो जाती है।

मध्य अमेरिका का परंपरागत विश्वास है कि उनके पूर्वज एक दूरस्थ प्राची देश (Orient), जिससे बृहत्तर भारत अर्थात भारत सहित दक्षिण-पूर्व एशिया का बोध होता है, से आए। स्पेनवासियों के मेक्सिको पहुँचने पर उनके राजा (Monetzuma) ने कहा था कि उनके गोरे पूर्वज ('पीत' नहीं) जलमार्ग से महासागर पार कर आए। इसी प्रकार इन्का किंवदंती है कि उनके 'अय्यर' (Ayer) राजा, जिन्होंने सहस्त्राब्दि से अधिक राज्य किया, मध्य अमेरिका से सूर्य देवता की कृपा से अवतरित हुए। 'अय्यर' राजा, अर्थात दक्षिण भारत के 'अय्यर ब्राम्हण', जिन्होंने अमेरिका को जीवन-पद्घति दी, छोटे-छोटे नगर, खंड और समाज के हर वर्ग को स्वायत्त शासन दिया, विज्ञान तथा पंचांग दिया और दिया गणित में स्थानिक मान एवं शून्य की कल्पना।

स्पेन निवासियों ने मध्य अमेरिका के कैरीबियन (Caribbean Sea) तट पर घास-फूस से छाए मिट्टी से निर्मित 'मय' (Maya) लोगों के मकान देखे, वैसे ही जैसे आज भी दक्षिण भारत के सागर-तट पर छोटी-छोटी बस्तियों में देख सकते हैं। उन्होंने उस सुसंस्कृत समाज को आदिम, अविकसित और जंगली समझा। इसीलिए वे उच्च भूमि पर बने सुनियोजित वर्गाकार नगर, जिनकी चौड़ी वीथिकाएँ एक-दूसरे को लंब रूप में काटती हैं और जिनमें अर्द्घ-पिरामिड सदृश चबूतरों के ऊपर देवताओं की आकृतियाँ और मंदिर थे, जो वेधशाला के रूप में भी काम आते थे, और बड़े सभ्यता के अंग हैं। इन सभ्यताओं की जीवन-पद्घति में भारत की झलक है।

शरद हेबालकर ने अपनी पुस्तक में इन मिट्टी से बनी दीवारों और घास-फूस के छप्परों के बीच पलते जीवन का वर्णन किया है,

'आदर्श भारतीय गृहिणी का आतिथ्य मेक्सिको की इन झोंपड़ियों में देखने को मिलेगा। यदि भोजन करने बैठे तो मेज-कुरसी छोड़ चटाई पर बैठकर थाली रखी जाएगी।-- उसमें होगी बेलन से चकले पर बेली और व्यवस्थित सेंकी गोल रोटी (खमीरी नहीं) और साथ में खाने के लिए बढ़िया छौंकी हुयी दाल।' 
उनका भोजन है चकला-बेलन पर बनी मक्का की रोटी, दाल, सेम आदि का साग और चटनी- जैसे भारत में लेते हैं। आगे कहा है, 
'ये मेक्सिकोवासी स्वभास व चाल-चलन से पूर्ण भारतीय हैं। अमेरिका का सच्चा वैभव है मेक्सिको, ग्वाटेमाला (Guatemala= गौतमालय), पेरू और बोलीविया प्रदेशों की प्राचीन संस्कृतियाँ; और ये अपना नाता भारतीय संस्कृति से बताती हैं।' 
अमेरिका के प्राचीन सांस्कृतिक जीवन में भारत की झलक दिखती है, जैसे हिंदुओं ने उन्हें संस्कृति के प्रथम दर्शन कराए हों।

भारतीय संस्कृति के दूतों से उन्होंने खेती करना सीखा।आज पुरातत्वज्ञ यह विश्वास करते हैं कि कपास की खेती और उपयोग भारत ने सारे संसार को दिया। अमेरिका निवासियों ने भी इन भारतीय पथ-प्रदर्शकों से वस्त्र पहनना सीखा। और उन्हें मिला एक समाज के रूप में सामूहिक जीवन और टोलियों में रहनेवाले तथा अनजान भाषाएँ बोलनेवालों को एकता में आबद्घ करती जीवन-पद्घति। यह चमत्कार भारतीय संस्कृति के दूतों ने विक्रम संवत् के लगभग पंद्रह सौ वर्ष पूर्व अथवा उसके भी पहले करके दिखाया।


प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत
०८ - अक्कादी
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ -  आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ -  योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ -  मंगोलिया
३३ - चीन
३४ - चीन को भारत की देन 
३५ - अगस्त्य मुनि और हिन्दु महासागर
३६ -  ब्रम्ह देश 
३७ - दक्षिण-पूर्व एशिया
३८ - लघु भारत 
३९ - अंग्कोर थोम व जन-जीवन
४० - श्याम और लव देश
४१ - मलय देश और पूर्वी हिन्दु द्वीप समूह
४२ - चीन का आक्रमण और निराकरण
४३ - इस्लाम व ईसाई आक्रमण
४४ - पताल देश व मय देश

रविवार, जुलाई 11, 2010

इस्लाम व ईसाई आक्रमण

परन्तु यह सब कालांतर में नष्ट हो गया। यह सत्य है कि जहाँ मंगोल (मुगल) आक्रमण भारत में बाद में आया वहाँ कुबलई खाँ के  आक्रमण ने पहले ही दक्षिण-पूर्व एशिया में ध्वंस बरपा। उत्तरी चंपा पर चीन का कुछ काल तक अधिकार चलने पर भी इन हिंदु राज्यों की जनता ने पुन: कुछ सीमा तक उसका निराकरण किया। और दक्षिण-पूर्व के हिन्द द्वीप समूह ने तो चीन की नौसेना के एक बड़े अंश को जावा के पास जल-समाधि दिला दी। इसके बाद अरब के आक्रमण का भयानक खतरा आया इसलाम के रूप में। सरल और निष्कपट लोग छल के शिकार बने। पर भारत की सर्व कल्याण की इच्छा रखने वाली और हर प्रकार के विचारों की आश्रय-प्रदात्री संस्कृति ने उसे भी मानवता का एक रूप समझकर स्थान दिया। उन्हें अपनी श्रद्घा के अनुकूल रहने की, अपने पंथ की रीति का पालन करने की स्वतंत्रता दी। परंतु अनेक स्थानों पर वे विदेशी हस्तक बने। प्रदत्त स्वतंत्रता का दुरूपयोग किया। बाह्य निष्ठाएँ जगाईं और धीरे-धीरे मलयेशिया एवं पूर्वी हिंद द्वीप समूह मुसलिम बहुल हो गए।


कंबोडिया के राजा: नोरोदम - चित्र विकिपीडिया से
उनके पीछे अनेक देशों से आए ईसाई। जहाँ-जहाँ यूरोपीय (ईसाई) बए, उनके आगे चले पादरी। सबसे पहले क्रूरकर्मा पुर्तगाली कंबुज एवं लव देश पहुँचे। लव देश में पुर्तगालियों ने भयंकर अत्याचार किए। उसके बाद सोलहवीं सदी में भिन्न-भिन्न यूरोपीय देशों से, व्यापार करने के बहाने, नौसेना सहित वहाँ पहुँचे अंग्रेज, डच और फ्रांसीसी। उनके साथ मानवता की खाल ओढ़े आया ईसाई चर्च और तथाकथित लोकोपकार कार्य। 'स्याम' (थाईलैंड) को छोड़कर सभी देश उनकी सर्वग्रासी साम्राज्यवादी भूख के ग्रास बने। राजा नोरोदम (नरोत्तम) के समय फ्रांसीसी साम्राज्य पूर्ण हो गया।

इनके अत्याचारों से तंग हो जनता साम्यवाद की ओर आकर्षित हूयी। तब जो कुछ बचा था उसको कंबुज, लव देश और चंपा (वियतनाम) में आए साम्यवाद के आक्रमण ने नष्ट कर दिया। साम्यवादी सरकारों ने वहाँ की भारतीय संस्कृति के अवशेषों को कुचला। मनमाने आदेशों से उनके प्राचीन काल से चलते आए जीवन के समूल विनाश का यत्न किया। मंदिर एवं विहार, अमूल्य शिल्प और कलाकृतियाँ नष्ट कर पुजारियों और बौद्घ भिक्षुओं को बलात् श्रम में जोता। साहित्य, परंपराएँ एवं संस्कृति- सभी उनके कोपभाजन बने।

मानव सभ्यता के हतभाग्य के ये सब निमित्त मात्र थे। मूल कारण शरद हेबालकर ने निम्न शब्दों में वर्णित किया है,

'सैकड़ों  वर्षों से भरत-भूमि के पुत्र इन हिंदु राज्यों में जाते रहते थे। वे ज्ञान, विज्ञान, पराक्रम लेकर जाते थे। पर दसवीं सदी के बाद स्वयं भारत इसलाम के आक्रमण का प्रतिकार करने में व्यस्त हो गया। धर्म, संस्कृति, भूमि, समाज आदि पर सर्वकष आक्रमणों से भारत ही घायल व व्याकुल था। एक भयंकर ग्लानि से वह ग्रस्त था।-- और जब चैतन्य का यह स्त्रोत ही बंद हो गया तो नहरों में चैतन्य का प्रवाह कहाँ से आता ? और उस चैतन्य के अभाव में यदि उन नहरों के आसपास के प्रदेश सूख बए तो क्या आश्चर्य ?' 
मानव सभ्यता की सबसे बड़ी त्रासदी थी भारत में विदेशी शासन।

प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत
०८ - अक्कादी
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ -  आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ -  योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ -  मंगोलिया
३३ - चीन
३४ - चीन को भारत की देन 
३५ - अगस्त्य मुनि और हिन्दु महासागर
३६ -  ब्रम्ह देश 
३७ - दक्षिण-पूर्व एशिया
३८ - लघु भारत 
३९ - अंग्कोर थोम व जन-जीवन
४० - श्याम और लव देश
४१ - मलय देश और पूर्वी हिन्दु द्वीप समूह
४२ - चीन का आक्रमण और निराकरण
४३ - इस्लाम व ईसाई आक्रमण

रविवार, जुलाई 04, 2010

चीन का आक्रमण और निराकरण

मंगोलिया में कुबलई खां की मूर्ति
विक्रम संवत् की ग्यारहवीं शताब्दी से उत्तरी चीन का दबाव दक्षिण-पूर्व एशिया पर बढ़ा। चीनी प्रव्रजन की लहरें ब्रम्ह देश, कंबुज, चंपा, मलय में आई और द्वीपों तक पहुँचीं। इन हलचलों ने उथल-पुथल मचायी, सबको त्रस्त किया। तब आए चीन के मंगोल सम्राट् कुबलई खाँ के आक्रमण। इन्होंने मंदिर, बस्तियाँ नष्ट कीं; उससे बढ़कर जन-संस्थाए, स्वायत्त शासन और सार्वजनिक जीवन उद्ध्वस्त किया। चंपा पर चीन ने कुछ समय के लिए अधिकार कर लिया। ब्रम्ह देश एवं कंबुज के अंदर विनाश-लीला की। कुबलई खाँ की जलसेना का प्रबल आक्रमण हुआ, एक-एक द्वीप को अकेला कर जीतने की लालसा से। ऎसे समय में विक्रम संवत् की तेरहवीं शताब्दी में उसका समुचित उत्तर दिया यव द्वीप के सम्राट् कृतनगर के नेतृत्व में हिंदु राज्यों की संगठित शक्त ने। चंपा से लेकर कलिंग, कालीमंथन तथा बाली, मदुरा, यव द्वीप, सुमात्रा एवं मलय तक हिंदु राज्यों की मालिका खड़ी हुयी। अंत में उसके दामाद और बाली के राजपुत्र विजय ने चतुराई से मंगोल-नौदल का सर्वनाश किया। जावा में चीनी जलसेना नष्ट हो गयी। जनता ने विजय को 'कीर्तिराज जयवर्धन' के नाम से विभूषित किया।


मजपहित स्वर्णिम युग को दर्शाती अप्सरा की सवर्ण मूर्ति
'कृतनगर' और 'जयवर्धन' द्वारा इस क्षेत्र के स्वर्ण युग का पदार्पण हुआ। यह साम्राज्य 'मजपहित' कहलाता है। यहाँ के एक संस्कृत काव्य में इसका वर्णन 'यव द्वीप की प्रजा के जीवन का सर्वश्रेष्ठ कालखंड' कहकर है। श्री शरद हेबालकर ने मजपहित साम्राज्य को 'हिंदु संस्कृति के वैभव का परमोच्च शिखर' कहा है। इसी वंश में 'त्रिभुवना' सम्राज्ञी हुयी, जिसका काल एक आदर्श शासन-व्यवस्था लागू करने के लिए प्रसिद्घ हुआ। श्री शरद हेबालकर ने लिखा है,
'उसकी शासन-व्यवस्था चाणक्य के अर्थशास्त्र और कामंदक के राजनीतिशास्त्र पर आधारित थी। अर्थशास्त्र में वर्णित सप्तांग राज्य-कल्पना प्रत्यक्ष व्यवहार में आई। राज्य-शासन के विधि, नियम और न्याय-व्यवस्था मनुस्मृति पर आधारित थी। इसी समय जनगणना और भू-मापन संपन्न हुआ, जिससे राष्ट्र-समृद्घि की अनेक योजनाएँ बन सकीं। श्रमिक एवं भृत्य वर्ग का वेतन शासन द्वारा निश्चित किया गया। भ्रष्टाचार से मुक्त जीवन बनाने की दृष्टि से आर्थिक तंत्र के अधिकारी नियुक्त करते समय जाँच-पड़ताल और कुल-शील देखकर नियुक्तियाँ की जाती थीं। प्रजा के लिए देय कर न्यूनतम थे। कर-संग्रह तथा समुचित लेखा-जोखा रखा जाता था। साम्राज्य में सरदारों तथा वरिष्ठ वर्ग पर भेंट, उपहार आदि लेने के विषय में कठोर प्रतिबंध थे।' 
यह साम्राज्य विक्रम संवत् की सोलहवीं शताब्दी तक बना रहा। यह किसी आधुनिक कल्याण राज्य का वर्णन नहीं है क्या?

कैसे वैभव-संपन्न ये भारतीय संस्कृति से अनुप्राणित राज्य निर्मित हुए। इसके साक्षी उस क्षेत्र में आए चीनी प्रतिनिधियों और यात्रियों के वर्णन, वहाँ के शिलालेख,उनके साहित्य तथा आज प्राप्य सरकारी अभिलेखों में प्रयुक्त भारतीय वर्णमाला एवं लिपि,उनकी भाषा,जिसपर संस्कृत की अमिट छाप है, उनका शिल्प और कला-वैभव तथा उनमें अंकित हिंदु पवित्र चिन्ह हैं। रामायण और महाभारत, जातक, पंचतंत्र एवं पुराणों से लिये संदर्भ उनके जीवन की कहानी बने। स्वायत्तता एवं सामाजिक रचना हिंदु जीवन से ओतप्रोत  बनी। वैष्णव,शैव, शाक्त और बौद्घ-सभी मतों का अद्भुत समन्वय संस्कृति की सिद्घि थी। सभी विचारो का समादर और मानवता के अनुकूल वृत्ति।


इस चिट्ठी के दोनो चित्र विकिपीडिया से

प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत
०८ - अक्कादी
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ -  आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ -  योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ -  मंगोलिया
३३ - चीन
३४ - चीन को भारत की देन 
३५ - अगस्त्य मुनि और हिन्दु महासागर
३६ -  ब्रम्ह देश 
३९ - अंग्कोर थोम व जन-जीवन
४० - श्याम और लव देश
४१ - मलय देश और पूर्वी हिन्दु द्वीप समूह
४२ - चीन का आक्रमण और निराकरण