शनिवार, मार्च 31, 2007

भौतिक जगत और मानव-१२

कालचक्र: सभ्यता की कहानी
संक्षेप में
प्रस्तावना
भौतिक जगत और मानव-१
भौतिक जगत और मानव-२
भौतिक जगत और मानव-३
भौतिक जगत और मानव-४
भौतिक जगत और मानव-५
भौतिक जगत और मानव-६
भौतिक जगत और मानव-७
१० भौतिक जगत और मानव-८
११ भौतिक जगत और मानव-९
१२ भौतिक जगत और मानव-१०
१३ भौतिक जगत और मानव-११

कभी इस पृथ्वी पर कापियों से भिन्न मानव सदृश प्राणी था, यह हम इस कल्प के पत्थर के हथियारों से जानते हैं । ये चकमक के टुकड़े ऐसे अनगढ़ थे कि वर्षो यही विवाद चलता रहा कि ये प्राकृतिक हैं या कृत्रिम । पर आज पुरातत्‍वज्ञ (archaeologists) यह मानते हैं कि वे किसी प्राणी के द्वारा निर्मित हैं। नूतनजीवी कल्प के अतिनूतन युग में इनके प्रथम दर्शन होते हैं। इसके बाद ये हिमानी युग के प्रथम अंतरिम कालखंड (first inter-glacial period) में बराबर मिलते रहते हैं।

धीरे – धीरे यूरोप में पचास हजार वर्ष से कुछ पुरानी मानवसम खोपडियॉ और हड्डियाँ बड़े प्राणी की प्राप्त होती हैं। तब चौथा हिमाच्छादन पराकाष्ठा पर पहुंच रहा था और तत्कालिक मानव ने कंदराओं में शरण ली। इन्हें ‘नियंडरथल मानव’(Neanderthal man)कहते हैं। यह मानव की भिन्न जाति थी । इनके कुछ चिन्ह मिल सके; क्योंकि हिमयुग के शीत से बचने के लिए इन्‍होंने कंदराओं की शरण गही। उसके मुख के पास अग्नि प्रज्वलित की – शीत तथा जानवरों से त्राण पाने के लिए।

अग्नि, संसार का अद्वितीय आविष्कार, इसको सुलगाकर सदा प्रज्वलित रखना आदि मानव की चिंता का विषय था । यवन मिथक (Greek mythology)में वर्णित प्रोमीथियस (Prometheus)की एक कहानी है। वह स्वर्ग से अग्नि चुराकर पृथ्वी पर लाया। इसके लिए उसे स्वर्ग से निकाल दिया गया। अंग्रेजी साहित्य में भी मानव जाति के इस महान उपकारी के काव्य लिखे गए हैं। पर ‘प्रोमीथियस’ तो ‘प्रमंथन’ का अपभ्रंश मात्र है। प्रमंथन से ,रगड़ से, यह अग्नि जो अदृश्य थी, प्रकट हुई। अंगिरा ऋषि ने दो सूखी लकड़ी के टुकड़ों के प्रमंथन से, या चकमक टुकड़ों की रगड़ द्वारा अग्नि उत्पन्न करने की विधि बताई है।

नियंडरथल मानव के बारे में अनेक कल्‍पनाऍ पुरातत्वज्ञों ने की हैं। रूड्यार्ड किपलिंग (Rudyard Kipling) की बाल कहानी ‘द जंगल बुक’(The Jungle Book) आदि भेड़ियों की कहानियों पर आधारित है। पर नियंडरथल मानव उस समय की प्रकृति की सर्वश्रेष्‍ठ कृति थी। बहुत बड़ा मस्तिष्क एवं तीक्ष्ण इंद्रियाँ उन्हें मिली थीं, साथ ही विकासजनित सामाजिकता के भाव। पुरातत्वज्ञों ने कल्पना में ये सब ओझल कर दिए।

चतुर्थ हिमाच्छादन में बहुत सारा पानी हिम आवरणों में समाविष्ट हो गया और कुछ भूमि, जो पहले सागर तल थी, निकल आई। हो सकता है कि अफ्रीका का उत्तरी भाग यूरोप से मिला हो । भूमध्य सागर (Mediterranian Sea) के स्थान पर संभवतया बीच में एक या दो झीलें सागर तल से नीची भूमि पर थीं । उधर यूरोप और एशिया के बीच अपने अंदर काला सागर (Black Sea), कश्यप सागर (Caspian Sea) और अरल सागर (Aral Sea) को समाए सुदूर उत्तर तक एक मध्यवर्ती सागर लहराता था; जिसके कारण यूरोप (प्राचीन नाम योरोपा, संस्कृत ‘सुरूपा’ ) एक महाद्वीप कहलाया । उत्तरी ध्रुव प्रदेश से बढ़ते हिम – पुंज ने आल्पस पर्वत के पास तक मघ्य यूरोप ढ़क लिया और उक्त योरेशिया के मध्यवर्ती सागर को छूने लगा।

चतुर्थ हिमाच्छादन के बाद लगभग चालीस सहस्र वर्ष पूर्व ,जब पुन: शीतोष्ण जलवायु मध्य यूरोप में लौटी तब एक भिन्न मानव प्रजाति दक्षिण एवं पूर्व से यूरोप में आने लगी। धीरे- धीरे प्रत्येक शताब्दी में बर्फ उत्तर की ओर हटती गई। यूरोप की जलवायु सुधरी और घास के मैदान एवं वृक्ष भी उत्तर की ओर बढ़े । नवीन मानव प्रजाति उनके पीछे-पीछे नए स्‍थानों पर पहुंची। यह नई प्रस्तरयुगीन प्रजाति विशुद्ध मानव (Homo Sapiens) की थी, जो हम सब हैं।

कालांतर में नियंडरथल मानव भी नष्ट हो गए। संभ्वतया प्रा‍कृतिक विकास क्रम में, या चतुर्थ हिमाच्छादन का भयंकर शीत न सह सकने के कारण । मानव की जो जाति नियंडरथल मानव के बाद आई, वह खुले में रहती थी, पर उसने नियंडरथल मानव की कंदराओं और स्थानों पर भी आधिपत्य जमाया। कुछ पुरातत्वज्ञ ऐसा विश्वास करते हैं कि शायद नियंडरथल मानव का नवीन मानव से भिन्न प्रजाति होने के कारण (जैसे कुत्ते और बिल्ली भिन्न हैं), उनका संकरण नहीं हुआ। पर नियंडरथल मानव चतुर्थ हिमाच्छादन में ही समाप्त हो गए।

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