'यह सिकंदर की महानता थी कि उत्तर से प्रसन्न हो संधि में बराबरी की शर्तें तय हुयी।'
यह कहकर तो किसी को बहलाया नहीं जा सकता। और सिकंदर जैसे सुरसा, परसीपुलिस आदि ईरानी नगरों की भयंकर लूट और नर-संहार करने वाले क्रूरकर्मा से तो कभी ऎसी अपेक्षा नहीं हो सकती।
पोरस बायें और सिकंदर दायें
हम उसके बाद की कहानी जानते हैं। पुरू के राज्य व सतलुज नदी के बीच और सतलुज के पार अनेक गणराज्य थे। चाणक्य ने, जो उन दिनों तक्षशिला में आचार्य थे, एक भीषण प्रतिरोध की योजना चालू की, जिसकी प्रमुख कड़ी उनका प्रिय शिष्य चंद्रगुप्त था। गणराज्यों के प्रतिरोध के कारण सिकंदर की सेना और उसके साहस ने जवाब दे दिया। अंत में सिकंदर अपनी सेना के साथ नावों से नदी के मार्ग से भागा। ऎसे समय चंद्रगुप्त अथवा उसके साथियों का बाण सिकंदर की छाती में लगा। उस घाव के पकने से लौटते समय उसे ज्वर आया और बगदाद में उसकी महत्वाकांक्षी जीवन-लीला, विश्व-विजय का अधूरा स्वप्न लिए, समाप्त हो गयी। उसने पूर्वी ईरान में अपने सेनापति सेल्यूकस को छोड़ा था। उसका भी क्या हुआ, इतिहास हमें बताता है पर सिकंदर जैसे लोगों को इतिहास 'महान' का विशेषण लगाता है। वास्तव में सिकंदर जैसे लोग सभ्यता के शांत प्रवाह में महामारी के समान थे। उन्होंने ज्वालामुखी सरीखी हलचल मचाई सभ्यता के शांत प्रवाह में और फिर अपनी विनाश-लीला और क्रूरता की कहानी छोड़कर शून्य में विलीन हो गए। जहाँ भी पहुँचे वहाँ के लोगों को गुलाम बनाया। स्वतंत्रता-प्रेमी जनों से नृशंस बदला लिया। मानवता के लिए आखिर उसका योगदान क्या था? दानवता का नंगा नाच?
लगभग डेढ़ सौ वर्षों तक यूनान का शासन रहा। उसके बाद पार्थिया प्रांत के राजा मित्रादित्य (अथवा मित्रदत्त) (Mitridates) ने यवनों को निकाल बाहर किया। पार्थी राजाओं ने लगभग चार सौ वर्षों तक राज्य किया। पर अंत में ईरान धार्मिक-पांथिक कर्मकांड एवं अंधविश्वास में जकड़ गया। उसके पहले आमू (वक्षु) और सीर नदी के सहारे हीरमंद तक और पूरे उत्तरी ईरान में बौद्घ भिक्षु फैल चुके थे।
गांधार आदि प्रदेश तब भारत के थे। तब ईरान में एक नए महात्मा 'मानी' (Mani) का जन्म हुआ। इनके विचार बौद्घ विचार थे। इन्होंने जरथ्रुष्ट्र, बौद्घ तथा ईसाई मतों का समन्वय करके 'मानी मजहब' प्रारंभ किया, जो मूलत: बौद्घ मत ही था। पर कुछ कट्टरपंथी और दकियानूसी मागी पुरोहितों ने षड्यंत्र करके उसे सूली पर चढ़वा दिया। पार्थी राजाओं के बाद सासानी कुल आया; उसमें प्रसिद्घ राजा नौशेरवाँ हुआ। पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु के पश्चात् अरबों ने ईरान जीत लिया। समस्त ईरान ने, अत्याचारों का शिकार हो, इसलाम स्वीकार किया। सहस्त्रों जरथ्रुष्ट्री पंथ के अनुयायी पवित्र अग्नि बचाकर भारत भागे। आज के पारसी यही हैं जिन्हें भारत ने इसलामी आक्रमण के विरूद्घ शरण दी।
इस चिट्ठी के चित्र - विकिपीडिया के सौजन्य से
कालचक्र: सभ्यता की कहानी
भौतिक जगत और मानव
मानव का आदि देश
सभ्यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं
अवतारों की कथा
स्मृतिकार और समाज रचना
भौतिक जगत और मानव
मानव का आदि देश
सभ्यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं
अवतारों की कथा
स्मृतिकार और समाज रचना
प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
०९ - बैबिलोनिया१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ - आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
रोचक जानकारी !
जवाब देंहटाएंthanks for sharing lakin sikendra ko aakhir porus ne thaka hi diya aage badne ki himmat nahi hui saale ki chala tha hindustan pe kabja karne
जवाब देंहटाएंporus tu great hia
Ooper jin "Mani" ka vivaran aapne prastut kiya hai, mere anuman se unke kuch shishyon ne unke mat ka prachar Scandinavia me kabhi kiya hoga, kyuki unke naam se milte-julte ek devta ki dant-katha mujhe yahan ki adi-sabhyata me dekhne ko mili hai. Adhik jankari ke liye wikipedia ka ye link dekhiye, aur usme ek Surya ke saat ghodon wale jwalant rath ke saman do rathon ke chitra dekhiye: http://en.wikipedia.org/wiki/Norse_Mythology
जवाब देंहटाएं