आज हम समिति तथा सभा के पारस्परिक संबंध नहीं जानते। सभा में शायद प्रौढ़ या विशेषज्ञ (पितृगण) रहते थे। इसे 'नरिष्टा' कहा, अर्थात जिसके निर्णय का उल्लंघन नहीं किया जा सकता, न उपेक्षा। 'सभा' का शाब्दिक अर्थ है 'वह निकाय जिसके लोग आभायुक्त हों।' यह राष्ट्रीय न्यायाधिकरण (सर्वोच्च न्यायालय ) के रूप में भी कार्य करती थी।
पाणिनि ने गणराज्यों के लिए 'गण' अथवा 'संघ' दोनों शब्दों का प्रयोग किया है। 'गण' का शाब्दिक अर्थ है 'गिनना'। भगवान बुद्घ ने बौद्घ भिक्षुओं की संख्या के बारे में कहा,
'उन्हें गिनो, जैसे गण में मत गिने जाते हैं। अथवा शलाका (मतपत्र) लेकर गिनो।'
उस समय राज्य की सर्वोच्च सभा या संसद् को भी 'गण' कहकर पुकारने लगे। इसी से हुआ 'गणपूरक', वह व्यक्ति जिसका उत्तरदायित्स था गण की बैठक में कोरम (quorum) पूरा करवाना और देखना। वह समिति का सचेतक भी था। इन गणों के विधान का भी विवरण जैन सूत्रों अथवा महाभारत में मिलता है। किन नियमों के द्वारा यहाँ विचार-विमर्श होता था और कैसे निर्णय लिये जाते थे। इसी प्रकार नागरिकता तथा मताधिकार के भी नियम थे।
पाणिनि ने अनेक गणराज्यों का वर्णन किया है-वृक, दामनि, त्रिगर्त्त-षट् (छह त्रिगर्त्त, अर्थात कौंडोपरथ, दांडकी, कौटकि, जालमानि, ब्राम्हगुप्त तथा जानकी का संघ), यौधेय, पर्श्व आदि। इनके अतिरिक्त मद्र, वृज्जि, राजन्य तथा अंधक-वृष्णि आदि अनेक गणराज्यों अथवा उनके संघों का नाम महाभारत में आता है। उनमें से कुछ का संविधान गणराज्यों का संघीय रूप था।
कालचक्र: सभ्यता की कहानी
भौतिक जगत और मानव
मानव का आदि देश
सभ्यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं
अवतारों की कथा
स्मृतिकार और समाज रचना
०१ - कुरितियां क्यों बनीभौतिक जगत और मानव
मानव का आदि देश
सभ्यता की प्रथम किरणें एवं दंतकथाऍं
अवतारों की कथा
स्मृतिकार और समाज रचना
०२ - प्रथम विधि प्रणेता - मनु
०३ - मनु स्मृति और बाद में जोड़े गये श्लोक
०४ - समता और इसका सही अर्थ
०५ - सभ्यता का एक मापदंड वहाँ नारी की दशा है
०६ - अन्य देशों में मानवाधिकार और स्वत्व
०७ - भारतीय विधि ने दास प्रथा कभी नहीं मानी
०८ - विधि का विकास स्थिति (या पद) से संविदा की ओर हुआ है
०९ - गणतंत्र की प्रथा प्राचीन भारत से शुरू हुई
१० - प्राचीन भारत में, संविधान, समिति, और सभा
११ - प्राचीन भारत में समिति, सभा और गणतंत्र में सम्बन्ध
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