रविवार, दिसंबर 06, 2009

योरोप की सेल्टिक सभ्यता

यूनान तथा रोम की सभ्यताएँ पश्चिमी विचारधारा पर ऐसी छा गयी है कि यह दृष्टि से ओझल हो गया कि उसके पहले भी यूरोप में कोई (संस्कृत: सुरूपा) सभ्यता थी। और कौन थे वे जिन्होंने उस सभ्यता को दिशा दी, उसका नेतृत्व किया? यूरोप की उस सभ्यता को 'सेल्टिक' (Celtic या Keltic)  नाम से हम जानते हैं। उन्होंने पश्चिमी यूरोप में बड़े-बड़े स्मारक छोड़े, जो मिस्त्र के प्रथम राजवंश द्वारा निर्मित पिरामिडों से भी प्राचीन थे।


स्टोनहेंज  का स्मारक



इन महापाषाणों (Megalith) में मंदिर, वेधशाला तथा समाधियाँ हैं। ऐसा एक प्रसिद्घ स्मारक इंग्लैण्ड (England) में स्टोनहेंज (Stonehenge) है। इसमें सूर्य एवं चंद्रमा का भलीभाँति निरीक्षण हो सकता था। उत्तरी स्काटलैण्ड में ऎसे ही ग्राम 'स्काराबेयर' (Skara Brae) में भवन, मेज, बेंच, कुरसी आदि पत्थरों की बनायी गयी थीं। आल्पस पर्वत के उत्तर में भी ये महापाषाण हैं। इनके निर्माण की पद्घति पिरामिडों से भिन्न थी- दो पत्थर के स्तंभों पर एक पत्थर रखकर। ये निर्माण सरल थे।






 स्कारबेयर में रहने का स्थान 

सेल्टिक सभ्यता की धुरी जिनके चारों ओर घूमी, अब उन संप्रदायों की ओर दृष्टि डालें। प्रथम, पाइथागोरियन (Pythagorian) संप्रदाय। आज कुछ विद्वान समझते हैं कि यह संप्रदाय विक्रम संवत् पूर्व छठी शताब्दी के 'पाइथागोरस' (Pythagoras) नामक यवन दार्शनिक ने चलाया। पर वह स्वयं तो इसी 'पीठगुरू' संप्रदाय की देन था। आज भी मज़हबी कहलाने वाले इस संप्रदाय ने उन सिद्घांतों को प्रतिपादित किया जिन्होंने यवन सभ्यता के स्वर्णिम कहे जाने वाले युग के दर्शन को, अरस्तू व प्लातोन के विचारों को रूप-रंग दिया तथा आधुनिक पश्चिमी जगत को वैज्ञानिक भूमिका और इस प्रकार एक तर्कशुद्घ एवं विवेकपूर्ण जीवन देना प्रारंभ किया। यह समय था जब भारतीय सभ्यता के विचारों का विस्तार संपूर्ण पश्चिमी संसार में हो रहा था। इन विचारों के अग्रदूत ये 'पीठगुरू' संप्रदाय को जन्म दिया।





 रोम के संग्रहालय में रखी पाईथागोरस की अर्धप्रतिमा का चित्र

इस संप्रदान की प्रमुख मान्यताओं में भारतीय श्रमण एवं बौद्घ जीवन की छाप दिखती है। पीठगुरू संप्रदाय के लोग तर्कशुद्घ चिंतन पर विश्वास करते थे। वे कहते थे कि,
  1. यथार्थता की गणितीय प्रकृति है और इसलिए अंतिम सत्य गणित के समान है।
  2. ध्यान करने से आत्मिक शुद्घि प्राप्त होती है।
  3. आत्मा ऊपर उठकर परमात्मा  अथवा दैवी अंश में विलीन हो सकती है।
  4. कुछ प्रतीक आध्यात्मिक महत्व के होते हैं।
  5. जितने भी संप्रदाय के बंधु हैं उन्हें कठोरता के साथ एक-दूसरे के प्रति निष्ठा एवं विश्वसनीयता बरतनी चाहिए।
वे संगीत को आत्मा का उन्नायक मानते थे। दफनाने के स्थान पर शवदाह करते थे। वे निवृत्ति मार्ग के समर्थक थे। उनके विश्वासों ने उस युग में वैज्ञानिक मनोवृत्ति को बढ़ावा और बाद में उनकी शिक्षा यवन दार्शनिकों तथा आधुनिक विज्ञान का पथ प्रशस्त करने वाली बनी। यही भारतीय संस्कृति की देन यूरोपीय सभ्यता को है। पर बीच के कालखंउ में एक बहुत बड़ा, अनेक शताब्दियों का, ईसाई और मुसलिम विचारों का ग्रहण लगने वाला था।

इन्हीं पीठगुरू का संदेश कि तर्क के आधार पर जीवन और विश्वासों की रचना हो (जैसे सनातन अथवा श्रमण एवं बौद्घ विचार थे), यवन इतिहास के स्वर्णिम काल के दार्शनिकों (वैज्ञानिकों) का पथ-प्रदर्शक बना। अपने ढंग से उन्होंने क्रमबद्घ विचार प्रारंभ किए। यवन चिंतक टालमी (Ptolemy), सुकरात (Socrates), प्लातोन व अरस्तू-सभी ऎसी परंपरा के मुक्त चिंतक थे। ये यूरोप की आधुनिक वैज्ञानिक विचारधारा के जनक कहलाए।

इस चिट्ठी के चित्र विकिपीडिया के सौजन्य से 

प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य

०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत
०८ - अक्कादी
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ -  आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें