रविवार, जुलाई 04, 2010

चीन का आक्रमण और निराकरण

मंगोलिया में कुबलई खां की मूर्ति
विक्रम संवत् की ग्यारहवीं शताब्दी से उत्तरी चीन का दबाव दक्षिण-पूर्व एशिया पर बढ़ा। चीनी प्रव्रजन की लहरें ब्रम्ह देश, कंबुज, चंपा, मलय में आई और द्वीपों तक पहुँचीं। इन हलचलों ने उथल-पुथल मचायी, सबको त्रस्त किया। तब आए चीन के मंगोल सम्राट् कुबलई खाँ के आक्रमण। इन्होंने मंदिर, बस्तियाँ नष्ट कीं; उससे बढ़कर जन-संस्थाए, स्वायत्त शासन और सार्वजनिक जीवन उद्ध्वस्त किया। चंपा पर चीन ने कुछ समय के लिए अधिकार कर लिया। ब्रम्ह देश एवं कंबुज के अंदर विनाश-लीला की। कुबलई खाँ की जलसेना का प्रबल आक्रमण हुआ, एक-एक द्वीप को अकेला कर जीतने की लालसा से। ऎसे समय में विक्रम संवत् की तेरहवीं शताब्दी में उसका समुचित उत्तर दिया यव द्वीप के सम्राट् कृतनगर के नेतृत्व में हिंदु राज्यों की संगठित शक्त ने। चंपा से लेकर कलिंग, कालीमंथन तथा बाली, मदुरा, यव द्वीप, सुमात्रा एवं मलय तक हिंदु राज्यों की मालिका खड़ी हुयी। अंत में उसके दामाद और बाली के राजपुत्र विजय ने चतुराई से मंगोल-नौदल का सर्वनाश किया। जावा में चीनी जलसेना नष्ट हो गयी। जनता ने विजय को 'कीर्तिराज जयवर्धन' के नाम से विभूषित किया।


मजपहित स्वर्णिम युग को दर्शाती अप्सरा की सवर्ण मूर्ति
'कृतनगर' और 'जयवर्धन' द्वारा इस क्षेत्र के स्वर्ण युग का पदार्पण हुआ। यह साम्राज्य 'मजपहित' कहलाता है। यहाँ के एक संस्कृत काव्य में इसका वर्णन 'यव द्वीप की प्रजा के जीवन का सर्वश्रेष्ठ कालखंड' कहकर है। श्री शरद हेबालकर ने मजपहित साम्राज्य को 'हिंदु संस्कृति के वैभव का परमोच्च शिखर' कहा है। इसी वंश में 'त्रिभुवना' सम्राज्ञी हुयी, जिसका काल एक आदर्श शासन-व्यवस्था लागू करने के लिए प्रसिद्घ हुआ। श्री शरद हेबालकर ने लिखा है,
'उसकी शासन-व्यवस्था चाणक्य के अर्थशास्त्र और कामंदक के राजनीतिशास्त्र पर आधारित थी। अर्थशास्त्र में वर्णित सप्तांग राज्य-कल्पना प्रत्यक्ष व्यवहार में आई। राज्य-शासन के विधि, नियम और न्याय-व्यवस्था मनुस्मृति पर आधारित थी। इसी समय जनगणना और भू-मापन संपन्न हुआ, जिससे राष्ट्र-समृद्घि की अनेक योजनाएँ बन सकीं। श्रमिक एवं भृत्य वर्ग का वेतन शासन द्वारा निश्चित किया गया। भ्रष्टाचार से मुक्त जीवन बनाने की दृष्टि से आर्थिक तंत्र के अधिकारी नियुक्त करते समय जाँच-पड़ताल और कुल-शील देखकर नियुक्तियाँ की जाती थीं। प्रजा के लिए देय कर न्यूनतम थे। कर-संग्रह तथा समुचित लेखा-जोखा रखा जाता था। साम्राज्य में सरदारों तथा वरिष्ठ वर्ग पर भेंट, उपहार आदि लेने के विषय में कठोर प्रतिबंध थे।' 
यह साम्राज्य विक्रम संवत् की सोलहवीं शताब्दी तक बना रहा। यह किसी आधुनिक कल्याण राज्य का वर्णन नहीं है क्या?

कैसे वैभव-संपन्न ये भारतीय संस्कृति से अनुप्राणित राज्य निर्मित हुए। इसके साक्षी उस क्षेत्र में आए चीनी प्रतिनिधियों और यात्रियों के वर्णन, वहाँ के शिलालेख,उनके साहित्य तथा आज प्राप्य सरकारी अभिलेखों में प्रयुक्त भारतीय वर्णमाला एवं लिपि,उनकी भाषा,जिसपर संस्कृत की अमिट छाप है, उनका शिल्प और कला-वैभव तथा उनमें अंकित हिंदु पवित्र चिन्ह हैं। रामायण और महाभारत, जातक, पंचतंत्र एवं पुराणों से लिये संदर्भ उनके जीवन की कहानी बने। स्वायत्तता एवं सामाजिक रचना हिंदु जीवन से ओतप्रोत  बनी। वैष्णव,शैव, शाक्त और बौद्घ-सभी मतों का अद्भुत समन्वय संस्कृति की सिद्घि थी। सभी विचारो का समादर और मानवता के अनुकूल वृत्ति।


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प्राचीन सभ्यताएँ और साम्राज्य
०१ - सभ्यताएँ और साम्राज्य
०२ - सभ्यता का आदि देश
०३ - सारस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
०४ - सारस्वत सभ्यता
०५ - सारस्वत सभ्यता का अवसान
०६ - सुमेर
०७ - सुमेर व भारत
०८ - अक्कादी
०९ - बैबिलोनिया
१० - कस्सी व मितन्नी आर्य
११ - असुर जाति
१२ -  आर्यान (ईरान)
१३ - ईरान और अलक्षेन्द्र (सिकन्दर)
१४ - अलक्षेन्द्र और भारत
१५ - भारत से उत्तर-पश्चिम के व्यापारिक मार्ग
१६ - भूमध्य सागरीय सभ्यताएँ
१७ - मिस्र सभ्यता का मूल्यांकन
१८ - पुलस्तिन् के यहूदी
१९ - यहूदी और बौद्ध मत
२० - जाति संहार के बाद इस्रायल का पुनर्निर्माण
२१ - एजियन सभ्यताएँ व सम्राज्य
२२ - फणीश अथवा पणि
२३ - योरोप की सेल्टिक सभ्यता
२४ -  योरोपीय सभ्यता के 'द्रविड़'
२५ - ईसाई चर्च द्वारा प्राचीन यरोपीय सभ्यताओं का विनाश
२६ - यूनान
२७ - मखदूनिया
२८ - ईसा मसीह का अवतरण
२९ - ईसाई चर्च
३० - रोमन साम्राज्य
३१ - उत्तर दिशा का रेशमी मार्ग
३२ -  मंगोलिया
३३ - चीन
३४ - चीन को भारत की देन 
३५ - अगस्त्य मुनि और हिन्दु महासागर
३६ -  ब्रम्ह देश 
३९ - अंग्कोर थोम व जन-जीवन
४० - श्याम और लव देश
४१ - मलय देश और पूर्वी हिन्दु द्वीप समूह
४२ - चीन का आक्रमण और निराकरण

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